Adi Shankaracharya Jayanti : देश के चार भागों में की चार मठों की स्थापना, बद्रीनाथ में ज्योतिर्मठ की स्थापना के बाद ले ली समाधि
Adi Shankaracharya Jayanti हिंदू मान्यताओं में पूजनीय भगवान शंकराचार्य का जन्म वैशाख माह के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को हुआ था। इस बार सोमवार 17 मई को शंकराचार्य जयंती मनाई जाएगी। आदि गुरु शंकराचार्य ने कम उम्र में ही वेदों का ज्ञान प्राप्त कर लिया था।
हल्द्वानी, जागरण संवाददाता : Adi Shankaracharya Jayanti : हिंदू मान्यताओं में पूजनीय भगवान शंकराचार्य का जन्म वैशाख माह के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को हुआ था। इस बार सोमवार, 17 मई को शंकराचार्य जयंती मनाई जाएगी। आदि गुरु शंकराचार्य ने कम उम्र में ही वेदों का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। हिंदू कैलेंडर के अनुसार 788 ई में जन्मे आदि शंकराचार्य ने 820 ई में हिमालय में समाधि ले ली थी। आदि गुरु द्वारा स्थापित चार मठों में एक उत्तराखंड के बद्रीनाथ में स्थित है।
श्री महादेव गिरि संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य डा. नवीन चंद्र जोशी बताते हैं कि माना जाता है कि भगवान शिव की कृपा से आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म हुआ। जब वह तीन साल के थे तब पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद गुरु के आश्रम में इन्हें आठ साल की उम्र में वेदों का ज्ञान हो गया। इसके बाद शंकराचार्य भारत की यात्रा पर निकले। इस दौरान उन्होंने देश के चार हिस्सों में चार पीठों की स्थापना की।
ब्राह्मण कुल में हुआ जन्म
आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म केरल के कालड़ी गांव में हुआ था। उनका जन्म दक्षिण भारत के नंबूदरी ब्राह्मण कुल में हुआ था। आज इसी कुल के ब्राह्मण रावल बद्रीनाथ मंदिर के पुरोहित होते हैं। ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य की गद्दी पर नंबूदरी ब्राह्मण ही बैठते हैं।
वेदों से जुड़े हैं चार पीठ
डा. नवीन चंद्र जोशी ने बताया कि जिस तरह ब्रह्मा के चार मुख हैं और उनके हर मुख से एक वेद की उत्पत्ति हुई है। यानी पूर्व के मुख से ऋग्वेद, दक्षिण से यजुर्वेद, पश्चिम से सामवेद और उत्तर वाले मुख से अथर्ववेद की उत्पत्ति हुई है। इसी आधार पर शंकराचार्य ने चार वेदों और उनसे निकले अन्य शास्त्रों को सुरक्षित रखने के लिए चार मठ यानी पीठों की स्थापना की। चारों पीठ एक-एक वेद से जुड़े हैं। ऋग्वेद से गोवर्धन पुरी मठ यानी जगन्नाथ पुरी, यजुर्वेद से रामेश्वरम्, सामवेद से शारदा मठ द्वारिका और अथर्ववेद से बद्रीनाथ स्थित ज्योतिर्मठ जुड़ा है। उत्तराखंड के बद्रीनाथ स्थित ज्योतिर्मठ की स्थापना के बाद ही आदि गुरु शंकराचार्य ने समाधि ले ली थी।
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