आपदा से कुमाऊं में करीब एक हजार नदी-नालों ने बदला रास्ता, आइआइटी रुड़की करेगी अध्ययन

कुमाऊं में आई आपदा के कारण कोसी गौला दाबका नंधौर रामगंगा सरयू शारदा समेत छोटी-बड़ी करीब एक हजार नदी-नालों ने रास्ता बदल दिया या मूल स्वरूप में आ गई। वन विभाग बारिश से नदियों समेत वन मार्गों आदि के नुकसान के पुख्ता आंकलन के लिए आइआइटी रुड़की से अध्ययन कराएगा।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Tue, 26 Oct 2021 07:27 AM (IST) Updated:Tue, 26 Oct 2021 01:23 PM (IST)
आपदा से कुमाऊं में करीब एक हजार नदी-नालों ने बदला रास्ता, आइआइटी रुड़की करेगी अध्ययन
आपदा से कुमाऊं में करीब एक हजार नदी-नालों ने बदला रास्ता, आइआइटी रुड़की करेगी अध्ययन

किशोर जोशी, नैनीताल : कुमाऊं में आई आपदा के कारण कोसी, गौला, दाबका, नंधौर, रामगंगा, सरयू, शारदा समेत छोटी-बड़ी करीब एक हजार नदी-नालों ने रास्ता बदल दिया या मूल स्वरूप में आ गई। वन विभाग बारिश से नदियों समेत वन मार्गों आदि के नुकसान के पुख्ता आंकलन के लिए आइआइटी रुड़की से अध्ययन कराएगा। विशेषज्ञों ने नदी-नालों के किनारे के भूमि को चिह्निïत करने, यहां बसासत पर पूरी तरह पाबंदी लगाने की पैरवी की है। कहा है कि पहाड़ की परंपरागत पुराने तौर तरीके अनुसार नदी-नालों के किनारे खेती करने पर जोर दिया है।

दरअसल कुमाऊं में उत्तरी कुमाऊं के अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर, चंपावत, दक्षिणी कुमाऊं के नैनीताल, भूमि संरक्षण वन प्रभाग नैनीताल, रानीखेत व अतिरिक्त भूमि संरक्षण वन प्रभाग रामनगर, पश्चिमी वृत्त अंतर्गत हल्द्वानी, तराई पूर्वी, तराई पश्चिमी, तराई केंद्रीय व रामनगर के समस्त वन रैंजों में हालिया बारिश से खासा नुकसान हुआ है। वन विभाग के प्रारंभिक आंकलन के अनुसार पूरे कुमाऊं में पैदल बटिया, वन विश्राम गृहों, सुरक्षा दीवारों, चैकडेम, वन मार्ग, पाइप लाइन, जलाशय, पौधरोपण, आवासीय भवनों, लिंक मार्ग, स्टोन चैकडेम, क्रेटवायर, नर्सरी, तटबंध, सोलर फेलिसिंग, लीसा डिपो आदि को करीब 58 करोड़ का नुकसान हुआ है।

इसमें उत्तरी कुमाऊं में 614 लाख, दक्षिणी में 347 लाख, पश्चिमी में सर्वाधिक 4825 लाख के नुकसान शामिल है। कुमाऊं की मुख्य वन संरक्षक डॉ तेजस्विनी अरविंद पाटिल के अनुसार गौला, कोसी, दाबका, नंधौर, निहाल समेत अनेक नदियों के तटबंध टूट गए या बह गए हैं। वन मोटर मार्गों को नुकसान हुआ है। नदियों ने रास्ता बदल दिया या चैनल बदल गया है। यदि जल्द वन मोटर मार्ग नहीं खोले गए तो वन निगम के सामने भी लकड़ी का संकट खड़ा हो सकता है। इससे वन क्षेत्रों में गश्त भी बुरी तरह प्रभावित हुई है। कुमाऊं में छोटी-बड़ी एक हजार नदी-नाले हैं।

नदी-नालों के किनारे बसासत से हुआ अधिक नुकसान

जिले की रामगाढ़ समेत लंबे समय से नदियों का अध्ययन कर रहे कुमाऊं विवि भूगोल विभाग के प्रो पीसी तिवारी के अनुसार पहाड़ में बुजुर्गांे ने नदी-नालों के किनारे खेती व तीर्थस्थल बनाए और बसासत ऊंचाई पर बनाई। उन्हें यह वैज्ञानिक तथ्य मालूम था कि नदी-नाले रास्ता बदलते हैं। वह नदी-नालों के व्यवहार को जानते थे। 2013 की आपदा में मंदाकिनी की बाढ़ से इसी वजह से नुकसान हुआ था, अबकी कुमाऊं में भी नुकसान की वजह नदी-नालों के किनारे बसासत व अतिक्रमण रहा है। नदियों का क्रम स्ट्रीम ऑडरिंग या मार्ग बदलने वाला होता है। एक नदी दूसरे में मिलती है। मूल नदी के बहाव से भूस्खलन जबकि फिर पहली से आठवें तक यह क्रम चलता है, जिसमें खतरा बढ़ता है। उत्तराखंड की हिमानी व गैर हिमानी नदियां चौथे से आठवें क्रम तक हैं। कम पानी में घुमकर जबकि अधिक में सीधे चलती हैं। हमें परंपरागत रूप से प्रकृति को समझना होगा। नदी-नालों के किनारे दो सौ मीटर तक के दायरे में बसासत पर पाबंदी लगानी ही होगी।

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