श्री जगद्गुरु रामानंदाचार्य हंसदेवाचार्य का हरिद्वार से था पुराना नाता

वैष्णव रामानंद संप्रदाय के श्री जगद्गुरु रामानंदाचार्य हंसदेवाचार्य का हरिद्वार से करीब 40 वर्ष पुराना नाता था।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Fri, 22 Feb 2019 02:12 PM (IST) Updated:Fri, 22 Feb 2019 07:51 PM (IST)
श्री जगद्गुरु रामानंदाचार्य हंसदेवाचार्य का हरिद्वार से था पुराना नाता
श्री जगद्गुरु रामानंदाचार्य हंसदेवाचार्य का हरिद्वार से था पुराना नाता

हरिद्वार, जेएनएन। वैष्णव रामानंद संप्रदाय के आचार्य संत श्रीमज्जगदगुरू रामानंदाचार्य हंसदेवाचार्य का हरिद्वार और ऋषिकेश से करीब 40 वर्ष पुराना नाता था। बचपन में ही घर बार छोड़ वैराग्य धारण कर वे ऋषिकेश स्थित जगन्नाथधाम आश्रम में गुरु पूरण महाराज की शरण में आ गए थे। उनसे दीक्षा ग्रहण कर संन्यास का चोला धारण कर लिया। बाद में उन्होंने हरिद्वार में भीमगोड़ा स्थित जगन्नाथधाम को अपनी धार्मिक यात्रा का ठिकाना बनाया। 

यहीं वे बड़ा अखाड़ा उदासीन के महामंडलेश्वर बने। उस वक्त उन्हें महामंडलेश्वर स्वामी हंसदास जी महाराज के नाम से जाना जाता था। उन्हें धर्म, समाज और राजनीतिक की गहरी समझ थी। एक और खासियत यह कि उनकी जितनी पकड़ संत समाज पर थी, उतनी ही राजनीति, शासन व सत्ता पर थी। वैसे तो उन्होंने समाज के हर वर्ग के विकास के काम किया, लेकिन आदिवासी समाज के विकास में उनका उल्लेखनीय योगदान माना जाता है।

स्वामी हंसदेवा चार्य ने पिछले साल दिसंबर माह में राममंदिर के मसले पर पहले अयोध्या और उसके बाद दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में अखिल भारतीय संत समिति के सम्मेलन में देशभर के पांच हजार से अधिक प्रमुख संतों को जोड़ मंदिर निर्माण के पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास भी किया। वे अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि मंदिर निर्माण के पक्षधर थे। लेकिन, देश के सांप्रदायिक सद्भाव को किसी भी हालत में बिगड़ने देना नहीं चाहते थे। यही वजह थी कि वह इस मामले को लेकर हर आंदोलन के अगुआ तो रहे पर कभी भी ऐसा कोई कदम नहीं उठाया या उठने दिया, जिससे देश का माहौल बिगड़े। शासन-सत्ता में चाहे जो रहा, स्वामी हंसदेवाचार्य की बात पर सभी ने गंभीरता से ध्यान दिया। 

संत समाज ने एक प्रखर और विद्वान संत खोया

श्रीमद गुरु रामानंदाचार्य महामंडलेश्वर स्वामी हम देवाचार्य का ऋषिकेश तीर्थ नगरी से पुराना नाता रहा है। मनी राम मार्ग में श्री जगन्नाथ आश्रम में अपने गुरु महंत पूर्ण दास महाराज के साथ वह रहते थे। यहां से हरिद्वार जाने के बाद स्वामी हंस देवाचार्य समय-समय पर ऋषिकेश स्थित आश्रम और यहां आयोजित होने वाले धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होते थे। श्री जयराम आश्रम में उनका अक्सर आना होता था। स्वामी हंस देवाचार्य उन संतों में थे, जो गंगा की पावनता को लेकर संतों के गंगा में समाधि की बजाय संतों की अग्नि समाधि के पक्षधर थे। यहां खुले मंचों से उन्होंने यह बात उठाई और सरकार से संतो के अग्नि समाधि के लिए हरिद्वार में भूमि आवंटन की भी मांग की थी। जयराम आश्रम के अध्यक्ष ब्रह्म स्वरूप ब्रह्मचारी ने शुक्रवार को ज्योति विशेष विद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में स्वामी हंस देवाचार्य को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि संत समाज ने एक प्रखर और विद्वान संत खोया है।

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