फ्लैशबैक : 99 साल के स्‍वतंत्रता सेनानी मोती सिंह बोले सात दिन भूखे रहकर लड़ी थी आजादी की जंग

मूल रूप से जिला अल्मोड़ा के ग्राम कनोली ताड़ीखेत निवासी नेगी कक्षा पांच से पढ़ाई लिखाई छोड़कर अंगे्रजो भारत छोड़ो आंदोलन में कूद गए थे।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Sat, 15 Aug 2020 01:41 PM (IST) Updated:Sat, 15 Aug 2020 01:41 PM (IST)
फ्लैशबैक : 99 साल के स्‍वतंत्रता सेनानी मोती सिंह बोले सात दिन भूखे रहकर लड़ी  थी आजादी की जंग
फ्लैशबैक : 99 साल के स्‍वतंत्रता सेनानी मोती सिंह बोले सात दिन भूखे रहकर लड़ी थी आजादी की जंग

रामनगर, त्र‍िलोक रावत: सुनहरे भविष्य की परिकल्पना व  रामराज के मकसद से हम बचपन से ही आजादी की लड़ाई में कूद गए थे। अंगे्रजों की तमाम यातनाएं झेली, घर परिवार बच्चों को छोड़कर जेल में बंद रहे। इन संघर्षो के बलबूते ही आज हम लोग आजाद भारत में सांस ले पा रहे हैं। यह कहना है कि 99 वर्षीय वयोवृद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मोती सिंह नेगी का। मूल रूप से जिला अल्मोड़ा के ग्राम कनोली ताड़ीखेत निवासी नेगी कक्षा पांच से पढ़ाई लिखाई छोड़कर अंगे्रजो भारत छोड़ो आंदोलन में कूद गए थे। डबडबाती आवाज में नेगी सोच सोचकर अतीत को याद करके बताते हैं कि इस आंदोलन ने देश के लोगों के अंदर जबरदस्त देशपे्रम का जज्बा पैदा कर दिया था।

आजादी के दीवानों ने पूरे देश में अंगे्रजों के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया था। देश में अंगे्रजों के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गए थे। वह खुद भी रानीखेत से जुलूस के साथ झांसी पहुंच गए। 23 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने लोगों से आंदोलन को अहिंसा से करने की अपील की थी। झांसी में बड़े नेताओं के नेतृत्व में जुलूस निकाला तो उन्हें व उनके साथियों को झांसी की जेल में बंद कर दिया गया। पकड़े गए लोगों को छोडऩे के लिए माफीनामा लिखने को कहा गया। लेकिन हमने माफीनामा लिखने को मना कर दिया। एक सितंबर 1942 को सभी लोगों को छह माह की सजा सुनाई गई। जेल मे काफी प्रताडि़त किया जाता था। अपराधी व कैदियों की तरह उनके साथ व्यवहार किया गया। इस व्यवहार के विरोध में उन्होंने सात दिन तक खाना नहीं खाया। 27 फरवरी 1942 को वह जेल से छूटकर आए। इसके बाद भी जगह आंदोलन करते रहे। आजादी के दीवानों के आगे अंगे्रजों को झुकना पड़ा और 15 अगस्त 1947 को आजादी मिल गई। नेगी बताते हैं कि आजादी तो मिल गई, लेकिन आज जो देश के भीतर चल रहा है। उससे मन व्यथीत होता है। रामराज की परिकल्पना अधूरी सी लगती है। आज पहाड़ खाली होते जा रहे हैं। पहाड़ के लोगों को पहाड़ में ही रोजगार देने के लिए उद्योग लगाने की जरूरत है। 

राष्ट्रपति कर चुकी है सम्मानित

वयोवृद्ध मोती सिंह नेगी को वर्ष 2008 में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल दिल्ली बुलाकर सम्मानित भी कर चुकी हैं। तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी द्वारा उन्हें ताम्रपत्र देकर भी सम्मानित किया गया था।

आजादी के बाद समाजसेवा में उतरे

मोती सिंह नेगी के तीन पुत्र वह एक पुत्री है। बड़े पुत्र भगवत सिंह गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड से अधिकारी पद से रिटायर हो चुके हैं। दूसरे पुत्र भुपाल नेगी महाविद्यालय के प्राचार्य पद से रिटायर हुए हैं। जबकि तीसरा बेटा पूरन लेगी सूरत में कंपनी में कार्यरत है। बेटी भिकियासेन में पोस्ट ऑफिस में कार्यरत है। जीवन भर समाज सेवा में लगे रहे नेगी ने रामनगर में सड़क पर अतिक्रमण के रूप में रह रहे झोपड़ी वालों को एक नियत जगह उपलब्ध कराने के लिए संघर्ष किया। कई धार्मिक संस्थाओं की ओर चुके हैं।

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