सत्ता के गलियारे से: राजनीति में मुद्दे ऐसे ही फिसलते हैं नेताजी
Uttarakhand Assembly Elections 2022 कांग्रेस फूल कर कुप्पा होती नजर आ रही थी वजह भी ठीक। उत्तराखंड में जल्द विधानसभा चुनाव हैं तो तीन मुद्दों के बूते कांग्रेस को चुनावी वैतरणी पार करने का भरोसा था। इनमेंकृषि कानून गन्ना मूल्य भुगतान के अलावा चारधाम देवस्थानम बोर्ड शामिल थे।
विकास धूलिया, देहरादून। Uttarakhand Assembly Elections 2022 कुछ दिन पहले तक कांग्रेस फूल कर कुप्पा होती नजर आ रही थी, वजह भी ठीक। उत्तराखंड में जल्द विधानसभा चुनाव हैं, तो तीन मुद्दों के बूते कांग्रेस को चुनावी वैतरणी पार करने का भरोसा था। इनमें तीन कृषि कानून और गन्ना मूल्य भुगतान के अलावा चारधाम देवस्थानम बोर्ड शामिल थे। माहौल भांप भाजपा खेमे में कुछ चिंता दिख रही थी। फिर प्रधानमंत्री मोदी ने अचानक तीनों कृषि कानून वापस लेने का एलान कर डाला। कांग्रेस को मायूसी तो हुई, मगर चिंता नहीं। मोदी के बाद मुख्यमंत्री धामी बैटिंग करने लगे। उत्तर प्रदेश से पांच रुपये अधिक गन्ने की कीमत कर दी। अगला कदम देवस्थानम बोर्ड को भंग करने का उठा दिया। घोषणा कर दी कि सरकार इससे संबंधित अधिनियम वापस लेने जा रही है। इसी हफ्ते विधानसभा सत्र है, इसमें हो जाएगा। अब कांग्रेस को सूझ नहीं रहा, ऐन मौके पर पूरी चुनावी रणनीति की हवा जो निकल गई।
इन दिनों तो किशोर ही चल रहे हैं
एक ने सवाल किया, कांग्रेस की राजनीति में क्या चल रहा है। उधर से जवाब मिला, आजकल तो केवल किशोर चल रहे हैं। दरअसल, बात यह है कि किशोर की छवि सौम्य नेता की है, वह बहुत आक्रामक नहीं, लेकिन अब चुनाव से पहले ऐसे तेवर कि छा गए। पूर्व मंत्री व पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय चर्चा बटोर रहे हैं अपनी ही पार्टी नेताओं को कठघरे में खड़ा करने के लिए। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को इन्हें घेरने के लिए चिर प्रतिद्वंद्वी शूरवीर सिंह सजवाण को आगे करना पड़ा। किशोर की नाराजगी की चर्चा इतनी बढ़ी कि इंटरनेट मीडिया में उनके भाजपा में शामिल होने की बात चल निकली। यह तक कहा गया कि प्रधानमंत्री मोदी के कार्यक्रम में यह पालाबदल होगा, जो हुआ नहीं। अब नहीं मालूम कि इन चर्चाओं में कितना दम है, लेकिन इससे कांग्रेस के कई नेताओं का दम जरूर निकला जा रहा है
फिर मोदी मैजिक में फंसती दिख रही कांग्रेस
प्रधानमंत्री मोदी उत्तराखंड आकर विधानसभा चुनाव का शंखनाद कर गए। पांच साल पहले पिछले चुनाव के मौके पर जो घोषणाएं की थीं, अब धरातल पर उतरने को तैयार हैं, तो पूरा हिसाब पेश कर दिया। लगे हाथ 15 हजार करोड़ की नई परियोजनाओं का शिलान्यास कर जनादेश मांग लिया। अकसर चुनावी घोषणाएं लालीपाप की तरह होती हैं, मगर मोदी का अंदाज ही अलग है। जब पहले किए वादे पूरे हो गए, तो भला नई घोषणाओं पर किसी को भरोसा क्यों न हो। यह तो ठीक, मगर कांग्रेस की दिक्कत अलग है। जब से मोदी राष्ट्रीय राजनीति में उतरे हैं, उत्तराखंड उनका मुरीद रहा है। दो लोकसभा चुनाव में सौ प्रतिशत सफलता, विधानसभा चुनाव में यह आंकड़ा 80 प्रतिशत से अधिक। कांग्रेस की चुनावी नैया के खेवनहार हरीश रावत मुकाबले में मोदी का सामना करने से कतराते रहे हैं, मगर मोदी ने उन्हें फिर उसी मुकाम पर ला खड़ा कर दिया।
तो चुनावी डंका बजाने को अब आएंगे राहुल
कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे राहुल गांधी पर अब उत्तराखंड में पार्टी की पूरी उम्मीदें टिकी हैं। मोदी अपनी चुनावी रैली में बगैर नाम लिए कांग्रेस को कठघरे में खड़ा कर चुके हैं। उन्होंने कांग्रेस को विकास कार्यों के नाम पर चुनाव लडऩे की चुनौती दी। बाकायदा पिछली मनमोहन सरकार के 10 साल और अपनी सरकार के सात साल के कार्यकाल में उत्तराखंड में किए गए विकास कार्यों के विवरण के साथ। प्रधानमंत्री के तीन महीने में तीन दौरों से बैकफुट पर आई कांग्रेस ने आखिरकार राहुल को मोर्चे पर उतारने का फैसला कर लिया। बांग्लादेश युद्ध में पाकिस्तान पर निर्णायक जीत के अवसर पर 16 दिसंबर को विजय दिवस मनाया जाता है। इसी दिन देहरादून में राहुल की रैली होगी। उत्तराखंड सैन्य बहुल प्रदेश है, लिहाजा कांग्रेस ने काफी सोच-समझ कर राहुल के दौरे के लिए दिन चुना। देखते हैं राहुल इस बार उत्तराखंड में क्या करिश्मा दिखाते हैं।