34 साल की नौकरी के बाद विभाग ने किया आनरोल, रिटायरमेंट से साढ़े चार साल पहले अर्दली के तौर पर मिली जगह

हल्‍द्वानी डीएफओ ऑफि‍स के बाहर बुजुर्ग हरीश चंद्र तिवारी फारेस्ट की वर्दी में 34 साल से हर आगंतुक का हाथ जोड़ अभिवादन करते नजर आ जाते हैं। परमानेंट होने के बाद खुश हैं कि अब उनके बच्‍चों की पढ़ाई ठीक से हो सकेगी।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Sun, 28 Feb 2021 08:27 AM (IST) Updated:Sun, 28 Feb 2021 08:27 AM (IST)
34 साल की नौकरी के बाद विभाग ने किया आनरोल, रिटायरमेंट से साढ़े चार साल पहले अर्दली के तौर पर मिली जगह
दो बच्चे कॉलेज और स्कूल पढ़ने वाले हैं। अब उनकी शिक्षा बेहतर हो सकेगी।

हल्द्वानी से गोविंद ब‍िष्‍ट। तिकोनिया स्थित डीएफओ हल्द्वानी के दफ्तर के बाहर पहुँचते ही बुजुर्ग हरीश चंद्र तिवारी फारेस्ट की वर्दी में हर आगंतुक का हाथ जोड़ अभिवादन करते नजर आ जाते हैं। डिवीजन में कई आईएफएस अफसर तैनात हुए और ट्रांसफर होकर चले गए। लेकिन हरीश तिवारी कहीं नहीं गए। क्योंकि ट्रांसफर तब होता जब विभाग में स्थायी होते। मगर अब विभाग ने बतौर अर्दली उन्हें परमानेंट कर दिया है। सरकारी होने में तिवारी को 34 साल लगे। और साढ़े चार साल बाद वो सेवानिवृत्त हो जाएंगे। मगर खुश हैं कि सैलरी आठ हजार से 22 हजार पहुँच गई। दो बच्चे कॉलेज और स्कूल पढ़ने वाले हैं। अब उनकी शिक्षा बेहतर हो सकेगी।

हरीश तिवारी डेलीवेज कर्मचारी के तौर पर 1987 में वन विभाग से जुड़े थे। उस दौर में 300 रुपये से शुरु हुए तनख्वाह अब जाकर आठ हजार तक पहुँची थी। बढ़ती महँगाई के दौर में इस तनख्वाह में घर चलाना बेहद मुश्किल था। गनीमत थी कि नैनीताल रोड पर वन विभाग का एक सरकारी क्वाटर रहने को मिल गई।

तिवारी को उम्मीद थी कि विभाग में ईमानदारी से किए काम की बदौलत उन्हें जल्द परमानेंट कर दिया जाएगा। लेकिन साढ़े तीन दशक तक इंतजार करना पड़ा। डीएफओ हल्द्वानी कुंदन कुमार सिंह के प्रयासों से उन्हें विभाग में अर्दली के पद पर परमानेंट किया गया है। तिवारी के मुताबिक तनख्वाह बढ़ने से बेटे और बेटी की पढ़ाई में अब दिक्कत नहीं आएगी। बेटा बीएससी और बेटी कक्षा सात में है। दो साल पहले बेटे का डीयू में एडमिशन हो गया था। लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण वह दिल्ली नहीं जा सका।

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