Uttarakhand Politics: गुजरात फार्मूले से उत्तराखंड भाजपा में बेचैनी, जानिए क्‍या है वजह

Uttarakhand Politics उत्तराखंड में वर्ष 2017 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 70 में से 57 सीटों पर जीत दर्ज की थी। आगामी चुनाव में पार्टी के लिए अपने इसी प्रदर्शन की पुनरावृत्ति कसौटी बन गया है।

By Sumit KumarEdited By: Publish:Fri, 17 Sep 2021 07:10 AM (IST) Updated:Fri, 17 Sep 2021 07:10 AM (IST)
Uttarakhand Politics: गुजरात फार्मूले से उत्तराखंड भाजपा में बेचैनी, जानिए क्‍या है वजह
विधानसभा चुनाव में टिकट कटने की आशंका से चिंतित भाजपा के दिग्गजों को गुजरात फार्मूले ने झटका दे दिया है।

विकास धूलिया, देहरादून: आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट कटने की आशंका से चिंतित भाजपा के दिग्गजों को पार्टी के गुजरात फार्मूले ने एक बड़ा झटका दे दिया है। गुजरात में भाजपा ने जिस तरह विजय रूपाणी मंत्रिमंडल को दरकिनार कर बिल्कुल नई टीम भूपेंद्र पटेल को सरकार का जिम्मा सौंपा, उससे साफ है कि अब भाजपा चुनावी राज्यों में टिकट बटवारे से लेकर सत्ता में आने पर नई सरकार के गठन तक, सब कुछ बदल डालने जैसा चौंकाने वाला कदम उठा सकती है।

उत्तराखंड में वर्ष 2017 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 70 में से 57 सीटों पर जीत दर्ज की थी। आगामी चुनाव में पार्टी के लिए अपने इसी प्रदर्शन की पुनरावृत्ति कसौटी बन गया है। इसके लिए भाजपा ने चुनावी वर्ष में चार महीने के अंदर दो-दो बार सरकार में नेतृत्व परिवर्तन जैसा अप्रत्याशित कदम उठाने से भी गुरेज नहीं किया। सरकार के साथ ही संगठन का जिम्मा भी नए चेहरे को सौंप दिया गया। अब भाजपा का पूरा फोकस जिताऊ प्रत्याशियों की तलाश पर है। पार्टी इसके लिए कई स्तरों पर सर्वे करा चुकी है और यह क्रम अब भी जारी है।

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पिछले महीने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उत्तराखंड में तीन दिन प्रवास कर पार्टी की चुनावी तैयारी का जायजा लिया। इस दौरान विधायकों की परफार्मेंस रिपोर्ट भी पेश की गई। सूत्रों के मुताबिक पार्टी के सर्वे में डेढ़ दर्जन से ज्यादा विधायक तय मानकों पर खरा नहीं उतरे। इसके संकेत साफ हैं कि भाजपा अपने मौजूदा विधायकों में से एक-तिहाई को रिपीट नहीं करने जा रही है। इसके बाद से ही भाजपा विधायकों में बेचैनी दिख रही है। इसकी परिणति विधायकों के पार्टी नेताओं के साथ विवाद के रूप में सामने आ रही है। पिछले एक महीने के दौरान ऐसे कई मामले सार्वजनिक हो चुके हैं।

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यही नहीं, विधानसभा चुनाव से ठीक पहले विधायकों से लेकर मंत्रियों तक के आपसी मतभेद भी सतह पर उभरते दिख रहे हैं, जिससे पार्टी खासी असहज है। अब भाजपा ने जिस तरह का बड़ा कदम गुजरात में सरकार के गठन को लेकर उठाया, उसने उत्तराखंड के भाजपा नेताओं को भी चिंता में डाल दिया है। खासकर मंत्रियों और वरिष्ठ विधायकों, जो आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट की गारंटी मानकर चल रहे हैं, के लिए यह साफ संदेश है कि पार्टी की रीति-नीति और परफार्मेंस ही सब कुछ है। अगर इस पैमाने पर फिट नहीं बैठे तो यह कतई जरूरी नहीं कि उन्हें प्रत्याशी बनाया ही जाए।

केंद्रीय मंत्री एवं उत्तराखंड भाजपा के चुनाव प्रभारी प्रल्हाद जोशी का कहना है कि भाजपा की कोर कमेटी है, संसदीय बोर्ड है। प्रत्याशियों के चयन के संबंध में पार्टी नेतृत्व पूरी जानकारी लेता है। अभी यह तय नहीं किया गया है कि उत्तराखंड में किसे टिकट दिया जाना है और किसे नहीं। इस बारे में पार्टी नेतृत्व आने वाले दिनों में निर्णय लेगा।

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