कोरोना की बेकाबू रफ्तार और बढ़ती मौतें, सिस्टम क्यों खामोश?

कोरोना संक्रमण की रोकथाम में जुटी सरकार शासन प्रशासन और पुलिस क्यों खामोश दिख रहे हैं? यह समझ से परे है। कहने को कोरोना पर ब्रेक लगाने के लिए कोरोना कर्फ्यू लागू किया गया है मगर तमाम तरह की ढील से कर्फ्यू का मजाक बनकर रह गया है।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Fri, 07 May 2021 09:36 AM (IST) Updated:Fri, 07 May 2021 09:36 AM (IST)
कोरोना की बेकाबू रफ्तार और बढ़ती मौतें, सिस्टम क्यों खामोश?
आइएसबीटी चौकी के बाहर बेवजह घरों से निकले लोगों के चालान काटती आइएसबीटी चौकी पुलिस।

जागरण संवाददाता, देहरादून। कोरोना की बेकाबू रफ्तार के बीच दून के कोविड अस्पताल मरीजों से भरे हुए हैं। बेड और ऑक्सीजन के साथ रेमडेसिविर जैसी जीवनरक्षक दवाओं के लिए मारामारी मची है। मरीजों को लेकर दिनभर दौड़ रही एंबुलेंस के शोर और श्मशान घाटों में अंतिम संस्कार के बढ़ते आंकड़ों के बीच आशंका का अंधकार हर पल गहराता जा रहा है। हर तरफ डर का माहौल है। इस सबके बीच कोरोना संक्रमण की रोकथाम में जुटी सरकार, शासन, प्रशासन और पुलिस क्यों खामोश दिख रहे हैं? यह समझ से परे है। कहने को कोरोना पर ब्रेक लगाने के लिए कोरोना कर्फ्यू लागू किया गया है, मगर तमाम तरह की ढील से कर्फ्यू का मजाक बनकर रह गया है।

इस समय दून का शायद ही कोई मोहल्ला ऐसा हो, जहां कोरोना से संक्रमित लोग न हों। कोरोना की पहली लहर में जब यह वायरस इतना मारक नहीं था, तब दून समेत पूरे प्रदेश में अधिकतम सख्ती बरती गई थी और नागरिकों में इसका डर भी था। अब कोरोना की दूसरी लहर में हालात विकट हैं तो सिस्टम का रुख नरम है। कर्फ्यू में निरंतर विस्तार तो किया जा रहा है, मगर बिना सख्ती और कड़े प्रतिबंध के सब बेकार है। उद्योगों को चालू अवस्था में रखना कुछ हद तक समझ में आता है, मगर अचानक कार्यालय खोलने का निर्णय बताता है कि सिस्टम ने या तो हथियार डाल दिए हैं या खामोश रुख अपना लिया है। यह स्थिति समाज के लिए खतरनाक साबित हो रही है।

कर्फ्यू का पालन कराने की जिम्मेदारी जिन पुलिस कार्मिकों पर है, वह चौराहों पर तैनात तो हैं, लेकिन सख्ती गायब है। ऐसा भी नहीं है कि अधिकतर लोग कर्फ्यू में मनमानी कर रहे हैं। ऐसे लोग पांच फीसद के करीब ही हैं, जिन्हें न तो अपनी जान की परवाह है और न अपने परिवार की ही। उनके लिए समाज के बारे में सोचना तो बहुत दूर की बात है। हैरत इस बात की है कि क्यों सिस्टम समाज की सुरक्षा के लिए इन पांच फीसद व्यक्तियों पर लगाम नहीं कस पा रहा।

इन हालात में हर किसी के जेहन में इन सवालों का कौंधना और इन्हें पूछा जाना जायज है कि क्या सिस्टम को हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल नहीं दिख रहा? आखिर कैसे, सिस्टम अपनों को खोने के बाद रोते-बिलखते स्वजनों की चीत्कार सुनने के बाद भी इस तरह सामान्य अवस्था में रह सकता है?

लॉकडाउन नहीं तो इस तरह के प्रतिबंध जरूरी विवाह के आवेदन हालात सुधरने तक निरस्त किए जाएं। आवश्यक सेवाओं को छोड़कर सभी तरह के कार्यालय तत्काल बंद किए जाएं। उद्योग के रूप में संचालित बेकरी को छोड़कर सभी बेकरी प्रतिष्ठान बंद किए जाएं, क्योंकि तमाम बेकरी उत्पाद डेयरियों में भी उपलब्ध होते हैं। अंतरजनपदीय निजी परिवहन पर रोक लगाई जाए। मोहल्लों की दुकानों से ही आवश्यक वस्तुओं की खरीद के नियम बनाए जाएं। मुख्य सड़कों पर स्थित स्टोर व किराना दुकानों को बंद किया जाए या सप्ताह में एक दिन खोला जाए। मोहल्लों की आवश्यक वस्तुओं की दुकानों को भी सप्ताह में अधिकतम दो दिन खोलने की छूट दी जाए। जिन दुकानों में 70 फीसद या इससे अधिक आवश्यक वस्तुओं की बिक्री न हो, उन्हें बंद किया जाए, क्योंकि चंद आवश्यक वस्तुओं की आड़ में सामान्य दुकानें भी खोली जा रही हैं। इलेक्शन मोड में कोरोना संक्रमण की रोकथाम के प्रयास किए जाएं।

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