'डुगोंग' का भारत में चार करोड़ वर्ष पुराना इतिहास, आइआइटी रुड़की के विज्ञानियों ने किया अध्ययन

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की के विज्ञानियों ने समुद्री गाय (डुगोंग) के जीवाश्म पर किए गए शोध से पता लगाया कि भारत में डुगोंग का इतिहास चार करोड़ 20 लाख साल पुराना है। विज्ञानियों का दावा है कि भारत में स्तनधारी समुद्री गाय की चार प्रजाति मौजूद थीं।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Mon, 31 May 2021 10:11 AM (IST) Updated:Mon, 31 May 2021 10:15 AM (IST)
'डुगोंग' का भारत में चार करोड़ वर्ष पुराना इतिहास, आइआइटी रुड़की के विज्ञानियों ने किया अध्ययन
शोध से पता लगाया कि भारत में डुगोंग का इतिहास चार करोड़ 20 लाख साल पुराना है।

जागरण संवाददाता, रुड़की। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की के विज्ञानियों ने समुद्री गाय (डुगोंग) के जीवाश्म पर किए गए शोध से पता लगाया कि भारत में डुगोंग का इतिहास चार करोड़ 20 लाख साल पुराना है। विज्ञानियों का दावा है कि भारत में स्तनधारी समुद्री गाय की चार प्रजाति मौजूद थीं। लेकिन, अब मात्र एक ही प्रजाति रह गई है और वो भी विलुप्ति के कगार पर है। विज्ञानियों ने चेतावनी दी है कि संरक्षण नहीं होने पर समुद्री गाय का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।

आइआइटी रुड़की में किए गए अध्ययन से पता चलता है कि शाकाहारी एवं स्तनधारी समुद्री गाय की भारत में कम से कम चार प्रजाति थीं। इनमें आदिम प्रजाति भी शामिल थी, जो इस क्षेत्र में लगभग चार करोड़ 20 लाख साल पहले रहती थी। जबकि, अन्य प्रजातियों की लगभग दो करोड़ वर्ष पूर्व मौजूदगी के प्रमाण मिले हैं। गुजरात के कच्छ क्षेत्र में मिले समुद्री गायों के जीवाश्म पर शोध कर रहे आइआइटी रुड़की के प्रोफेसर सुनील वाजपेयी, उनके सहयोगी और छात्रों के अध्ययन के आधार पर यह आकलन किया गया है। विज्ञानियों के अनुसार डुगोंग कच्छ की खाड़ी, मन्नार की खाड़ी, पाक खाड़ी (तमिलनाडु), अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही है। सरकार ने भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम-1972 के तहत समुद्री गाय का शिकार प्रतिबंधित किया है।

प्रो.सुनील वाजपेयी ने बताया कि आइआइटी रुड़की के पृथ्वी विज्ञान विभाग की प्रयोगशाला में डुगोंग और व्हेल के जीवाश्म रखे गए हैं। इन पर निरंतर शोध चल रहा है। अध्ययनों से पता चलता है कि वास्तविक विविधता और भी अधिक हो सकती है। भारत न केवल समुद्री गायों के लिए, बल्कि व्हेल जैसे अन्य स्तनधारियों के लिए भी विकास और विविधीकरण का एक प्रमुख केंद्र था। वाजपेयी के अनुसार मौजूदा समय में डुगोंग की केवल एक ही प्रजाति है। जो समुद्री जल में पनपती है।

जीवाश्म साक्ष्य देखना रोमांचकारी

आइआइटी रुड़की के निदेशक प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी ने कहा कि जीवाश्म साक्ष्य देखना रोमांचकारी है। इससे पता चलता है कि भारत अतीत में जैविक विकास और जैव विविधता का उद्गम स्थल रहा है। कहा कि आइआइटी रुड़की का पृथ्वी विज्ञान विभाग इस विकास की हमारी समझ को बेहतर बनाने में योगदान दे रहा है। इस वर्ष भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून में आयोजित कैंपा-डुगोंग कार्यक्रम में समुद्री गायों की ऐतिहासिक विरासत को उजागर करने वाला एक पोस्टर भी जारी किया जा चुका है।

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