सूखे पड़े वॉटर हॉल से कैसे बुझे जानवरों की प्यास
जानवरों की प्यास बुझाने के लिए जंगल में बनाए गए अधिकांश वॉटर हॉल सूखे पड़े हैं।
संवाद सूत्र, लालढांग: जानवरों की प्यास बुझाने के लिए जंगल में बनाए गए अधिकांश वॉटर हॉल सूखे पड़े हैं। ऐसे में जानवरों की प्यास कैसे बुझाई जाएगी, वहीं दूसरी ओर पूर्वी गंगनहर में पानी नहीं होने से जंगली जानवरों को प्यास बुझाने के लिए रिहायशी इलाकों का रुख करने को मजबूर होना पड़ रहा है, जिससे मानव वन्यजीव संघर्ष की आशंका बनी रहती है। वन विभाग जंगली जानवरों के संरक्षण के दावे करता हो, मगर जमीनी हकीकत उससे कोसों दूर है। सरकार की ओर से जंगलों में जानवरों की प्यास बुझाने के लिए धन आवंटित होता है, मगर लालढांग क्षेत्र में पड़ने वाली वन विभाग की रेंजों ने वॉटर हॉल में पानी नहीं भरा है। पानी के अभाव में जानवरों के सामने प्यास बुझाने की समस्या उत्पन्न हो गई है। पानी के अभाव जानवर प्यास बुझाने के लिए रिहायसी इलाकों का रुख कर रहे हैं, जो इंसानों के लिए खतरा पैदा कर रहा है। पूर्व में पूर्वी गंगनहर में पानी होने से हाथी सहित जंगली जानवर लिया करते थे, लेकिन अब नहर में पानी नहीं होने से जानवरों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। जंगल में पानी नहीं होने से जानवर कांगड़ी, गाजीवाली, श्यामपुर सहित अन्य गांव की ओर रुख करते हैं। आलम ये है कि शाम ढलते ही हाथी गांव के बीचों-बीच आ धमके गंगा में प्यास बुझाने जा रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि कोई इंसान अगर जंगल जाता है तो वन विभाग उस पर ठोस कार्रवाई करता है, मगर आये दिन जानवरों की आवाजाही रोकने में नाकाम हो रहा है। वो भी उस स्थिति में विभाग करोड़ों रुपये की लागत से सिद्धसोत्र से लेकर बाहर पीली तक सोलर फेसिग लगवाई है। मामले में प्रभागीय वन अधिकारी नीरज शर्मा ने बताया कि बरसात को छोड़ अन्य सीजन में टैंकरों से वाटर फॉल भरे जाते हैं, जिससे जंगली जानवर प्यास बुझा सकें। अगर कोई वाटरफॉल सूखा भी हो सकता है कि वह भरने के बाद खाली हो गया हो। सभी रेंज अधिकारियों को समय-समय पर वाटरफॉल भरने को निर्देशित किया गया है।