उत्तराखंड में मौसम की बेरुखी से फसलों पर सूखे का संकट, सामान्य से 65 फीसद कम हुई बारिश
उत्तराखंड में इस बार खेती-बागवानी के लिए मौसम बेरहम बना हुआ है। रबी के साथ ही सेब की फसल पर भी संकट मंडरा रहा है। इस बार गेहूं के साथ ही गन्ना और सेब की मिठास कम होने की चिंता किसानों को सता रही है।
विजय जोशी, देहरादून। उत्तराखंड में इस बार खेती-बागवानी के लिए मौसम बेरहम बना हुआ है। रबी के साथ ही सेब की फसल पर भी संकट मंडरा रहा है। इस बार गेहूं के साथ ही गन्ना और सेब की मिठास कम होने की चिंता किसानों को सता रही है। पूरे शीतकाल में बारिश सामान्य से 65 फीसद कम हुई और फरवरी में ही तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया, जिससे फसलों का उत्पादन प्रभावित होने की आशंका है।
फरवरी की शुरुआत में दो दिन हुई बारिश और बर्फबारी ने काश्तकारों को उम्मीद बंधाई थी, लेकिन उसके बाद से मौसम रूठा हुआ है। विशेषज्ञों और किसानों के अनुसार रबी की फसल के लिए फरवरी में अच्छी बारिश बेहद जरूरी है। ऐसा न होने पर उत्पादन में गिरावट और गुणवत्ता में भी कमी आने की आशंका बनी रहती है। बीते मानसून सीजन में सामान्य से 20 फीसद कम बारिश होने के बाद शीतकाल में अच्छी बारिश और बर्फबारी की उम्मीद जताई जा रही थी, लेकिन हुआ यूं मेघों की बेरुखी और बढ़ गई। इसके बाद से बारिश सामान्य से आधी भी नहीं हुई। अक्टूबर से दिसंबर तक सामान्य से 77 फीसद कम बारिश हुई है, जबकि जनवरी और फरवरी में भी मेघ करीब 50 फीसद कम बरसे। इससे खेतों की नमी कम हो गई। तापमान के रिकॉर्ड तोड़ने के बाद तो फसलों पर सूखे का संकट मंडरा रहा है।
कृषि विभाग के निदेशक गौरीशंकर का कहना है कि फरवरी में बारिश कम हुई है, लेकिन अभी अगले एक सप्ताह में भी यदि अच्छी बारिश हो जाती है। तो किसानों की चिंता दूर हो जाएगी। अभी तक रबी की फसल को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा है।
उत्तराखंड में बारिश की स्थिति
माह, सामान्य बारिश, वास्तविक बारिश, अंतर
अक्टूबर, 30.3, 0.1, -99
नवंबर, 7.2, 9.6, 34
दिसंबर, 18.0, 8.1, -55
जनवरी, 34.3, 27.1, -21
फरवरी, 36.2, 12.3, -66
कुल औसत, 25.2, 11.4, -65
(नोट: बारिश मिलीमीटर में और अंतर फीसद में है।)
उत्तराखंड में रबी की फसल का रकबा
फसल, क्षेत्रफल
गेहूं, 342000
जौ, 18500
चना, 670
मटर, 6200
मसूर, 10200
लाही/ सरसों, 13150
आलू (रबी), 5000
प्याज, 3450
(नोट: क्षेत्रफल हेक्टेयर में है और परिवर्तनशील है।)
कम बर्फबारी से सेब की मिठास पर 'खतरा'
उत्तराखंड में इस बार अच्छी बर्फबारी न होने से सेब के उत्पादन पर भी खतरा मंडरा रहा है। सेब के चिलिंग आवर्स पूरे न हो पाने से गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। साथ ही तेजी से बढ़ रहे तापमान से भी सेब को नुकसान पहुंचने की आशंका है। सेब की अच्छी गुणवत्ता के लिए पूरे सीजन में तापमान दो से सात डिग्री के बीच 1200 से 1800 घंटे तक होना जरूरी है। जनवरी और फरवरी में बर्फबारी और बारिश न होने के कारण जमीन में पर्याप्त नमी नहीं है। कुछ बागवानों नए पौधे लगाए भी हैं, लेकिन उन्हें भी सूखने का डर सता रहा है। फरवरी के अंत तक फ्लावरिंग के लिए नमी जरूरी होती है। पहाड़ों में आडू, खुमानी, नाशपाती, प्लम, अखरोट व अन्य फलों पर मौसम की बेरुखी का असर पड़ सकता है।
मुख्य उद्यान अधिकारी डॉ. मीनाक्षी जोशी ने बताया कि फरवरी की शुरुआत में बारिश-बर्फबारी होने से बागवानी को लाभ मिलने की उम्मीद थी, लेकिन उसके बाद से मौसम शुष्क बना हुआ है और तापमान में तेजी से इजाफा हो रहा है। इससे पर्वतीय फलों का उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
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