बजट आकार और खर्च में 20 हजार करोड़ का फासला, सालाना बजट में से काफी कम राशि हो पा रही है खर्च

हर साल बनने वाले बजट से राज्य की जनता की बड़ी उम्मीदें लगी होती हैं। 80 फीसद से ज्यादा विषम भौगोलिक क्षेत्रफल वाले उत्तराखंड सरीखे राज्य में इन उम्मीदों के खास मायने भी हैं। र्वतीय क्षेत्रों में ढांचागत विकास का अभाव सामाजिक-आर्थिक विषमता की खाई को चौड़ा कर रहा है।

By Sumit KumarEdited By: Publish:Fri, 24 Sep 2021 07:10 AM (IST) Updated:Fri, 24 Sep 2021 07:10 AM (IST)
बजट आकार और खर्च में 20 हजार करोड़ का फासला, सालाना बजट में से काफी कम राशि हो पा रही है खर्च
उत्तराखंड राज्य का बजट विकास को लेकर जन आकांक्षा को पूरा नहीं कर पा रहा है।

रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून: विकास की मुख्यधारा में शामिल होने की छटपटाहट और राज्य आंदोलनकारियों की शहादत के बूते अस्तित्व में आए उत्तराखंड राज्य का बजट विकास को लेकर जन आकांक्षा को पूरा नहीं कर पा रहा है। गैर विकास मदों में लगातार बढ़ते खर्च ने विभागों और उनकी कार्यप्रणाली में विकास को ही गैर जरूरी कर दिया है। इसकी तस्दीक बजट उपयोग के आंकड़े कर रहे हैं। आश्चर्यजनक ढंग से गुजरे वित्तीय वर्षों में बजट आकार की तुलना में खर्च केे लिए काफी कम बजट मंजूर किया जा रहा है। आश्चर्यजनक ढंग से 2020-21 में 20 हजार करोड़ और 2019-20 में 13 हजार करोड़ से ज्यादा धनराशि सालाना बजट में ही गैर जरूरी करार दे दी गई। ये हालत पिछले दो वित्तीय वर्षों के नहीं, बल्कि बीते 20 वर्षों से बने हुए हैं। अब तक जितनी भी सरकारें रहीं, इस समस्या से पार नहीं पा सकी हैं।

बजट आकार और खर्च में बड़ा फासला

हर साल बनने वाले बजट से राज्य की जनता की बड़ी उम्मीदें लगी होती हैं। 80 फीसद से ज्यादा विषम भौगोलिक क्षेत्रफल वाले उत्तराखंड सरीखे राज्य में इन उम्मीदों के खास मायने भी हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में ढांचागत विकास का अभाव सामाजिक-आर्थिक विषमता की खाई को चौड़ा कर रहा है। राज्य बनने के बाद साल-दर-साल इसे पाटने की कोशिशें बजट में ख्वाबों के रूप में दिखाई तो जाती हैं, लेकिन ये जमीन पर उतर नहीं पातीं। ऐसे में राज्य में बजट निर्माण की पूरी प्रक्रिया ही सवालों के घेरे में है। बजट का भारी-भरकम आकार और उसके सदुपयोग के बीच अंतर गहराता जा रहा है। यह अंतर बजट की अन्य सभी मदों में साफ दिखाई देता है। 

केंद्रीय योजनाओं में 8000 करोड़ की मदद

केंद्रपोषित योजनाओं और बाह्य सहायतित योजनाओं में भी बजट शत-प्रतिशत खर्च नहीं हो पा रहा है। पिछले तीन सालों से इन योजनाओं के बजट खर्च में काफी सुधार है, लेकिन इसके बावजूद भी कुल प्रस्तावित बजट में से खर्च के लिए निकाली गई धनराशि को पूरा उपयोग करने में विभागों के पसीने छूट रहे हैं। ये हालत तब है, जब राज्य के पास खुद के संसाधन सीमित हैं। विकास का बड़ा दारोमदार केंद्रपोषित योजनाओं और बाह्य सहायतित योजनाओं पर है। उत्तराखंड को विशेष दर्जे की वजह से ही केंद्रपोषित योजनाओं और केंद्र की मदद से अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं की मदद से संचालित बाह्य सहायतित योजना मद में राज्य को हर साल तकरीबन सात से आठ हजार की वित्तीय मदद मिल रही है।

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हर साल 1000 करोड़ से ज्यादा राशि का उपयोग नहीं

केंद्रपोषित योजनाओं में राज्य को 90: 10 के अनुपात यानी लागत राशि में केंद्र की हिस्सेदारी 90 फीसद और राज्य की हिस्सेदारी 10 फीसद है। बाह्य सहायतित योजनाओं में भी यह अनुपात तकरीबन 72:28 है। केंद्र की कई फ्लैगशिप योजनाओं में तो राज्य को 100 फीसद वित्तीय मदद मिल रही है। ऐसी स्थिति में इन योजनाओं के लिए बजट की व्यवस्था जितनी की जाती है, उससे काफी कम धनराशि खर्च हो रही है। इन दोनों ही योजनाओं में हर साल खर्च नहीं होने वाली राशि 1000 करोड़ से ज्यादा है।

 (राशि: करोड़ रुपये)

वित्तीय वर्ष, कुल बजट, खर्च, अंतर

 2020-21, 57590.76, 37163.01, 20437

 2019-20, 51145.29, 37349.12, 13796.17

 2018-19, 47884.28, 29542.05, 18,342.23

 केंद्रपोषित योजना: (राशि: करोड़ रुपये)

 वित्तीय वर्ष, कुल बजट, बजट स्वीकृति, खर्च

 2020-21, 10127.76, 7862.21, 6804.71

 2019-20, 8788.16, 6113.71, 5374.50

 बाह्य सहायतित योजना: (राशि: करोड़ रुपये)

 वित्तीय वर्ष, कुल बजट, बजट स्वीकृति, खर्च

 2020-21, 1607.64, 1023.56, 935.44

 2019-20, 1600.26, 753.89, 505.05

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