World Environment Day : नंधौर सेंचुरी में सुरक्षित हैं 200 साल पुराने चैंपियन ट्री व महावृक्ष
जंगल खुद ही अपना संरक्षण कर लेंगे बस इंसान को अपनी गतिविधियों को सीमित रखना होगा। बेवजह दखल से वह खुद के साथ जंगल को भी नुकसान पहुंचाएगा।
हल्द्वानी, गोविंद बिष्ट। पर्यावरण संरक्षण को लेकर जनसहभागिता काफी अहम साबित होती है। मगर हरियाली को बढ़ाने में प्रकृत्ति पर सबसे ज्यादा ज्यादा है। जंगल खुद ही अपना संरक्षण कर लेंगे बस इंसान को अपनी गतिविधियों को सीमित रखना होगा! बेवजह दखल से वह खुद के साथ जंगल को भी नुकसान पहुंचाएगा। नंधौर सेंचुरी में मौजूद 'चैंपियन ट्री' इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। 54 फीट चौड़े सेमल इस पेड़ को उत्तराखंड का सबसे चौड़ा पेड़ माना जाता है। करीब 150-200 साल से यह जस का तस खड़ा है। हल्द्वानी डिवीजन की एक नंधौर रेंज में 260 फीट ऊंचा साल का पेड़ भी है, जिसे साल 'महावृक्ष' के नाम से जाना जाता है। अनुमान है कि यह भी 200 साल पुराना होगा।
जैव विविधता के साथ-साथ उत्तराखंड के जंगल अपने रहस्य को लेकर भी जाने जाते हैं। यहां दुर्लभ वनस्पतियों का संसार है तो बाघ से लेकर अन्य वन्यजीवों का वासस्थल भी। नैनीताल व चंपावत दो जिलों में फैली नंधौर सेंचुरी भी हरियाली को सहेजने के साथ संरक्षण की भूमिका अदा करती है। साल 2015 में वनकर्मी त्रिलोक बिष्ट, हेम पांडे व सेक्शन ऑफिसर धर्म प्रकाश ने गश्त के दौरान जौलासाल रेंज के भारगोठ कंपार्टमेंट में सेमल का विशालकाय पेड़ देखा। जंगल में गश्त के दौरान रोजाना हरियाली व वन्यजीवों से सामना होता था, लेकिन इस पेड़ की चौड़ाई को देख तत्कालीन डीएफओ डॉ. चंद्रशेखर सनवाल व सेंचुरी के डिप्टी डायरेक्टर पीसी आर्य को सूचना दी गई। अफसरों की मौजूदगी में चौड़ाई नापने पर 54 फीट निकली। पीसी आर्य ने बताया कि इसे उत्तराखंड का सबसे चौड़ा पेड़ माना जाता है। इससे पूर्व पालगढ़ रेस्ट हाउस परिसर में मौजूद सेमल के पेड़ के पास यह खिताब था। वहीं, हल्द्वानी डिवीजन के नंधौर रेंज में लाखनमंडी कंपार्टमेंट नंबर पांच में साल महावृक्ष भी आज भी वैसे ही खड़ा है। इसकी ऊंचाई 260 फीट है। महकमे के मुताबिक कुमाऊं में इससे लंबा पेड़ अभी मिला। वहीं, रेंजर शालिनी जोशी ने बताया कि सुरक्षा को लेकर वनकर्मी हमेशा अलर्ट रहते हैं।
सेमल से रुई बनती और साल से इमारती लकड़ी
विभाग के मुताबिक सेमल का इस्तेमाल शटरिंग, प्लाईवुड फैक्ट्री में किया जाता है। इसके फल के रेशों से रुई भी बनती है। वहीं, साल के वृक्ष का कटान तब तक नहीं किया जाता। जब तक वह सूखने व कीड़ा लगकर सडऩे की कगार पर न पहुंचे। महकमे के मुताबिक हरे साल का कटान प्रतिबंधित है। तत्कालीन डीएफओ डॉ. चंद्रशेखर सनवाल ने बताया कि गश्त के दौरान वनकर्मियों ने चैंपियन ट्री को खोजा था। बड़े पेड़ जंगल में भोजन श्रृंखला को व्यवस्थित रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। म्यूजियम में भी इसका इतिहास संरक्षित है।
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