सत्तारूढ़ भाजपा बेहतर कोविड मैनेजमेंट के बूते जाएगी मैदान में, कांग्रेस इसके ठीक उलट इसी मुद्दे को लेकर होगी हमलावर

Uttarakhand Assembly Election 2022 उत्तराखंड में अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनाव से कुछ महीने पहले राज्य में जिस तरह के हालात हैं उनमें तय है कि विधानसभा चुनाव भी कोरोना के असर से अछूते नहीं रहेंगे।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Sun, 02 May 2021 03:10 PM (IST) Updated:Sun, 02 May 2021 03:10 PM (IST)
सत्तारूढ़ भाजपा बेहतर कोविड मैनेजमेंट के बूते जाएगी मैदान में, कांग्रेस इसके ठीक उलट इसी मुद्दे को लेकर होगी हमलावर
सत्तारूढ़ भाजपा बेहतर कोविड मैनेजमेंट के बूते जाएगी मैदान में।

राज्य ब्यूरो, देहरादून। Uttarakhand Assembly Election 2022 उत्तराखंड में अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनाव से कुछ महीने पहले राज्य में जिस तरह के हालात हैं, उनमें तय है कि विधानसभा चुनाव भी कोरोना के असर से अछूते नहीं रहेंगे। सत्तारूढ़ भाजपा के लिए महामारी के दौरान स्वास्थ्य सुविधाओं में बढ़ोतरी समेत कोविड मैनेजमेंट बड़ा मुद्दा होगा, तो इसके ठीक उलट मुख्य विपक्ष कांग्रेस इसी मुद्दे पर भाजपा की घेराबंदी की कोशिश करेगी। अलबत्ता, कोरोना के कारण सपा, बसपा, उत्तराखंड क्रांति दल जैसी पार्टियों के समक्ष मुश्किलें पेश आ सकती हैं।

उत्तराखंड में अब तक हुए चार विधानसभा चुनावों में से भाजपा और कांग्रेस ने दो-दो बार जीत दर्ज कर सरकार बनाई है। मतलब यह कि इन दोनों सियासी पार्टियों का राज्य में व्यापक वजूद है। इस स्थिति में यह तय है कि अगले विधानसभा चुनाव में भी यही दोनों पार्टियां आमने-सामने नजर आएंगी। अगला विधानसभा चुनाव, अब तक हुए चार विधानसभा चुनावों से इस मायने में कुछ अलग होगा कि इस बार कोरोना महामारी भी एक मुद्दा बन सकती है। जिस तरह का परिदृश्य अभी नजर आ रहा है, विपक्ष कांग्रेस कोविड मैनेजमेंट और राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर भाजपा सरकार पर हमले का कोई मौका नहीं चूक रही है। लाजिमी तौर पर विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस इस बात को जनता की अदालत में उठाने की रणनीति अख्तियार करेगी।

दूसरी तरफ, सत्तारूढ़ भाजपा कोरोना काल के दौरान स्वास्थ्य सुविधाओं में हुई बढ़ोतरी और बेहतर प्रबंधन को कांग्रेस के आरोपों के जवाब में जनता के सामने रखने की तैयारी में है। वैसे भी भाजपा इस महामारी के दौरान अपने पार्टी के मजबूत नेटवर्क के बूते पीड़ितों की मदद में मुस्तैदी से जुटी हुई है। भाजपा के समक्ष इस मोर्चे पर तो कांग्रेस फिलहाल कहीं नहीं दिख रही है।

अगले विधानसभा चुनाव में उन सियासी पार्टियों को दिक्कत पेश आ सकती है, जिनका संगठन सीमित दायरे में सिमटा हुआ है।मसलन सपा और बसपा। इन दोनों पार्टियों का जनाधार महज दो-तीन मैदानी भूगोल वाले जिलों में ही है। यह बात दीगर है कि सपा अब तक के चार विधानसभा चुनावों में कभी भी अपना खाता नहीं खोल पाई है। उधर, राज्य गठन के बाद तीसरी सियासी ताकत के रूप में खुद को स्थापित करने में सफल रही बसपा का पिछले विधानसभा चुनाव में सूपड़ा साफ हो गया था। 

कोरोना काल के दौरान भाजपा और कांग्रेस, दोनों पार्टियां अलग-अलग मोर्चों पर सक्रिय रहीं, मगर सपा और बसपा कहीं नजर नहीं आई। इस लिहाज से भी सपा और बसपा को अगले विधानसभा चुनाव में कड़ी चुनौती से जूझना पड़ेगा। उत्तराखंड क्रांति दल का भी ऐसा ही कुछ हाल है। हां, आम आदमी पार्टी ने पिछले कुछ महीनों में राज्यभर में जरूर सक्रियता दिखाई है। कोरोना काल में भी आप ने पूरे राज्य में संगठन का नेटवर्क तैयार करने का काम किया है। आप के चुनावी प्रदर्शन पर अगले विधानसभा चुनाव में सबकी नजर रहेगी।

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