जंगल की बात : धधकते जंगल और बेबस वन महकमा

फायर सीजन प्रारंभ होने में भले ही साढ़े तीन माह का वक्त हो लेकिन उत्तराखंड में जंगल शीतकाल से ही धधकने लगे हैं। ऐसे में बेबस वन महकमे की नजरें आसमान की तरफ गड़ी हैं। असल में गुजरे फायर सीजन में नियमित अंतराल में बारिश होती रही।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Sat, 31 Oct 2020 07:54 AM (IST) Updated:Sat, 31 Oct 2020 10:50 AM (IST)
जंगल की बात : धधकते जंगल और बेबस वन महकमा
उत्तराखंड में जंगल शीतकाल से ही धधकने लगे हैं।

देहरादून, केदार दत्त। फायर सीजन प्रारंभ होने में भले ही साढ़े तीन माह का वक्त हो, लेकिन उत्तराखंड में जंगल शीतकाल से ही धधकने लगे हैं। ऐसे में बेबस वन महकमे की नजरें आसमान की तरफ गड़ी हैं। असल में गुजरे फायर सीजन (15 फरवरी से मानसून आने तक की अवधि) में नियमित अंतराल में बारिश होती रही। इससे जंगल नाममात्र को झुलसे। उम्मीद थी कि शीतकाल में बदरा बरसेंगे, मगर अक्टूबर में तो बूंदभर भी बरसात नहीं हुई। सितंबर में भी बारिश 65 प्रतिशत कम थी। सूरतेहाल, जंगलों में नमी कम होने से घास सूखती चली गई और परिणाम सर्दी शुरू होते ही जंगलों के धधकने के रूप में सामने आया है। हालांकि, इस स्थिति के लिए महकमा भी कम जिम्मेदार नहीं है। मौसम के रुख के मद्देनजर समय रहते आग से निबटने को कदम उठाए जाने थे, मगर ऐसा नहीं हुआ। खैर, अब आंख खुली तो हाथ-पैर मारे जा रहे हैं।

गुलदारों को पसंद नहीं घने जंगल

समूचे उत्तराखंड में गुलदार मुसीबत का सबब बने हैं। दो माह के दौरान गुलदार एक दर्जन से अधिक व्यक्तियों की जान ले चुके हैं। ऐसे में स्थिति की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है। जिस तरह से गुलदार आक्रामक हुए हैं, वह दर्शाता है कि इनके व्यवहार में बदलाव आया है। इस सिलसिले में दो गुलदारों पर रेडियो कॉलर लगाकर किए जा रहे अध्ययन में भी इसकी तस्दीक हुई है। इसमें चौंकाने वाली बातें सामने आ रही हैं। नरेंद्रनगर क्षेत्र में हाल में एक गुलदार को रेडियो कॉलर पहनाने के बाद उसे नरेंद्रनगर (टिहरी) से दूर तीसरे जिले के घने जंगल में छोड़ा गया। दो हफ्ते बाद ही यह गुलदार वापस अपने क्षेत्र में लौट गया। ऐसी ही तस्वीर हरिद्वार में रेडियो कॉलर किए गए गुलदार के मामले में भी है। हालांकि, रेडियो कॉलर से दोनों की निरंतर निगरानी हो रही, मगर महकमे की चिंता जरूर बढ़ गई है।

सड़कों पर बेखौफ घूमते जंगली जानवर

हाल में चमोली जिले के अंतर्गत जोशीमठ कस्बे में लगे सीसी टीवी कैमरों में एक भालू के अपने दो बच्चों के साथ रात में बेखौफ घूमने की तस्वीर कैद हुई। जब यह बात सार्वजनिक हुई तो कस्बेवासियों के साथ ही आसपास के क्षेत्रों के निवासियों की चिंता बढऩा लाजिमी था। हालांकि, क्षेत्र में भालू दिखना कोई अचरजभरा नहीं है, मगर जिस तरह से ये जोशीमठ में बेखौफ चहलकदमी कर रहे, वह बड़े खतरे का सबब बन सकता है। न सिर्फ जोशीमठ, बल्कि प्रदेश के अन्य आबादी वाले क्षेत्रों में भी भालू, गुलदार, हाथी समेत दूसरे जंगली जानवरों के बेखौफ धमकने की घटनाएं आए दिन सुर्खियां बन रही हैं। जाहिर है कि इससे वन्यजीवों और मानव के बीच चले आ रहे टकराव में बढ़ोतरी की आशंका बढ़ गई है। यदि वक्त रहते इस समस्या के निदान के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो स्थिति और विकट होते देर नहीं लगेगी।

कुंभ क्षेत्र में वन्यजीवों की धमाचौकड़ी

राजाजी टाइगर रिजर्व से सटे हरिद्वार में अगले साल होने वाले कुंभ को महज दो माह का वक्त रह गया है। इसके लिए तमाम व्यवस्थाएं जुटाई जा रहीं, मगर वन्यजीवों से जुड़ी समस्या का अभी तक निदान नहीं हुआ है। हरिद्वार से लेकर ऋषिकेश, चिडिय़ापुर तक के इलाकों में वन्यजीवों की धमाचौकड़ी निरंतर बनी हुई है। हाथी और गुलदार न सिर्फ सड़कों पर धमक रहे, बल्कि आबादी वाले क्षेत्रों में घुसकर मुसीबतें खड़ी किए हुए हैं। हालांकि, रेडियो कॉलर लगाकर गुलदार व हाथियों के व्यवहार का अध्ययन करने के साथ ही इनकी मॉनीटरिग की जा रही, मगर इस पहल के सकारात्मक परिणाम अभी तक धरातल पर नजर नहीं आ रहे। सूरतेहाल, चिंता ये बढ़ गई है कि यदि वन्यजीवों को आबादी वाले इलाकों में आने से नहीं रोका गया तो कुंभ के दौरान दिक्कतें बढ़ सकती है। जाहिर है कि महकमे को नए रणनीति के साथ मैदान में उतरना होगा।

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