उत्तराखंड: उद्योग के अनुकूल परिवेश निर्माण, जानें- क्या हो रहा बदलाव

बीते कुछ वर्षो में निर्यात को लेकर प्रदेश की रफ्तार बेहतर हुई है। एक्सपोर्ट प्रीपेयर्डनेस इंडेक्स में उत्तराखंड हिमालयी राज्यों की श्रेणी में सिरमौर रहा। सरकार के उत्साह का एक कारण यह भी है कि बीते पांच वर्ष में निर्यात से होने वाली आय भी दोगुने से अधिक हुई है।

By Nitin AroraEdited By: Publish:Wed, 08 Dec 2021 12:58 PM (IST) Updated:Wed, 08 Dec 2021 12:58 PM (IST)
उत्तराखंड: उद्योग के अनुकूल परिवेश निर्माण, जानें- क्या हो रहा बदलाव
उत्तराखंड: उद्योग के अनुकूल परिवेश निर्माण, जानें- क्या हो रहा बदलाव

देहरादून, राज्य ब्यूरो। उत्तराखंड में उद्योगों की स्थापना को गति देने के लिए सरकार के स्तर पर किए जा रहे प्रयास सराहनीय हैं। अब कृषि भूमि को अकृषि में परिवर्तित करने की प्रक्रिया को सरल बनाया जा रहा है। नए नियमों के तहत पर्वतीय क्षेत्रों में साढ़े सात मीटर चौड़े मार्ग पर भी उद्योग स्थापित किए जा सकेंगे, पहले यह मानक नौ मीटर था। इसी तरह मैदानी क्षेत्रों के लिए इस चौड़ाई को 12 मीटर से घटाकर नौ मीटर कर दिया गया है। इसके अलावा नई मेगा पालिसी को भी कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। इसके तहत बड़े उद्योगों के लिए अनुदान की दरों में वृद्धि की गई है और निवेश की सीमा को भी कम किया गया है। इतना ही नहीं, उत्तराखंड में पहली बार निर्यात नीति भी अस्तित्व में आई है। नई नीति में अगले पांच वर्ष में निर्यात का लक्ष्य बढ़ाकर 30 हजार रुपये तक पहुंचाया जाएगा, जो वर्तमान में करीब 16 हजार करोड़ रुपये है। इसके साथ ही 30 हजार व्यक्तियों के लिए रोजगार सृजन भी किया जाएगा। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बजट की व्यवस्था भी की जा रही है।

निसंदेह बीते कुछ वर्षो में निर्यात को लेकर प्रदेश की रफ्तार बेहतर हुई है। पिछले दिनों एक्सपोर्ट प्रीपेयर्डनेस इंडेक्स (ईपीआइ) में उत्तराखंड हिमालयी राज्यों की श्रेणी में सिरमौर रहा। सरकार के उत्साह का एक कारण यह भी है कि बीते पांच वर्ष में निर्यात से होने वाली आय भी दोगुने से अधिक हुई है। बावजूद इसके तस्वीर के दूसरे पहलू पर भी गौर करने की जरूरत है। प्रदेश में एनडी तिवारी से लेकर त्रिवेंद्र सिंह रावत तक लगभग सभी मुख्यमंत्रियों ने अपने कार्यकाल में उद्योगों को पहाड़ चढ़ाने की कोशिश की। इसके तहत उद्यमियों को लुभाने के लिए तरह-तरह की रियायतें भी दी गईं, लेकिन उद्योग पहाड़ नहीं चढ़ सके।

वजह प्रदेश का विषम भूगोल और ढांचागत सुविधिाओं का अभाव। सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं का विकास किए बिना पर्वतीय क्षेत्रों में उद्योगों को गति देना आसान नहीं होगा। यही कारण है कि ज्यादातर उद्योग हरिद्वार, देहरादून और ऊधमसिंह नगर तक सिमटे हुए हैं। सरकार को पर्यटन और तीर्थाटन के अलावा औद्यानिकी, जैविक कृषि उत्पाद और हस्तशिल्प आदि को बढ़ावा देना चाहिए। पर्वतीय क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित कर तस्वीर बदली जा सकती है। ये ऐसे उद्योग हैं, जिनसे पर्यावरण तो सुरक्षित रहेगा ही, रोजगार के अवसर भी विकसित होंगे। ऐसा नहीं है कि सरकार का ध्यान इन क्षेत्रों पर नहीं है। इस दिशा में काम हो रहा है, लेकिन इसके लिए सरकारी प्रक्रिया को सरल बनाने की जरूरत है।

उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले वक्त में हालात बदलते दिखाई देंगे।

उद्योगों के लिए अनुकूल माहौल तैयार करने को सरकार हर स्तर पर प्रयास कर रही है। पर्वतीय क्षेत्रों में उद्योग स्थापित करने के लिए अभी बहुत कुछ करना शेष है।

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