स्टार कछुओं की तस्करी रोकने को डीएनए सैंपलिंग शुरू, WII तैयार कर रहा जेनेटिक डाटाबेस

किसी को स्टार कछुओं से अपनी किस्मत चमकानी है तो किसी को इन्हें पालना जबकि कुछ विभिन्न अन्य कारणों से इनकी तस्करी करना चाहते हैं। वन्यजीव संरक्षण संबंधी नियमों की बात करें तो यह संरक्षित प्रजाति है और इनके अस्तित्व पर संकट के चलते इन्हें शेड्यूल-एच में रखा गया है।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Thu, 14 Jan 2021 10:26 AM (IST) Updated:Thu, 14 Jan 2021 07:41 PM (IST)
स्टार कछुओं की तस्करी रोकने को डीएनए सैंपलिंग शुरू, WII तैयार कर रहा जेनेटिक डाटाबेस
स्टार कछुओं की तस्करी रोकने को डीएनए सैंपलिंग शुरू। फाइल फोटो

सुमन सेमवाल, देहरादून। किसी को स्टार कछुओं से अपनी किस्मत चमकानी है तो किसी को इन्हें पालना है, जबकि कुछ विभिन्न अन्य कारणों से इनकी तस्करी करना चाहते हैं। वन्यजीव संरक्षण संबंधी नियमों की बात करें तो यह संरक्षित प्रजाति है और इनके अस्तित्व पर संकट के चलते इन्हें शेड्यूल-एच में रखा गया है। स्टार कछुओं की तस्करी रोकने की दिशा में अब भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) ने बड़ा कदम उठाते हुए इनकी डीएनए सैंपलिंग शुरू की है। यह सैंपलिंग संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. संदीप गुप्ता व शोधार्थी सुभाश्री साहू कर रहे हैं। 

देश में स्टार कछुए पंजाब, गुजरात, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडू, ओडिशा में पाए जाते हैं। डब्ल्यूआइआइ के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. गुप्ता के मुताबिक संबंधित क्षेत्रों से करीब 250 कछुओं के सैंपल लिए जाने हैं। सैंपल से कछुओं का जेनेटिक डाटाबेस तैयार किया जाएगा। यदि देश के किसी हिस्से से स्टार कछुओं की तस्करी की जाती है तो और ऐसे मामले कहीं पकड़ में आते हैं तो यह स्पष्ट किया जाता है कि संबंधित कछुआ देश के किस हिस्से से तस्करी कर लाया गया है। कोर्ट के समक्ष अपराधियों को सजा दिलाने में भी जेनेटिक डाटाबेस मील का पत्थर साबित होगा। 

दक्षिण पूर्व एशिया में बड़े पैमाने पर तस्करी 

देश के स्टार कछुओं की तस्करी बड़े पैमाने पर दक्षिण एशिया में की जाती है। जेनेटिक डाटाबेस तैयार होने के बाद यह स्पष्ट किया जा सकता है कि दक्षिण एशिया में तस्करी कर भेजे गए कछुए भारत के हैं और उन्हें किस हिस्से से ले जाया गया है। 

लेपर्ड की भी होगी सैंपलिंग 

डब्ल्यूआइआइ के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. संदीप गुप्ता ने बताया कि इससे पहले टाइगर और राइनो का जेनेटिक डाटाबेस तैयार किया जा चुका है। अगले चरण में अब हाथी व लेपर्ड का जेनेटिक डाटाबेस भी तैयार किया जाएगा। संस्थान अधिक से अधिक वन्यजीवों का जेनेटिक डाटाबेस तैयार करने की प्रक्रिया शुरू कर रहा है। वन्यजीव संरक्षण में यही डाटाबेस सबसे अहम साबित होता है। 

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