उत्तराखंड में बदहाल स्वास्थ्य सुविधाएं, अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं को बेड तक नसीब नहीं हो पा रहे

स्वास्थ्य के मोर्चे पर बेहतरी के लिए सरकार लगातार सुधारात्मक कदम उठा रही है। नए मेडिकल कालेज खोलने और अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाएं जुटाने के साथ ही चिकित्सकों और अन्य स्टाफ के रिक्त पदों को भरने की प्रक्रिया भी गतिमान है।

By Pooja SinghEdited By: Publish:Tue, 19 Oct 2021 10:55 AM (IST) Updated:Tue, 19 Oct 2021 10:55 AM (IST)
उत्तराखंड में बदहाल स्वास्थ्य सुविधाएं, अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं को बेड तक नसीब नहीं हो पा रहे
उत्तराखंड में बदहाल स्वास्थ्य सुविधाएं, अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं को बेड तक नसीब नहीं हो पा रहे

देहरादून, राज्य ब्यूरो। स्वास्थ्य के मोर्चे पर बेहतरी के लिए सरकार लगातार सुधारात्मक कदम उठा रही है। नए मेडिकल कालेज खोलने और अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाएं जुटाने के साथ ही चिकित्सकों और अन्य स्टाफ के रिक्त पदों को भरने की प्रक्रिया भी गतिमान है। लेकिन विभागीय स्तर पर बरती जा रही लापरवाही के चलते हालात अभी भी नहीं बदले। स्थिति यह है कि राजधानी में स्थित प्रदेश के सबसे बड़े महिला अस्पताल में गर्भवती महिलाओं को बेड तक नसीब नहीं हो पा रहे। जबकि यह अस्पताल दून मेडिकल कालेज की महिला विंग है। यहां एक बेड पर दो-दो महिलाओं को लिटाया जा रहा है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक बिस्तर पर दो-दो जच्चा-बच्चा कैसे रह रहे होंगे। तीमारदार की स्थिति क्या होगी, इसका अंदाजा लगाना भी कठिन नहीं है। समग्रता में देखा जाए तो यह किसी लापरवाही से कम नहीं है, जो ऐसे समय में सामने आ रही है, जब हमारी कोविड महामारी से भी जंग जारी है।

सोचिए! ऐसे हालात में अगर कोई जच्चा-बच्चा संक्रमण की चपेट में आ जाए तो इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा। इस राज्य की राजधानी देहरादून के गांधी शताब्दी अस्पताल में भी यही तस्वीर देखी जा सकती है। बेड फुल होने के कारण शाम ढलने के बाद यहां गर्भवती महिलाओं को भर्ती करना चुनौती बन जाता है। जब राजधानी में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं का यह हाल है तो पर्वतीय अंचल के दूरस्थ क्षेत्रोें में, जहां कोई पूछने वाला तक नहीं है, क्या स्थिति होगी। तमाम सुधारात्मक प्रयासों के बावजूद पहाड़ में इन स्थानों पर स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती। यहां से गर्भवती को डंडी-कंडी के सहारे मीलों दूर स्थित अस्पताल पहुंचाने के दौरान कई बार तो प्रसव रास्ते में ही कराने की नौबत आ जाती है।

मामला बिगड़ जाने पर कई बार गर्भवती की जान तक चली जाती है। विडंबना सिर्फ यही नहीं कि पहाड़ में अस्पताल मीलों के फासले पर हैं, बल्कि ज्यादातर अस्पतालों में चिकित्सक, स्टाफ, दवा और अन्य जरूरी सुविधाओं का भी अभाव है। इतना ही नहीं, पर्वतीय जिलों के संयुक्त, बेस व जिला चिकित्सालयों तक का यही हाल है। ऐसे में स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर कतई निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता। ठीक है कि स्वास्थ्य महकमा जनस्वास्थ्य को लेकर गंभीर है, लेकिन इसके लिए उसे बुनियादी स्तर पर ठोस कदम उठाने के साथ ही प्रशासनिक दृढ़ता का भी परिचय देना होगा। तभी व्यावहारिक स्तर पर इसके परिणाम देखने को मिलेंगे। जब राजधानी में स्वास्थ्य सुविधाओं की यह स्थिति है तो पर्वतीय अंचल के उन दूरस्थ क्षेत्रोें में, जहां कोई सुनने-पूछने वाला तक नहीं, क्या स्थिति होगी। 

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