संत की कलम से: धार्मिक आयोजनों-यात्राओं में कुंभ का है विशेष महत्व- शैल बाला पंड्या

Haridwar Kumbh 2021 भारतवर्ष धर्म प्रधान देश है। यहां की पृथ्वी का कण-कण महत्त्वपूर्ण है। यूं तो संसार के कई देशों में अनेक तीर्थ हैं पर भारतवर्ष में तीर्थ स्थानों का विशेष महत्त्व है। तीर्थ का अर्थ है-पौराणिक महत्त्व के साथ आध्यात्मिक शक्ति से ओतप्रोत होना।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Mon, 01 Feb 2021 03:23 PM (IST) Updated:Mon, 01 Feb 2021 03:23 PM (IST)
संत की कलम से: धार्मिक आयोजनों-यात्राओं में कुंभ का है विशेष महत्व- शैल बाला पंड्या
शैल बाला पंड्या, देवसंस्कृति विश्वविद्यालय की कुलसंरिक्षका।

Haridwar Kumbh 2021 भारतवर्ष धर्म प्रधान देश है। यहां की पृथ्वी का कण-कण महत्त्वपूर्ण है। यूं तो संसार के कई देशों में अनेक तीर्थ हैं, पर भारतवर्ष में तीर्थ स्थानों का विशेष महत्त्व है। तीर्थ का अर्थ है-पौराणिक महत्त्व के साथ आध्यात्मिक शक्ति से ओतप्रोत होना। ऐसे तीर्थों से लाखों-करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई होती हैं। 

भारत के बहुसंख्य लोग जितनी तीर्थयात्रा करते हैं, उतनी कहीं और के नहीं। भारत में ऐसे अनेक धार्मिक, ऐतिहासिक, पीठ, धाम, पुरी और तीर्थ स्थान हैं, जहां लाखों लोग यात्रा कर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। ऐसे हमारे तीर्थ स्थान प्रायः प्रकृति की केलि-भूमि में स्थापित किये गए हैं, जिनकी यात्रा से एक सुंदर स्मृति सदा के लिए उनके दिलो-दिमाग में स्थापित हो जाती हैं। हमारे ऋषियों, मुनियों, पूर्वजों ने बहुत ही सोच-समझकर तीर्थ यात्रा का आदेश दिया था। वे जानते थे कि यात्रा के अनेक लाभ हैं। 

इससे यात्रियों को धार्मिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक आदि का सामयिक ज्ञान तो होता ही है, साथ ही देवी-देवताओं के मंदिर के सामने जाकर श्रद्धा से नतमस्तक हो अपने कालुष्य का विसर्जन कर कुछ समय के लिए वे आत्म विस्मृत होकर इस लोक से उस लोक तक पहुंच जाते हैं। इससे उनके मन में स्थाई तथा सात्विक प्रभाव हृदय और आत्मा पर पड़ता है। उसके हृदय में संसार की अनित्यता और विलासिता और वैभव के क्षणिक और मिथ्या अस्तित्व का ज्ञान उदय होता है और अपने भविष्य के जीवन को ऊंचा उठाने के लिए सोचता व करने लगता है। मेले लगने और उनकी परंपरा चिरकाल से चली आ रही है। कुंभ पर्व का भी इतिहास बहुत पुराना है। कहा जाता है कि छठी शताब्दी में प्रयागराज से कुंभ का आयोजन प्रारंभ हुआ है, तब से लेकर अब तक कई ऐतिहासिक परिवर्तन देखने-सुनने में आता है। 

इस वर्ष देवभूमि हरिद्वार में कुंभ महापर्व का आयोजन हो रहा है, जो कई मायने में हरिद्वार कुंभ का विशेष महत्त्व है। यहीं से पतित पावनी मां गंगा मैदानी क्षेत्र में प्रारंभ करती हुए भारत की जीवन रेखा के रूप में अनेकानेक लोगों में जीवन संचार करते हुए बंगाल की खाड़ी तक पहुंचती हैं। इस साल होने वाले कुंभ मेले के चार प्रमुख शाही स्नान की तिथि घोषित हो गयी हैं। पहला शाही स्नान महाशिवरात्रि- 11 मार्च, दूसरा सोमवती अमावस्या-12 अप्रैल, तीसरा बैशाखी- 14 अप्रैल, चौथा व अंतिम चैत्र पूर्णिमा- 27 अप्रैल को सम्पन्न होना है। चूंकि इस वर्ष वैश्विक महामारी कोरोना के कारण प्रशासन ने मेले के आयोजन को छोटा किया है और कम श्रद्धालुओं को आने अनुमति होगी, इसलिए कुंभ में वैसे दृश्य दिखाई नहीं देगा, जैसे विगत वर्षों में हुए कुंभ महापर्व की देखने को मिली थी। 

हालाकि, कुंभ महापर्व में साधु, संतों की पेशवाई और रैलियां निकलेंगी, जो दिव्य और मनोहारी होगी। कुंभ महापर्व में देश-देशांतर के ऋषि, संत, महात्माओं का समागम धर्म तंत्र के परिष्कार, जनमानस के उत्थान व सामाजिक, राष्ट्रीय समस्याओं के निराकरण के लिए हुआ करता था। इसमें संत-महात्मा अपने-अपने क्षेत्रों की समस्याओं का समाधान खोजते थे और आने वाले श्रद्धालुओं, परिजनों के माध्यम से उन सूत्रों को जन-जन तक पहुंचाते थे। इस परंपरा का कितना निर्वहन हो रहा है, इससे सभी अवगत हैं। 

आपके द्वार-पहुंचा हरिद्वार 

हरिद्वार कुंभ से करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी है। चूंकि यह महाकुंभ कोरोना संक्रमण की विशेष परिस्थितिजन्य कारणों के बीच आयोजित हो रहा है। ऐसी परिस्थितियों में इसका अपने वास्तविक रूप में हो पाना बहुत ही कठिन प्रतीत हो रहा है। अतएव करोड़ों लोग कुंभ के प्रत्यक्ष लाभ से वंचित हो सकते हैं। श्रद्धालुओं की इन्हीं भावनाओं को पोषित करने के उद्देश्य से शांतिकुंज परिवार ने घर-घर गंगाजल एवं सद्ज्ञान की प्रतीक युग साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने के लिए आपके द्वार पहुंचा हरिद्वार नाम से एक वृहत योजना पर काम कर रहा है। इसके लिए गायत्री परिवार के केन्द्रीय और क्षेत्रीय परिजनों की हजार से अधिक टोलियां घर-घर गंगाजल पहुंचाने में जुटी हैं। इसके अब तक आशातीत परिणाम सामने आ रहे हैं।

[शैल बाला पंड्या, देवसंस्कृति विश्वविद्यालय की कुलसंरिक्षका और अखिल विश्व गायत्री परिवार की अधिष्ठात्री]

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