सतत पर्यावरण को सतत आजीविका से जोड़ना आवश्यक : राज्यपाल
सतत पर्यावरण विषय पर बोलते हुए राज्यपाल मौर्य ने कहा कि ‘ग्रीन एनर्जी’ के साथ-साथ हमें ‘ग्रीन लाइफ स्टाइल’ को बढ़ावा देना होगा।
देहरादून, जेएनएन। राज्यपाल श्रीमती बेबी रानी मौर्य ने शुक्रवार को राजभवन में ‘सतत पर्यावरण’ विषय पर आयोजित एक वेबिनार को संबोधित किया। यह वेबिनार दून विश्वविद्यालय और सोसाइटी फार साइंस आफ क्लाइमेट चेंज एंड सस्टेनेबल एनवायरमेंट, नई दिल्ली द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था।
सतत पर्यावरण विषय पर बोलते हुए राज्यपाल मौर्य ने कहा कि ‘ग्रीन एनर्जी’ के साथ-साथ हमें ‘ग्रीन लाइफ स्टाइल’को बढ़ावा देना होगा। उन्होंने कहा कि लाकडाउन ने दिखा दिया कि मनुष्य अपने पर्यावरण का कितना नुकसान कर रहा था। अब हमें संयमित और संतुलित जीवन शैली अपना कर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में आगे बढ़ना होगा।
उन्होंने कहा कि सतत पर्यावरण को सतत आजीविका तथा सतत रोजगार का पर्याय बनाना होगा। उत्तराखंड हिमालयी वन संपदा से भरपूर राज्य है। राज्यपाल ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यावरण के अनुकूल रोजगार के अवसर सृजित किए जाने आवश्यक है। सहकारिता और स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से जैविक खेती को और अधिक बढ़ावा देना होगा जिससे स्थानीय फल, फूल, सब्जियों, जड़ी-बूटियों के माध्यम से लोगों की आर्थिकी में सुधार हो सके।
राज्यपाल ने दून विश्वविद्यालय को इस वेबिनार की संस्तुतियों पर एक ‘वर्किंग नोट’ बनाकर प्रस्तुत करने के निर्देश भी दिये। वेबिनार में दून विश्वविद्यालय द्वारा विगत अन्तर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर आयोजित प्रतियोगिता के विजेताओं की घोषणा भी की गई। वेबिनार में कोविड-19 लाकडाउन और पर्यावरण पर प्रभाव से संबंधित विषय पर छात्र-छात्राओं ने विचार भी व्यक्त किये। दून विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो एके कर्नाटक ने पर्यावरण संरक्षण और हरित अर्थव्यवस्था पर विचार व्यक्त किया।
बीआर आम्बेडकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय के डीन प्रो आरपी सिंह ने खाद्य-कृषि-जल के अंतरसंबंधों पर विचार व्यक्त करते हुए वर्तमान युग में विकास के पर्यावरण अनुकूल साधनों पर जोर दिया। भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की डा निशा मेंदीरत्ता ने उनके विभाग द्वारा संचालित जलवायु परिवर्तन से संबंधित विभिन्न राष्ट्रीय मिशनों की जानकारी दी।
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ओबियस फाउण्डेशन के सीईओ डा राम बूझ ने पारम्परिक पर्यावरणीय ज्ञान के वैज्ञानिक प्रमाणीकरण की आवश्यकता पर बल दिया। दून विश्वविद्यालय की प्रो कुसुम अरूणाचलम आदि वक्ताओं ने भी वेबिनार में अपने विचार व्यक्त किये।
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