IIT Roorkee में डिजाइन किया गया भू-सेंसर, जानिए क्या हैं इसकी विशेषताएं

भूकंप की पूर्व चेतावनी के लिए उत्तराखंड में लगाए गए सेंसर के मामले में जल्द देश आत्मनिर्भर होगा। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की के आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन उत्कृष्टता केंद्र में स्थित अर्थक्वेक अर्ली वार्निंग लैब ने यह सेंसर डिजाइन किया है।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Wed, 11 Aug 2021 05:02 PM (IST) Updated:Wed, 11 Aug 2021 05:02 PM (IST)
IIT Roorkee में डिजाइन किया गया भू-सेंसर, जानिए क्या हैं इसकी विशेषताएं
IIT Roorkee में डिजाइन किया गया भू-सेंसर, जानिए क्या हैं इसकी विशेषताएं।

रीना डंडरियाल, रुड़की। भूकंप की पूर्व चेतावनी के लिए उत्तराखंड में लगाए गए सेंसर के मामले में जल्द देश आत्मनिर्भर होगा। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की के आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन उत्कृष्टता केंद्र में स्थित अर्थक्वेक अर्ली वार्निंग लैब ने यह सेंसर डिजाइन किया है। इसे भू-सेंसर नाम दिया गया है। वहीं, अर्थक्वेक अर्ली वार्निंग सिस्टम प्रोजेक्ट के तहत अभी तक संस्थान ने गढ़वाल-कुमाऊं में जो कुल 165 सेंसर लगाए हैं, वो ताइवान से मंगाए गए थे। लेकिन, आइआइटी रुड़की की लैब में विकसित सेंसर ताइवान से मंगाए गए सेंसर की तुलना में अधिक गुणवत्ता वाले हैं।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अर्थक्वेक अर्ली वार्निंग सिस्टम फार नार्दर्न इंडिया प्रोजेक्ट पर आइआइटी रुड़की वर्ष 2014 से काम कर रहा है। इसके तहत भूकंप अलर्ट को गढ़वाल और कुमाऊं में सेंसर लगाए गए हैं। यहां यदि रिक्टर पैमाने पर 5.5 परिमाण से अधिक का भूकंप आता है तो ये सेंसर चेतावनी जारी कर देते हैं। चमोली से उत्तरकाशी तक कुल 82 और पिथौरागढ़ से लेकर धारचूला तक 83 सेंसर लगाए गए हैं। ये सेंसर ताइवान से मंगाए गए थे।

वहीं, संस्थान के शोधार्थियों की ओर से भी सेंसर को लेकर वर्ष 2016-17 से शोध कार्य किया जा रहा है। इसके बाद संस्थान के शोधार्थियों की टीम ने आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन उत्कृष्टता केंद्र में स्थित अर्थक्वेक अर्ली वार्निंग लैब में ऐसे सेंसर बनाने में कामयाबी हासिल की, जो ताइवान के सेंसर से अधिक गुणवत्ता वाले हैं।

ताइवान के सेंसर की डायनामिक रेंज 76 डेसिबल है, वहीं आइआइटी रुड़की की लैब में बने भू-सेंसर की 96 डेसिबल। यानी भूकंपीय तरंगों को पहचानने की क्षमता संस्थान की लैब में बने सेंसर की अधिक है। वर्ष 2014 में ताइवान के जो सेंसर गढ़वाल में लगाए गए थे, उनकी प्रति सेंसर कीमत लगभग एक लाख रुपये है। जबकि, वर्ष 2018 में कुमाऊं में लगाए गए सेंसर की कीमत करीब दो लाख रुपये बैठती है। वहीं, आइआइटी रुड़की की लैब में जो भू-सेंसर बनाया गया है, वह लगभग 50 हजार रुपये में पड़ रहा है।

प्रोजेक्ट फैलो गोविंद राठौर बताते हैं कि भूकंप से पूर्व चेतावनी के लिए लैब में विकसित सेंसर का आइआइटी रुड़की में सेक टेबल टेस्ट किया गया। इसमें सेंसर सफल रहा। इस प्रोजेक्ट पर उनकी 12 सदस्य टीम ने काम किया। राठौर के अनुसार राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर की लैब से सर्टिफिकेशन और पेटेंट की प्रक्रिया भी चल रही है। संस्थान के पूर्व प्रोफेसर एके माथुर, प्रो. एमएल शर्मा, प्रो. आरएस जक्का और प्रो. कमल के निर्देशन में प्रोजेक्ट पर काम हुआ।

और भी कई विशेषताएं

आइआइटी में तैयार भू-सेंसर की और भी कई विशेषताएं हैं। इसका एल्युमीनियम का ढांचा है और डिस्प्ले में तीन एलईडी बटन हैं। एक बटन से पावर चालू होने, दूसरे से सिस्टम चल रहा है या नहीं और तीसरे से सेंसर सर्वर से जुड़ा है या नहीं का पता चलेगा। पुराने सेंसर में बाहर से ये बातें पता नहीं चल पाती हैं। भू-सेंसर सोलर पैनल से चल सकता है और इसका बैटरी बैकअप सात-आठ दिन का है। वहीं, कुमाऊं में लगे सेंसर का बैटरी बैकअप तीन-चार घंटे का है। जबकि, गढ़वाल में लगे सेंसर का बैटरी बैकअप नहीं है। पुराने सेंसर से कभी-कभी गलत चेतावनी की भी आशंका रहती है, क्योंकि यह अपने आसपास होने वाली अन्य तरह की हलचल को भी रिकार्ड कर लेता है। जबकि, भू-सेंसर के साथ ऐसा नहीं है। पुराने सेंसर की कनेक्टिविटी के लिए ब्राडबैंड जरूरी है, जबकि भू-सेंसर 3जी व 4जी सिम से भी कनेक्ट किया जा सकता है।

उत्तराखंड एप लांच करने वाला देश का पहला राज्य

आइआइटी रुड़की ने भूकंप पूर्व चेतावनी (ईईडब्लू) के लिए उत्तराखंड भूकंप अलर्ट मोबाइल एप तैयार किया है। चार अगस्त को देहरादून में मुख्यमंत्री पुष्कर ङ्क्षसह धामी ने इसे लांच किया था। ऐसा एप तैयार करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य है।

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