आठ दिन में एंबुलेंस का किराया तय नहीं कर सकी उत्तराखंड सरकार, मनमानी पर उतारु हैं एंबुलेंस संचालक
इसे सिस्टम की नाकामी कहें या फिर सरकार की लाचारी। पिछले आठ दिन से एंबुलेंस का किराया तय करने का प्रस्ताव परिवहन मुख्यालय में ही अटका हुआ है। कोरोना जैसी महामारी में जब एंबुलेंस संचालक पूरे प्रदेश में मनमानी पर उतारु हैं।
अंकुर अग्रवाल, देहरादून: इसे सिस्टम की नाकामी कहें या फिर सरकार की लाचारी। पिछले आठ दिन से एंबुलेंस का किराया तय करने का प्रस्ताव परिवहन मुख्यालय में ही अटका हुआ है। कोरोना जैसी महामारी में जब एंबुलेंस संचालक पूरे प्रदेश में मनमानी पर उतारु हैं , ऐसे समय अफसरशाही का यह उदासीन रवैया पूरे सरकारी सिस्टम पर सवालों खड़ा करने के लिए काफी है।
एंबुलेंस का किराया और श्रेणी तय करने को लेकर आरटीओ संदीप सैनी की अध्यक्षता में गठित टीम ने पिछले माह तीस अप्रैल को प्रस्ताव तैयार कर परिवहन मुख्यालय भेजा था। एंबुलेंस को सुविधा व तकनीक के हिसाब से तीन अलग श्रेणी में बांटा गया है। दस किमी व इससे ऊपर की दूरी के लिए इनका किराया तय करने समेत प्रतीक्षा शुल्क, रात्रि शुल्क व 200 किमी से ऊपर किराया तय करने का प्रस्ताव शामिल है। दरअसल, एंबुलेंस का किराया अभी तक उत्तराखंड में तय ही नहीं हैं। यही वजह है एंबुलेंस संचालक मनमाफिक किराया वसूल रहे हैं। शासन ने इस मामले में दून के जिलाधिकारी डा. आशीष कुमार श्रीवास्तव को एंबुलेंस संचालकों की मनमानी पर अंकुश लगाने व उनका किराया तय करने के आदेश दिए थे। जिलाधिकारी ने आरटीओ प्रवर्तन को यह जिम्मेदारी सौंपी।
अब यह मसला राज्य परिवहन प्राधिकरण की बैठक के लिए अटका हुआ है। बताया जा रहा है कि परिवहन आयुक्त की बंगाल चुनाव में ड्यूटी से तीन दिन पहले ही लौटे हैं। ऐसे में सवाल यह उठ रहा कि आयुक्त के बदले जिम्मेदारी संभाल रहे अफसरों ने तुरंत इसमें संज्ञान लेकर कार्रवाई क्यों नहीं की।
तीन श्रेणी में बांटी गई हैं एंबुलेंस
सामान्य एंबुलेंस, बेसिक सपोर्ट एंबुलेंस एवं एडवांस सपोर्ट सिस्टम एंबुलेंस। विभाग ने एंबुलेंस को इन तीन श्रेणी में बांटा है एवं इनमें भी भार के हिसाब से दो श्रेणी बनाई गई हैं। एक श्रेणी 3000 किलो से कम भार वाली जबकि दूसरी इससे ऊपर के भार की है। पहली श्रेणी में वैन, इको व बोलेरो एंबुलेंस को रखा गया है और दूसरी श्रेणी में फोर्स कंपनी की एंबुलेंस।
10 किमी तक 1000 रुपये किराया
परिवहन विभाग सामान्य एंबुलेंस का दस किमी तक का अधिकतम किराया 1000 से रुपये तय करना चाहता है। यह किराया भी अधिकतम छह घंटे के लिए होगा। फिर हर घंटे का 300 रुपये के हिसाब से प्रतीक्षा का शुल्क देना होगा। बेसिक सपोर्ट एंबुलेंस का पहले दस किमी का किराया 2000 रुपये व एडवांस सपोर्ट सिस्टम एंबुलेंस का किराया 3500 रुपये तय करने का प्रस्ताव दिया है। रात में अगर एंबुलेंस संचालित होती है तो सामान्य व बेसिक सपोर्ट एंबुलेंस का रात्रि एकमुश्त शुल्क 750 रुपये जबकि एडवांस सपोर्ट सिस्टम एंबुलेंस के लिए 1500 रुपये अलग से देने होंगे। प्रस्ताव में 200 किमी तक का किराया और उसके बाद प्रति किमी का किराया तय करने का भी जिक्र है। यही नहीं, प्रस्ताव में एंबुलेंस में भी लॉगबुक को रखना अनिवार्य किया गया है। चालक को अनिवार्य रूप से दर्ज करना होगा कि किस मरीज को कहां से लिया और कहां छोड़ा।
हरिद्वार डीएम तय कर चुके हैं किराया
उत्तर प्रदेश में एंबुलेंस का किराया तय करने की जिम्मेदारी सीधे जिलाधिकारी को दी गई। इससे वहां किराया तय करने में विलंब नहीं हुआ। उत्तराखंड सरकार ने भी उत्तर प्रदेश की तर्ज पर जिलाधिकारी को किराया तय करने के अधिकार दे दिए। अभी प्रदेश में अकेला हरिद्वार जिला ऐसा है, जहां पर जिलाधिकारी ने किराया तय कर दिया है। हालांकि, यह फौरी व्यवस्था है। स्थायी किराया परिवहन प्राधिकरण तय करेगा।
यह भी पढ़ें- नित बिगड़ रहे देहरादून के हालात, व्यवस्था भगवान के हाथ; यहां सिर्फ दिखावा बना कोविड कर्फ्यू
वैक्सीन मंगाने में भी सोचती रही सरकार
18 साल की आयु से अधिक वालों के लिए वैक्सीन को लेकर उत्तराखंड सरकार सोचती रह गई, जबकि बाकी राज्य सरकार ने सीधे वैक्सीन कंपनियों से बातचीत कर वैक्सीन के आर्डर तक कर दिए। उत्तराखंड सरकार की हीलाहवाली का ही परिणाम है कि यहां वैक्सीनेशन के कार्य में आठ दिन खाली गुजर गए, जबकि यह कार्य एक मई से शुरू होना था। इसी तरह से रोडवेज बस का अंतरराज्यीय परिवहन रोकने को लेकर भी उत्तराखंड सरकार कोई फैसला नहीं कर सकी, जबकि उत्तर प्रदेश ने न सिर्फ अपनी बसों का अंतरराज्यीय परिवहन बंद कराया बल्कि दूसरे राज्यों की रोडवेज बसों पर भी पाबंदी लगा दी।
जिलाधिकारी डा. आशीष कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि हमें शासन ने एंबुलेंस के किराये का प्रस्ताव तैयार करने के आदेश दिए थे। इस पर आरटीओ की टीम ने एंबुलेंस की श्रेणी तय कर किराये का प्रस्ताव बनाया। शासन को यह प्रस्ताव भेजा गया है। शासन से जो किराया तय किया जाएगा, उसे लागू कराया जाएगा। फिलहाल, एंबुलेंस संचालकों की मनमानी पर प्रशासन व पुलिस की टीमों को निगाह रखने व कार्रवाई के आदेश दिए गए हैं। जहां से शिकायत मिल रही, वहां उचित कार्रवाई की जा रही है।
यह भी पढ़ें- उत्तराखंड में 100 कंपनियां कर रहीं मास्क और पीपीई किट का उत्पादन, पढ़िए पूरी खबर
Uttarakhand Flood Disaster: चमोली हादसे से संबंधित सभी सामग्री पढ़ने के लिए क्लिक करें