सत्ता के गलियारे से: त्रिवेंद्र के बाउंसर पर हरदा का हुक

यह चुनावी साल है तो जनता को नेमतों से नवाजने में सरकार कतई कंजूसी नहीं बरत रही। हाल ही में कैबिनेट ने अहम फैसला लिया कि विवाहित महिलाएं अब पुरुषों के साथ भूमि-संपत्ति की सह-खातेदार होंगी। देखा जाए तो यह महिलाओं के लिहाज से महत्वपूर्ण निर्णय है।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Mon, 22 Feb 2021 11:30 AM (IST) Updated:Mon, 22 Feb 2021 11:30 AM (IST)
सत्ता के गलियारे से: त्रिवेंद्र के बाउंसर पर हरदा का हुक
सत्ता के गलियारे से: त्रिवेंद्र के बाउंसर पर हरदा का हुक।

विकास धूलिया, देहरादून। यह चुनावी साल है तो जनता को नेमतों से नवाजने में सरकार कतई कंजूसी नहीं बरत रही। हाल ही में कैबिनेट ने अहम फैसला लिया कि विवाहित महिलाएं अब पुरुषों के साथ भूमि-संपत्ति की सह-खातेदार होंगी। देखा जाए तो यह महिलाओं के लिहाज से महत्वपूर्ण निर्णय है। इसके तहत सरकार ने महिलाओं को भूमि पर मालिकाना हक दिया है। उन्हें भूमि पर ऋण लेने, उसे बेचने का अधिकार भी मिल गया है। खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने इसे अपने चार साल के कार्यकाल का सबसे बड़ा फैसला करार दिया। मामला जब आधी आबादी का हो तो कांग्रेस भला कैसे खामोश रहती। अब इसकी आलोचना तो मुमकिन नहीं, मगर कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव एवं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपने ही अंदाज में त्रिवेंद्र के बाउंसर को हुक करने की कोशिश की। बोले, कभी-कभी डबल इंजन भी समझदारी का काम कर जाता है। पता नहीं, कितनों को इसका मतलब समझ आया होगा।

चुनावी समर में इंटरनेट मीडिया के योद्धा

इंटरनेट मीडिया की मौजूदा दौर में राजनीति में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका है, यह किसी से छिपा नहीं है। अलबत्ता, उत्तराखंड में मुख्य विपक्ष कांग्रेस को अब विधानसभा चुनाव को सालभर का वक्त शेष रहते यह बात समझ में आई। यही वजह है कि पार्टी ने अब इंटरनेट मीडिया में प्रचार अभियान की शुरुआत कर दी है। इस कड़ी में बाकायदा हर लोकसभा क्षेत्र में प्रत्येक बूथ पर सौ योद्धाओं की तैनाती का टार्गेट रखा गया है। दरअसल, अब राजनीति में इंटरनेट मीडिया का इस्तेमाल पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने और विपक्षियों की बखिया उधेड़ने में बखूबी किया जा रहा है। हालांकि, कांग्रेस के कुछ नेता पहले से ही इस मोर्चे पर डटे हैं, लेकिन इनकी संख्या अंगुलियों में गिनने लायक ही है। अब पार्टी ने इसके लिए कैंपेन लांच कर दिया है, तो देखना मजेदार होगा कि नए योद्धा कितनी शिद्दत से अपनी भूमिका से न्याय कर पाते हैं।

दलबदल का शिगूफा, दरबदर होने का डर

चुनाव नजदीक हैं तो दावों, वादों का दौर भी शुरू हो गया है। इसी कड़ी में इन दिनों दलबदल को लेकर शिगूफे छोड़ने में कोई पार्टी पीछे नहीं। कुछ समय पहले कांग्रेस की ओर से बयान आया कि भाजपा के कई विधायक उसके संपर्क में हैं। यह बात दीगर है कि भाजपा में इसका कोई खास रिएक्शन दिखा नहीं, लेकिन कांग्रेस के भीतर ही इस पर दो-दो हाथ जरूर शुरू हो गए। अब ऐसा ही एक और बयान सत्ता के गलियारों में चर्चा में है। इसमें कितनी सच्चाई है, यह तो भविष्य बताएगा। अलबत्ता, दिलचस्प ये कि इससे वे तमाम नेता बगलें झांकते दिख रहे, जो पार्टी-दर-पार्टी लंबा सियासी सफर तय कर चुके हैं। उनसे न तो सफाई देते बन रही और न सच बोलने का साहस ही जुटा पा रहे कि फिलहाल तो उनसे किसी ने संपर्क ही नहीं किया। चलिये, चंद महीनों में सब साफ हो ही जाएगा।

'मैं' और 'हम' में फंसी समन्वय समिति

पिछली बार 70 में से 11 सीटों तक सिमटी कांग्रेस सत्ता में वापसी की मशक्कत में जुटी है। चार साल तक चार कोनों में बैठे इसके दिग्गजों को चुनाव के मौके पर एक साथ बिठाने की जुगत में हाल ही में नए प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव के निर्देशन में समन्वय समिति बनाई गई, लेकिन कहते हैं न कि सिर मुंडाते ही ओले पड़े। पार्टी के एक दिग्गज से इस बाबत पूछा गया तो बोले, समिति की बैठक होगी तो 'मैं' भी शामिल हो जाऊंगा। अब इस 'मैं' को नेता विधायक दल इंदिरा हृदयेश ने तड़ से लपक लिया। बोलीं, जब तक 'मैं' की जगह 'हम' वाली सोच नहीं बनेगी, कुछ नहीं हो सकता। अब आप समझ ही गए होंगे कि 'मैं' वाले दिग्गज कौन हैं। समन्वय समिति का भविष्य क्या होगा, कहने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि जब दो दिग्गज 'मैं' और 'हम' में अटके रहेंगे तो खाक समन्वय बनेगा।

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