2022 Uttarakhand Assembly Election: उत्तराखंड में चुनाव पूर्व की सरगर्मी जोर पकड़ती जा रही

2022 Uttarakhand Assembly Election अगर कांग्रेस में ऐसे विधायक जाते हैं जिनका टिकट कटना तय है तो भी वे कांग्रेस के लिए सकारात्मक वातावरण की वजह बन जाते हैं। कांग्रेस भी इसीलिए भाजपा से कमलायकों को लेने के लिए आतुर बैठी है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 20 Oct 2021 11:39 AM (IST) Updated:Wed, 20 Oct 2021 11:40 AM (IST)
2022 Uttarakhand Assembly Election: उत्तराखंड में चुनाव पूर्व की सरगर्मी जोर पकड़ती जा रही
भाजपा सरकार में मंत्री रहे यशपाल आर्य (बीच में) और उनके पुत्र की कांग्रेस में वापसी कराते हरीश रावत (बाएं)।फाइल

कुशल कोठियाल। 2022 Uttarakhand Assembly Election उत्तराखंड में चुनाव पूर्व की सरगर्मी जोर पकड़ती जा रही है। राज्य के प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस अपने दिग्गजों व विधायकों को सहेजने व दूसरे दल के नेताओं को चारा फेंकने में दिन-रात एक किए हुए हैं। प्रदेश सरकार में मंत्री रहे यशपाल आर्य विधायक पुत्र के साथ कांग्रेस में वापस क्या लौटे, भाजपा ने संदिग्ध निष्ठा वालों की गतिविधियों पर नजर पैनी कर ली है। पार्टी हाईकमान उन विधायकों के टिकट काटने के पुख्ता संकेत दे चुकी है, जो पार्टी व जनता के पैमाने पर खरे नहीं उतरे। भाजपा में खुद को इस श्रेणी में रख रहे विधायक कांग्रेस का दामन थामने को तैयार हैं, बशर्ते टिकट की गारंटी मिले।

18 मार्च, 2016 को जब विजय बहुगुणा एवं हरक सिंह समेत नौ विधायक कांग्रेस को झटका देकर भाजपा के पाले में आ खड़े हुए तो इसे भाजपा की ऐतिहासिक सफलता माना गया और कांग्रेस की हरीश रावत सरकार का अंत। इसे समय का फेर कहें या सियासी करवट, दोनों बातें खरी नहीं उतर पाईं। न तो तब हरीश रावत की सरकार गिर पाई और न अब तक यह भाजपा की ऐतिहासिक कामयाबी साबित हो पाई। कांग्रेस से बगावत करने वाले नौ विधायक विधानसभा में अयोग्य घोषित किए गए व भाजपा के तर्क नैनीताल हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक कहीं टिक नहीं पाए। आठ-नौ महीने बाद ठीक चुनाव से पहले यशपाल आर्य ने भी भाजपा का दामन थामा और लगे हाथ अपने लिए मंत्री पद व पुत्र के लिए विधानसभा टिकट पक्का कर लिया। कांग्रेसी दिग्गज सतपाल महाराज तो दो साल पहले ही भाजपा में अपनी जगह पक्की कर चुके थे।

जब कांग्रेस से इतनी बड़ी संख्या में नेताओं की आवक हो रही थी, तब प्रदेश में भाजपा के कुछ परिपक्व नेता दबी जुबान में कुछ कह रहे थे, जो भाजपा के उस उत्सवी माहौल में सुनाई नहीं दिया। वे तब भी चेता रहे थे कि अगर यह विलय है तो अप्राकृतिक और सौदा है तो घाटे का। खैर विधानसभा चुनाव हुए व कांग्रेस चारों खाने चित हुई। भाजपा को विधानसभा की 70 सीटों में से 57 पर जीत मिली। हवा ऐसी चली कि हरीश रावत खुद दो-दो सीट से हार गए। वह अब भी कहते हैं कि वह कैसे हार गए इससे वह आज भी अनजान हैं। राजनीति में कभी-कभी इस तरह की अज्ञानता ओढ़ लेना खूब सुहाता है। तभी तो रावत आज भी प्रदेश में कांग्रेस के नंबर वन नेता बने हुए हैं।

कांग्रेस से टूटे विधायक उद्देश्य (कांग्रेस सरकार गिराने) में सफल नहीं हुए, लेकिन भाजपा ठहरी वायदे की पक्की, सो जितने कांग्रेस से टूट कर आए सभी को टिकट दे कर चुनाव लड़ाया। इनमें से दो सीट को छोड़ कर बाकी सब पर नवभाजपाइयों को जीत मिली। सरकार बनी तो वायदा फिर निभाया गया व 10 में पांच को मंत्री पद से नवाजा गया। इस बीच तीन-तीन मुख्यमंत्री बने, पर क्या मजाल जो भाजपा वायदे से टस से मस हुई हो। वायदों की इस ईमानदार मिसाल को झटका तब लगा जब कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य अपने विधायक पुत्र के साथ कांग्रेस में लौट गए। साढ़े चार साल अहम महकमों की जिम्मेदार संभालने वाले आर्य ने कहा कि वैचारिक रूप से कांग्रेसी हैं, भाजपा में उनका दम घुट रहा था। यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि वह इस दौरान भाजपा की कोर कमेटी के सदस्य भी रहे।

यशपाल आर्य जैसे सौ टंच कांग्रेसी, भाजपा की कोर कमेटी की बंद दरवाजा बैठकों में कैसे बैठते रहे होंगे। उनकी तकलीफ का अंदाजा भाजपा का मजबूत संगठन समय पर क्यों नहीं लगा पाया। अब प्रदेश के भाजपाई इस जमात के विधायक-मंत्रियों की तकलीफ की खोज-खबर में दिन रात एक किए हुए हैं। दुलार कर देखा जा रहा है किसी और का दम तो नहीं घुट रहा, किसी को आक्सीजन की जरूरत तो नहीं। कांग्रेस से भाजपा में आए जिन विधायक-मंत्रियों की ज्यादा ही खोज-खबर ली जा रही है उनके भाव भी बढ़ गए हैं। जो विधायक हैं वे अगली सरकार में मंत्री के दावेदार हो गए व जो मंत्री हैं वे और भारी महकमों के तलबगार हो गए हैं।

यहां उल्लेखनीय है कि जब वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने वायदे के मुताबिक 12 सीटों पर कांग्रेस से आए मेहमानों को टिकट दिया था तो इन सीटों पर वर्षो से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे पुराने भाजपाई मन मसोस कर रह गए थे। 10 की कैबिनेट में भी 50 फीसद की हिस्सेदारी इन्हीं को दी गई तो भाजपा के कई पुराने विधायक कड़वा घूंट पी कर रह गए। अब आर्य के कांग्रेस में लौटने के बाद जहां भाजपा के बड़े नेता मायूस हैं तो कई के चेहरे भी खिले हैं। उनका मानना है कि पांच साल खीर खाने के बाद भी इस तरह के लोग अगर पार्टी छोड़ दें तो वर्षो से पार्टी को समर्पित कार्यकर्ताओं को मौका मिलेगा। हालांकि पार्टी नेताओं की चिंता इससे जुदा है और काफी हद तक सही भी। 

[राज्य संपादक, उत्तराखंड]

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