देसंविवि में याज्ञवल्क्य यज्ञ अनुसंधान केंद्र शुरू

देवसंस्कृति विश्वविद्यालय ने भारतीय संस्कृति के विकास के क्षेत्र में नित नई योजनाओं का प्रयोग करते हुए एक नया मुकाम हासिल किया है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 07 Dec 2020 08:31 PM (IST) Updated:Mon, 07 Dec 2020 08:31 PM (IST)
देसंविवि में याज्ञवल्क्य यज्ञ अनुसंधान केंद्र शुरू
देसंविवि में याज्ञवल्क्य यज्ञ अनुसंधान केंद्र शुरू

संवाद सहयोगी, हरिद्वार: देवसंस्कृति विश्वविद्यालय ने भारतीय संस्कृति के विकास के क्षेत्र में नित नई योजनाओं का प्रयोग करते हुए एक नया मुकाम हासिल किया है। इस कड़ी में सोमवार को देसंविवि के प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पंड्या ने याज्ञवल्क्य यज्ञ अनुसंधान केंद्र की शुरुआत की। यहां वर्ष 1971 में स्थापित ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान में चल रहे यज्ञौपैथी को आगे बढ़ाते हुए आधुनिक रूप दिया जाएगा।

इस अवसर पर प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पंड्या ने कहा कि विवि से यज्ञ विज्ञान को लेकर सात शोधार्थी ने पीएचडी की है। उनके अनुभवों को ध्यान में रखते हुए इस केंद्र की शुरुआत की गई है। इन दिनों भारतीय संस्कृति के दो आधार यज्ञ और गायत्री की महिमा को आधुनिक रूप देते हुए जन-जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है। कहा कि यज्ञ विज्ञान पर और अधिक गहनता से होने वाले शोध में यह केंद्र शोधार्थियों के लिए मील का पत्थर साबित होगा। इस केंद्र में माइक्रो बायोलॉजी, फायटो केमिकल, एन्वॉयरंमेंटल, प्लांट फिजियोलॉजी, ह्यूमन एलेक्ट्रोफीसिओलॉजी की लैब बनाई गई है, जिससे यज्ञ के धुआं से रोगकारक बैक्टीरिया पर प्रभाव, समिधा व औषधियों की यज्ञीय धूम्र का हवा, पानी और मिट्टी पर प्रभाव, यज्ञीय धूम्र में सन्निहित तत्वों का प्रभाव, यज्ञीय धूम्र का विभिन्न मानवीय कोषों पर प्रभाव, शारीरिक व मानसिक स्तर पर होने वाले प्रभाव, यज्ञ का वनस्पति और कृषि पर प्रभाव आदि विषयों पर शोध किए जाएंगे। इसके लिए एयर सैंपलर, रोटरी-एवापोरेटर, लायोफिलाइजर आदि आधुनिक मशीन लगाई गई है। इन दिनों विवि में यज्ञौपैथी के माध्यम से डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, वात रोग, मानसिक रोग, थायराइड आदि रोगों में शोध हो रहा है, इसमें संतोषजनक परिणाम भी मिल रहे हैं। प्रतिकुलपति ने कहा कि यज्ञौपैथी का व्यापक प्रयोग मानवीय स्वास्थ्य, सामाजिक कल्याण, कृषि लाभ, पर्यावरण शुद्धि व आध्यात्मिक प्रभाव सहित विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे लाभों का अध्ययन किया जा रहा है। प्रतिकुलपति ने आशा व्यक्त की कि चिकित्सा विज्ञान (माइक्रोबायोलॉजी, बायोकैमिस्ट्री, मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, ड्रग डेवलपमेंट, थेराप्यूटिक्स, फार्माकोलॉजी, साइकोलॉजी आदि) पर्यावरण विज्ञान, कृषि विज्ञान, पुरातन विज्ञान, इतिहासवेत्ता के विशेषज्ञों की ओर से भी यहां शोध कार्य होगा। उन्होंने कहा कि इन यज्ञ अनुसंधानों को इंटरडिसिप्लिनरी जर्नल ऑफ यज्ञ रिसर्च (आइजेवायआर) नामक शोध पत्रिका के ऑनलाइन प्रकाशन की ओर से पढ़ा जा सकता है। इस अवसर पर विभागाध्यक्ष डॉ. विरल पटेल, डॉ. वंदना श्रीवास्तव आदि मौजूद रहे।

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