चैत्र के छठ पर्व पर डूबते सूर्य को दिया अ‌र्घ्य

विकासनगर रविवार को पछवादून में पूर्वांचल समाज ने चैत्र के छठ पर्व पर डूबते सूर्य को अ‌र्घ्य दिया।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 19 Apr 2021 01:24 AM (IST) Updated:Mon, 19 Apr 2021 01:24 AM (IST)
चैत्र के छठ पर्व पर डूबते सूर्य को दिया अ‌र्घ्य
चैत्र के छठ पर्व पर डूबते सूर्य को दिया अ‌र्घ्य

जागरण संवाददाता, विकासनगर: रविवार को पछवादून में पूर्वांचल समाज ने चैत्र के छठ पर्व पर डूबते सूर्य को अ‌र्घ्य दिया। सोमवार को उगते सूर्य को अ‌र्घ्य देने के साथ ही छठ पर्व का समापन हो जाएगा। इस बार चैत्र छठ पर्व की शुरुआत 16 अप्रैल को नहाय खाय के साथ हुई थी। 17 को खरना के बाद रविवार की शाम को पूर्वांचल समाज के परिवारों ने डूबते सूर्य को अ‌र्घ्य दिया, जबकि सोमवार को उदीयमान सूर्य को अ‌र्घ्य देकर पर्व का समापन करेंगे।

पूर्वांचल परिवार की कलावती देवी ने बताया कि एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों का सफाया कर देवताओं को विजय दिलाई। छठ पूजा साल में दो बार होती है। एक चैत्र मास और दूसरा कार्तिक मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि, पंचमी तिथि, षष्ठी तिथि और सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है। षष्ठी देवी माता को कात्यायनी माता के नाम से भी जाना जाता है। पहले दिन सेंधा नमक, घी से बना चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है। अगले दिन से उपवास आरंभ होता है। व्रत रखने वाले दिनभर अन्न-जल त्याग कर शाम को खीर बनाकर, पूजा करने के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसे खरना कहते हैं। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अ‌र्घ्य अर्पण करते हैं। अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अ‌र्घ्य चढ़ाते हैं।

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घरों में ही बनाया तालाबनुमा स्थान

पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार समेत देश के कई अन्य भाग में मनाया जाने वाला चैत्र छठ पर्व इस बार सूक्ष्म रूप से मनाया गया। अनुष्ठान और व्रत रखने वालों ने कोरोना संक्रमण को दृष्टिगत रखते हुए घरों में ही पूरी व्यवस्था की। मकान की छतों पर तालाबनुमा स्थान पर उसमें जल भरे और सूर्य को अ‌र्घ्य देकर परंपरा पूर्ण की।

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