Uttarakhand Assembly Elections 2022: उत्तराखंड में सत्ता वापसी की कांग्रेस की लड़ाई पर हावी हैं अंतर्कलह
सत्ता में वापसी के लिए हाथ-पांव मार रही है। चुनाव कार्यक्रमों को धार देने के लिए हाईकमान के निर्देशन में केंद्रीय टीम से लेकर राज्य के क्षत्रप अभियान में जुटे हुए हैं बावजूद इसके कांग्रेस में अंतर्कलह पर प्रभावी तरीके से अंकुश अभी तक नहीं लग पाया है।
राज्य ब्यूरो, देहरादून। Uttarakhand Assembly Elections 2022 2022 में प्रदेश की सत्ता में वापसी को हाथ-पांव मार रही कांग्रेस में अंतर्कलह रह-रहकर सतह पर आ रहा है। क्षत्रपों में अंदरखाने खींचतान और मनमुटाव का असर संगठन ही नहीं, प्रदेश कार्यालय परिसर को भी गिरफ्त में ले रहा है। पार्टी हाईकमान के सभी को एकजुट रहने और सामूहिक नेतृत्व के तौर पर चुनाव में उतरने की नसीहत पर हावी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा गुटीय खींचतान को हवा दे रही है। समय रहते इस पर लगाम नहीं कसी तो पार्टी के प्रदर्शन पर इसका असर दिखाई पड़ सकता है।
उत्तराखंड में सांगठनिक तौर पर मजबूत होने के बावजूद कांग्रेस 2017 से किसी भी चुनाव में अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन के लिए तरस गई है। 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन इतना बुरा रहा कि उसे सिर्फ 11 विधानसभा सीटों पर संतोष करना पड़ा। इसके बाद तकरीबन पांच वर्ष की अवधि में हुए सहकारी संघों, शहरी निकायों के चुनाव में पार्टी की स्थिति नाजुक ही रही। 2014 के बाद 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में पांच में से भी एक भी संसदीय सीट उसे नसीब नहीं हुई। त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में भी ऐसी स्थिति नहीं बन पाईं, जिससे भाजपा के माथे पर बल पड़ते दिखाई दिए हों।
हर मोर्चे पर डटी हैं केंद्रीय टीम
यह हालत तब है, जब शहरों से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में पार्टी के पास अपना जनाधार है। चुनावी राजनीति में पार्टी के इस कमजोर प्रदर्शन के पीछे गुटबाजी और क्षत्रपों के निजी हितों को पार्टी पर तरजीह देने को ही माना गया। राज्य में विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस हाईकमान बेहद सजग है। केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश स्तर से लेकर बूथ स्तर तक प्रदर्शन को सुधारने के लिए क्षत्रपों पर अपनी टीम को तवज्जो दी है। जनता का फीडबैक लेने से लेकर चुनाव घोषणापत्र तैयार करने और बूथ स्तर तक जनसंपर्क में केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश पर विभिन्न राज्यों से छोटी-छोटी टीम को मोर्चे पर लगाया गया है।
क्षत्रपों की एकजुटता बनी चुनौती
इस सबके बावजूद क्षत्रपों में एकजुट कर साथ लाना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय अगले चुनावी मोर्चे पर लोहा लेने से पहले पिछली हार की टीस को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष हरीश रावत को गाहे-बगाहे निशाने पर ले रहे हैं। वहीं तीन महीने पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद प्रीतम सिंह कई मौके पर असहज स्थिति पर तंज कस रहे हैं। पार्टी नेृतत्व के सामूहिक नेतृत्व को लेकर रीति-नीति स्पष्ट करने के बावजूद एक गुट बार-बार नेतृत्व के मुद्दे को निर्णायक बनाने के लिए जंग छेड़े हुए है।
प्रदेश कांग्रेस कार्यालय पर गुटबाजी हावी
गुटीय खींचतान का असर प्रदेश कांग्रेस कार्यालय पर भी दिखाई दे रहा है। कार्यालय में कमरे कम होने के बावजूद एकदूसरे पर हावी रहने की राजनीति के चलते कमरों को बंद कर ताले ठोके गए हैं। बीते रोज करीब दो माह से बंद पड़े कमरे काे खुलवाने के लिए ताला तोड़ने की नौबत आ गई। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के बगल का ही कमरा पार्टी की चुनावी रणनीति को धार देने के बजाय ढाई माह से बंद है। क्षत्रपों की खींचतान प्रदेश कार्यालय के हालात सामान्य बनाने के आड़े आ रही है। चुनाव आचार संहिता लागू होने में गिने-चुने दिन शेष रह गए हैं, ऐसे में पार्टी के भीतर खींचतान पर अंकुश नहीं लगा तो चुनावी अभियान और टिकट वितरण के मौके पर स्थितियां ज्यादा असहज दिख सकती हैं।
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