उत्तराखंड: निलंबन, जांच और पोस्टिंग से पूरी हो जाती है कार्यवाही, ये कार्यशैली सिस्टम खड़े करती है सवाल

अनियमितता के आरोप में अभियंताओं का निलंबन होता है इसके बाद दिखावे को जांच और अंत में फिर बड़ी परियोजनाओं में पोस्टिंग। लोक निर्माण विभाग में सड़कों व पुलों के निर्माण में अनियमितताओं के मामलों में हुई कार्रवाई में ऐसा ही नजर आता है।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Sat, 25 Sep 2021 01:50 PM (IST) Updated:Sat, 25 Sep 2021 01:50 PM (IST)
उत्तराखंड: निलंबन, जांच और पोस्टिंग से पूरी हो जाती है कार्यवाही, ये कार्यशैली सिस्टम खड़े करती है सवाल
उत्तराखंड: निलंबन, जांच और पोस्टिंग से पूरी हो जाती है कार्यवाही।

राज्य ब्यूरो, देहरादून। सड़कों के निर्माण में अनियमितता के आरोप में अभियंताओं का निलंबन होता है, इसके बाद दिखावे को जांच और अंत में फिर बड़ी परियोजनाओं में पोस्टिंग। लोक निर्माण विभाग में सड़कों व पुलों के निर्माण में अनियमितताओं के मामलों में हुई कार्रवाई में ऐसा ही नजर आता है। एक-दो मामलों को छोड़ दें तो आरोपित पाए गए अधिकांश अभियंता अब भी अहम परियोजनाओं का हिस्सा बने हुए हैं। यह कार्यशैली कहीं न कहीं सिस्टम पर सवाल खड़े करती है।

शासन में अभी भी सड़कों के निर्माण में अनियमितताओं के 25 से अधिक प्रकरण लंबित हैं, जिनका अध्ययन चल रहा है। हालांकि, इस वर्ष अभी तक छह अभियंता निलंबित हुए हैं। इनमें से दो जेल में है, तो चार अभी निलंबित चल रहे हैं।

प्रदेश में लोक निर्माण विभाग उन प्रमुख विभागों में शामिल है, जिन पर सबसे अधिक बजट खर्च होता है। मौजूदा वित्तीय वर्ष पर ही नजर डालें तो विभाग का बजट तकरीबन 2369 करोड़ रुपये है।

इसमें से लगभग 350 करोड़ रुपये वेतन व अधिष्ठान के हैं। शेष बजट विभिन्न योजनाओं के लिए है। विभाग के पास सभी बड़ी परियोजनाएं होने के कारण राजनीतिक दलों की नजरें भी इस पर टिकी रहती हैं। विभाग में पंजीकृत अधिकांश ठेकेदारों की पीठ पर कहीं न कहीं राजनीतिक हाथ होता है। इस कारण कई बार टेंडर प्रक्रिया सवालों के घेरे में रहती है। निर्माण कार्यों में गुणवत्ता को लेकर भी सवाल उठते हैं। इस दौरान विभाग की भूमिका अमूमन मूकदर्शक की रहती है। मामला उछलने पर फौरी कार्रवाई के नाम पर निलंबन अथवा अटैचमेंट कर मामला दबा दिया जाता है।

इनका राजनीतिक व प्रशासनिक गठजोड़ कितना गहरा होता है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि शासन में लोक निर्माण विभाग के दो अभियंताओं की प्रतिकूल प्रविष्टि की फाइल पूरे 14 माह तक दबी रही। जब सचिव के पास यह प्रकरण आया तब जाकर इस मामले में कार्रवाई हुई। अचरज यह कि 14 माह तक किसी ने इस प्रकरण की सुध ही नहीं ली। वह भी तब, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने स्वयं इसकी संस्तुति की थी। मामला जब सुर्खियां बना तो बीते वर्ष विभाग ने पुराने मामले में भी कार्रवाई की। इसके तहत 19 अभियंताओं से प्रभारी का पदभार वापस ले लिया गया।

इस साल जिन छह अभियंताओं को निलंबित किया गया, उनमें से दो को देहरादून में थानों मार्ग पर गुलर पुल के मामले में निलंबित किया गया। दो अभियंताओं को पौड़ी जिले के दुगड्डा ब्लाक में घटिया निर्माण पर निलंबित किया गया। वह भी तब, जब एक स्थानीय व्यक्ति ने हाथ से नई सड़क की परतें उखाडऩे का वीडियो इंटरनेट मीडिया में साझा किया। दो अभियंताओं को कुमाऊं मंडल में निलंबित किया गयाा। इन्हें एक लाख की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया गया था।

यह भी पढ़ें- पूर्वी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को आवंटित 23 करोड़ की जमीन की जांच शुरू, जानिए पूरा मामला

लोक निर्माण विभाग मंत्री सतपाल महाराज ने बताया कि जहां भी शिकायतें मिल रही हैं, उनकी जांच हो रही है। सभी जांच समयबद्धता से करने को कहा गया है। जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी।

यह भी पढ़ें- खराब आर्थिक हालत से गुजर रहा रोडवेज 800 कार्मिकों को देगा वीआरएस, वेतन पर हर माह इतना खर्च

chat bot
आपका साथी