बादल फटने की घटनाओं की वजह और रोकथाम करने के उपाय खोजेगा एरीज

हिमालय क्षेत्र में बढ़ रही बादल फटने की घटनाओं के कारण व रोकथाम के वैज्ञानिक उपाय तलाशने के लिए एरीज हिमालय क्षेत्र के इलाकों में पीएम 2.5 के अत्याधुनिक उपकरण लगाने जा रहा है। इस मिशन का नाम आकाश योजना दिया गया है!

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Thu, 05 Aug 2021 07:57 AM (IST) Updated:Thu, 05 Aug 2021 02:44 PM (IST)
बादल फटने की घटनाओं की वजह और रोकथाम करने के उपाय खोजेगा एरीज
बादल फटने की घटनाओं की वजह और उसके रोकथाम करने के उपाय खोजेगा एरीज

रमेश चंद्रा, नैनीताल : हिमालय क्षेत्र में बढ़ रही बादल फटने की घटनाओं के कारण व रोकथाम के वैज्ञानिक उपाय तलाशने के लिए एरीज हिमालय क्षेत्र के इलाकों में पीएम 2.5 के अत्याधुनिक उपकरण लगाने जा रहा है। इस मिशन का नाम आकाश योजना दिया गया है, जिसे भारत व जापान के विज्ञानी संयुक्तरूप से अमलीजामा पहनाएंगे।

आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (ARIES) के वरिष्ठ वायुमंडलीय विज्ञानी डा. नरेंद्र सिंह ने बताया कि बीते कुछ सालों से हिमालयी क्षेत्रों में बादल फटने की घटनाओं में बेशुमार इजाफा हुआ है, जो चिंता का कारण है। हालांकि प्रथमदृष्टया इसके लिए मौसम परिवर्तन कारण माना जा रहा है, मगर इनकी रोकथाम को लेकर उपाय तलाशने की सख्त जरूरत है। इन घटनाओं में प्रदूषण कितना बड़ा कारण है, इसका पता लगाया जाना बेहद जरूरी हो गया है।

यहां लगाया जाएगा उपकरण

इसके तहत भारत-जापान साथ मिलकर हिमालय से लगे उत्तराखंड राज्‍य के कई हिस्सों में कांपैक्ट यूजफुल पार्टिकुलेट मैटर इंफार्मेशन (सीयूपीआइ) नामक उपकरण लगाने जा रहे हैं। इस कार्य का जिम्मा एरीज को सौंपा गया है। उपकरण स्थापित किए जाने का कार्य सितंबर में शुरू कर दिया जाएगा। फिलहाल उपकरण लगाने के लिए स्थान चयनित किए जाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इसके लिए अधिक प्रदूषण उत्सर्जित करने वाले इलाकों को शामिल किया जा रहा है।

इन पर होगा काम

डा. नरेंद्र सिंह ने बताया कि सीयूपीआइ उपकरण स्थापित हो जाने के बाद हिमालय क्षेत्र मे बढ़ते प्रदूषण की जानकारी मिलनी शुरू हो जाएगी। जिससे पीएम 2.5 से मौसम पर पड़ रहे असर की सटीक जानकारी मिल पाएगी। इतना ही नहीं मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रभाव की जांच भी योजना के तहत हो सकेगी। इस प्रदूषण से कृषि क्षेत्र भी अछूता नहीं है, लिहाजा कृषि की दशा में सुधार लाए जाने के उपाय भी तलाशे जा सकेंगे।

25 लाख खर्च होंगे उपकरणों में

डा. नरेंद्र सिंह के अनुसार, उत्तराखंड के सभी जिलों में उपकरण लगाने में खर्च बहुत अधिक नहीं है। सीयूपीआइ स्थापित किए जाने का कार्य अक्टूबर तक पूरा कर लिया जाएगा। उपकरणों की कीमत करीब 25 लाख है।

आकाश योजना में एरीज समेत देश के कई संस्थान शामिल

आकाश योजना राष्ट्रीय योजना है, जिसमें एरीज समेत देश के कई विश्वविद्यालयों व अनुसंधान केंद्रों को शामिल किया गया है। इस सामूहिक योजना से वायु प्रदूषण पर व्यापक स्तर पर नजर रखी जा सकेगी, जिससे भविष्य में वायु प्रदूषण पर नियंत्रण कर पाना आसान हो जाएगा।

अन्य राज्‍यों की तुलना में उत्तराखंड मे कम है पीएम 2.5 प्रदूषण

उत्तराखंड में देश के अन्य राच्यों की तुलना में पीएम 2.5 उत्सर्जित करने वालों में काफी नीचे है। दो साल पहले काशीपुर में पीएम 2.5 की मात्रा दो सौ जा पहुंची थी। मानसून के दौरान यह प्रदूषण कम हो जाता है, लेकिन शीतकाल में बढ़ जाता है।

क्या होता है PM 2.5

PM-2.5 हवा में मौजूद सूक्ष्म कण है जिनका आकार 2.5 माइक्रोमीटर होता है। अध्ययन के मुताबिक वैश्विक आधार पर पर्यावरण खतरों में पीएम-2.5 के संपर्क को खतरनाक माना जाता है और वर्ष 2015 में करीब 42 लाख लोगों की असमय मृत्यु इसकी वजह से हुई।

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