दस साल बाद भी नहीं सुलझा पूर्व मुख्यमंत्रियों के आवास व बकाए का मामला

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों का आवास बिजली पानी व अन्य सुविधाओं का बकाया भुगतान का मामला दस साल से कानूनी दांवपेंच पर फंसा है। मामले में हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पारित हो चुके हैं। कभी बाजी पूर्व मुख्यमंत्री के हाथ लगती है तो कभी याचिकाकर्ता रुलक संस्था।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Sat, 26 Sep 2020 12:52 PM (IST) Updated:Sat, 26 Sep 2020 12:52 PM (IST)
दस साल बाद भी नहीं सुलझा पूर्व मुख्यमंत्रियों के आवास व बकाए का मामला
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों का आवास, बिजली पानी का बकाया भुगतान का मामला।

नैनीताल, किशोर जोशी: उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों का आवास, बिजली पानी व अन्य सुविधाओं का बकाया  भुगतान का मामला दस साल से कानूनी दांवपेंच पर फंसा है। मामले में हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पारित हो चुके हैं। आलम यह है कि कभी बाजी पूर्व मुख्यमंत्री के हाथ लगती है तो कभी याचिकाकर्ता रुलक संस्था। अब सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय के छह माह में बकाया जमा नहीं करने पर अवमानना की कार्रवाई पर रोक लगा दी है। साथ ही याचिकाकर्ता रुलक संस्था से चार सप्ताह में जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के राज्य सरकार द्वारा बकाया माफ करने के अधिनियम के कुछ प्रावधानों को असंवैधानिक करार देने के फैसले को चुनौती देती विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया था।

देहरादून की रुलक संस्था ने 2010 में जनहित याचिका दायर कर पूर्व मुख्यमंत्री से आवास व अन्य सुविधाओं का बकाया वसूली की मांग की थी। उच्च न्यायालय ने मामले में जवाब मांगा तो पता चला कि राज्य पुनर्गठन विधेयक में इसका उल्लेख नहीं था। उत्तर प्रदेश में लागू अधिनियम सिर्फ उत्तर प्रदेश के लिए था मगर राज्य सरकार का ध्यान ही नहीं गया कि यह एक्ट राज्य में प्रभावी नहीं हो सकता।

पिछले साल पारित हुआ था ऐतिहासिक फैसला

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने पिछले साल मई में रुलक कई जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पूर्व मुख्यमंत्रियों से छह माह के भीतर आवास व अन्य सुविधाओं का बकाया जमा करने का आदेश पारित किया। साथ ही सरकार के सुविधाओं का बकाया माफ करने के अधिनियम को असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया था। जब छह माह के भीतर पूर्व सीएम ने बकाया जमा नहीं किया तो रुलक  ने फिर से अवमानना याचिका दायर की तो हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र के राज्यपाल व पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी को छोड़कर  विजय बहुगुणा, भुवन खंडूड़ी, डॉ रमेश पोखरियाल निशंक को अवमानना नोटिस जारी कर जवाब मांगा तो सरकार के साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। हाईकोर्ट में मुख्य सचिव ओम प्रकाश की तरफ से हलफनामा दायर कर बताया कि जिसमें कहा गया है कि  पूर्व मुख्यमंत्रियो को पिछले साल 14 सितम्बर को बिजली, पानी के बिल के वसूली हेतु नोटिस जारी किया है।पूर्व मुख्‍यमंत्र‍ियों पर लाखों बकाया

नोटिस के अनुसार भगत सिंह  कोश्यारी पर बिजली व पानी का 11,36,03 रुपया , विजय बहुगुणा 4,01,078 रुपया , भुवन चन्द्र खंडूरी 3,89,365 रुपया, रमेश पोखरियाल निशंक 10,60,502 रुपया व स्वर्गीय पूर्व मुख्यंत्री नारायण दत्त तिवारी  21,75,117  रुपए बकाया है।  नारायण दत्त तिवारी का यह नोटिस उनकी पत्नी उज्जवला तिवारी के  नाम से भेजा गया है। देहरादून की रुलक संस्था ने अवमानना याचिका दायर कर कहा है कि कोर्ट ने 2019 में सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों से सरकारी आवास का किराया, बिजली  सहित अन्य सुविधाओं का भुगतान छह माह के भीतर करने को कहा था। अब इस मामले में रुलक संस्था को चार सप्ताह के भीतर सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल करना है। रुलक व पूर्व मुख्यमंत्रियों के बीच किराया जमा करने व माफ करने की कानूनी लड़ाई दिलचस्प मोड़ पर जरूर पहुंच गई है।

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