Roorkee Water Conclave 2020: कृषि में चीन से चार गुना अधिक पानी इस्तेमाल कर रहा भारत
आइआइटी रुड़की में आयोजित रुड़की वाटर कॉन्क्लेव- 2020 में एक शोध में पता चला कि चीन में एक किग्रा धान की पैदावार के लिए 500 लीटर पानी का उपयोग किया जाता है।
रुड़की, रीना डंडरियाल। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की में आयोजित रुड़की वाटर कॉन्क्लेव- 2020 में सामने आने वाले आंकड़े चौंकाने वाले रहे। एक शोध में पता चला कि चीन में एक किग्रा धान की पैदावार के लिए 500 लीटर पानी का उपयोग किया जाता है। इसके उलट भारत में इसके लिए चार गुना अधिक यानी दो हजार लीटर पानी का इस्तेमाल किया जा रहा है। ओवा स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (यूएसए) के डिस्टिंगुइशिड प्रोफेसर रमेश एस. कंवर ने कृषि क्षेत्र में पानी का उपयोग कम करने के लिए भारत को चीन से सबक लेने की बात कही।
आइआइटी रुड़की और राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान (एनआइएच) रुड़की संयुक्त रूप से आइआइटी रुड़की में तीन दिवसीय रुड़की वाटर कॉन्क्लेव का आयोजन कर रहा है। कॉन्क्लेव के कीनोट स्पीकर एवं चौथे प्लेनरी सेशन के चेयरमैन प्रो. रमेश एस. कंवर ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि भारत में विशेषकर धान की खेती में जरूरत से अधिक पानी इस्तेमाल होता है, जिसे कम करने की आवश्यकता है।
भारत में धान की खेती के लिए कुल खेती का 90 फीसद पानी इस्तेमाल किया जाता है, जो चिंताजनक है। धान की खेती में इतना पानी इस्तेमाल होने के बावजूद भारत में प्रति हेक्टेयर चार टन का उत्पादन होता है। जबकि, चीन में प्रति हेक्टेयर 6.3 टन पैदावार होती है। प्रो. कंवर ने कृषि के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी पानी की बर्बादी रोकने पर जोर दिया। कहा कि पानी पर सबका अधिकार है, सबको पानी मिलना चाहिए।
इसके लिए वैज्ञानिकों को शोध के अलावा लोगों को जागरूक करने की भी जरूरत है। वहीं जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश में आ रही कमी से कई जगह सूखे की स्थिति उत्पन्न हो रही है। जबकि, अधिक बरसात होने से बाढ़ जैसे हालात भी सामने आ रहे हैं। उन्होंने परिस्थितियों का सामना करने के लिए सबको मिलकर काम करने की जरूरत पर बल दिया।
आइआइटी के छात्र आगे आएं, निकालें समाधान
प्रो. रमेश एस. कंवर ने कहा कि हर समस्या के लिए हम सरकार पर निर्भर नहीं हो सकते। जलवायु परिवर्तन और अन्य समस्याओं के समाधान के लिए समाज को भी अपने स्तर पर पहल करनी चाहिए। बताया कि यूएसए में सेल्फ गवर्नेंस सिस्टम है। एमेस (ओवा) शहर में घर-घर से टैक्स लिया जाता है और उस टैक्स का उपयोग स्कूलों के संचालन, सड़क बनाने, वाटर ट्रीटमेंट, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट, सुरक्षा आदि पर खर्च किया जाता है। उनके अनुसार आइआइटी रुड़की जैसे शिक्षण संस्थान के छात्रों को ऐसे प्रोजेक्ट पर काम करना चाहिए, जिससे कि वे किसी गांव व क्षेत्र की समस्याओं का समाधान कर सकें।
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