जंगल में कीजिए उत्तराखंड की लोक विरासत के दर्शन, वन विभाग ने की है ये नायाब पहल

उत्तराखंड की लोक विरासत भी कम समृद्ध नहीं है। यह बात अलग है कि बदलते वक्त का असर इस पर भी पड़ा है। ऐसे में विरासत को संजोए रखने की हर किसी से अपेक्षा रहती है। फिर चाहे वह व्यक्ति हो संस्था अथवा विभाग।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Sat, 20 Nov 2021 01:24 PM (IST) Updated:Sat, 20 Nov 2021 01:24 PM (IST)
जंगल में कीजिए उत्तराखंड की लोक विरासत के दर्शन, वन विभाग ने की है ये नायाब पहल
जंगल में कीजिए उत्तराखंड की लोक विरासत के दर्शन, वन विभाग ने की है ये नायाब पहल।

केदार दत्त, देहरादून। Uttarakhand Tourism नैसर्गिक सुंदरता से परिपूर्ण उत्तराखंड की लोक विरासत भी कम समृद्ध नहीं है। यह बात अलग है कि बदलते वक्त का असर इस पर भी पड़ा है। ऐसे में विरासत को संजोए रखने की हर किसी से अपेक्षा रहती है। फिर चाहे वह व्यक्ति हो, संस्था अथवा विभाग। इस लिहाज से देखें तो वन विभाग की ओर से डोईवाला के नजदीक लच्छीवाला के जंगल में उत्तराखंड की लोक विरासत को अक्षुण्ण रखने के साथ ही सैलानियों को इससे परिचित कराने की नायाब पहल की गई है। लच्छीवाला नेचर पार्क में बने म्यूजियम 'धरोहर' में लोग उत्तराखंड के पारंपरिक बीज, पारंपरिक वाद्ययंत्र, पहनावा, कृषि उपकरण, रोशनी के यंत्र आदि से परिचित हो रहे हैं। साथ ही बटरफ्लाई पार्क, हर्बल गार्डन, फाइकस गार्डन, प्रकृति माता जैसी अनेक पहल सैलानियों को प्रकृति से जोडऩे का संदेश भी दे रही हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि विभाग अन्य क्षेत्रों में भी ऐसी पहल करेगा।

पर्यटन को बढ़ावा देने की दरकार

उत्तराखंड को प्रकृति ने मुक्त हाथों से वरदान दिया है। 71.05 प्रतिशत वन भूभाग वाले उत्तराखंड में आखिर क्या नहीं है। जंगल, सदानीरा, झरने, पहाड़, हिमाच्छादित चोटियां, बुग्याल, पेड़-पौधों की हजारों प्रजातियां, वन्यजीवों, पङ्क्षरदों, तितलियों व मौथ का अनूठा संसार। प्रकृति प्रेमियों के लिए इससे बेहतर जगह और कौन सी हो सकती है। ऐसे में इस प्राकृतिक धरोहर को संजोने के साथ ही इसे रोजगार और पर्यटन से जोडऩा समय की मांग है। पर्यटन भी ऐसा होना चाहिए, जिससे प्रकृति को कोई नुकसान न पहुंचे और सैलानी प्राकृतिक नजारों का आनंद भी लें। इस दिशा में गंभीरता से पहल की जरूरत है। इस बीच राजाजी नेशनल पार्क में सैलानियों को वाहनों के टैक्स व टिकट में छूट देने को इससे जोड़कर देखा जा सकता है। साफ है कि इससे वहां सैलानियों की संख्या बढ़ेगी। इसके साथ ही ये ध्यान रखना होगा कि प्रकृति के मूलस्वरूप में कहीं छेड़छाड़ न हो।

गुलदारों के आतंक ने उड़ाई नींद

वन्यजीव संरक्षण में उत्तराखंड का योगदान किसी से छिपा नहीं है। यहां के जंगलों में फल-फूल रहा वन्यजीवों का कुनबा उसे देश-दुनिया में विशिष्टता भी प्रदान करता है, लेकिन वन्यजीवों में एक जानवर ऐसा भी है, जो सालभर चर्चा के केंद्र में रहता है। यह है गुलदार और चर्चा का कारण है इसके निरंतर बढ़ते हमले। राज्य में वन्यजीवों के हमलों में सबसे अधिक हमले इसी के हैं। वर्तमान में भी पौड़ी, अल्मोड़ा समेत अन्य जिलों में गुलदार के हमले और विभिन्न क्षेत्रों में इनकी सक्रियता सुर्खियों के केंद्र में है। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर इसकी वजह क्या है। गुलदार क्यों मानव के लिए परेशानी का सबब बन रहे हैं। कहीं इनकी संख्या तो नहीं बढ़ रही या जंगल में खाद्य श्रृंखला गड़बड़ा गई है। सवालों की लंबी सूची है। हालांकि, इनके उत्तर पाने को अध्ययन चल रहे हैं, लेकिन इसके आशातीत परिणामों का इंतजार है।

वन गूजरों का विस्थापन बना चुनौती

राज्य के वन क्षेत्रों, विशेषकर कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व में डेरा डाले वन गूजरों के विस्थापन एवं पुनर्वास का विषय अर्से से चुनौती बना हुआ है। वन कानूनों के मुताबिक संरक्षित क्षेत्रों में रिहायश नहीं हो सकती। यदि रिहायश हुई तो इससे वन्यजीवन में खलल पडऩे के साथ ही खतरा भी पैदा हो सकता है। इसे देखते हुए वन क्षेत्रों में रह रहे वन गूजरों के विस्थापन एवं पुनर्वास को कसरत हुई। दोनों टाइगर रिजर्व से वन गूजर गैंडीखाता, आमपोखरा समेत अन्य स्थानों पर विस्थापित किए गए। इसके बावजूद वन क्षेत्रों में काफी संख्या में वन गूजर रह रहे हैं, जिनके पुनर्वास की व्यवस्था होनी है। वन गूजरों के दृष्टिकोण से देखें तो वे सदियों से जंगलों में रहकर जीवनयापन कर रहे हैं। विस्थापन व पुनर्वास को वे अपने अधिकारों पर हमले के तौर पर भी देखते हैं। ऐसे में गहन मंथन कर इस चुनौती को हल करना होगा।

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