Uttarakhand Assembly Election 2022: खोई पहचान फिर हासिल करने की मशक्कत में जुटा उक्रांद

Uttarakhand Assembly Election 2022 विधानसभा चुनाव को देखते हुए उत्तराखंड क्रांति दल एक बार फिर अपनी पहचान प्रदेश के क्षेत्रीय दल के रूप में स्थापित करने की मशक्कत में जुट गया है। इसके लिए दल कई मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाने की तैयारी कर रहा है।

By Sumit KumarEdited By: Publish:Thu, 02 Dec 2021 03:06 PM (IST) Updated:Thu, 02 Dec 2021 03:06 PM (IST)
Uttarakhand Assembly Election 2022: खोई पहचान फिर हासिल करने की मशक्कत में जुटा उक्रांद
उत्तराखंड क्रांति दल के सामने सबसे बड़ी चुनौती जनता का खोया विश्वास वापस हासिल करने की है।

राज्य ब्यूरो, देहरादून: Uttarakhand Assembly Election 2022 विधानसभा चुनाव को देखते हुए उत्तराखंड क्रांति दल एक बार फिर अपनी पहचान प्रदेश के क्षेत्रीय दल के रूप में स्थापित करने की मशक्कत में जुट गया है। इसके लिए दल एक बार फिर जल, जंगल और जमीन के साथ ही पलायन और बेरोजगारी के मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाने की तैयारी कर रहा है। साथ ही खोया जनाधार वापस पाने के लिए ग्राम स्तर तक दल खुद को मजबूत कर रहा है। हालांकि, दल के सामने सबसे बड़ी चुनौती जनता का खोया विश्वास वापस हासिल करने की है।

उत्तत्राखंड को अलग राज्य बनाने की अवधारणा के साथ उत्तराखंड क्रांति दल अस्तित्व में आया था। राज्य आंदोलन में उक्रांद की खासी महती भूमिका रही। यही कारण रहा कि राज्य गठन के बाद उक्रांद मजबूत राजनीतिक दल के रूप में जनता के बीच खड़ा था। इसका असर पहले विधानसभा चुनाव में देखने को मिला। वर्ष 2002 में उक्रांद ने गैर मान्यता प्राप्त पंजीकृत दल के रूप में चुनाव लड़ा। दल ने इस चुनाव में 62 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। जनता ने उक्रांद को पूरा सहयोग दिया। दल को कुल 5.49 प्रतिशत वोट के साथ ही चार सीटों पर जीत भी हासिल हुई। इसी वोट प्रतिशत के आधार पर उक्रांद को राज्य स्तरीय राजनैतिक दल के रूप में मान्यता मिली और वह प्रदेश का पहला क्षेत्रीय राजनैतिक दल बन गया। वर्ष 2007 के दूसरे विधानसभा चुनाव में उक्रांद का मत प्रतिशत यथावत, यानी 5.49 प्रतिशत रहा, लेकिन दल को केवल तीन ही सीट पर जीत मिली। उक्रांद चुनाव के बाद भाजपा को समर्थन देकर सरकार में शामिल हो गया। उसके दो विधायक मंत्री बने। इसे उक्रांद के लिए एक बड़े अवसर के रूप में देखा गया।

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अफसोस यह कि उक्रांद सत्ता से मिली ताकत को नहीं संभाल पाया। दल मजबूत होने के बजाय आपसी कलह के कारण कमजोर हुआ और कई धड़ों में बंट गया। इससे दल का चुनाव चिह्न भी छिन गया। वर्ष 2012 के तीसरे विधानसभा चुनाव में उक्रांद ने 44 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे, लेेकिन दल को केवल एक सीट मिली। उसका वोट प्रतिशत भी घट कर 1.93 रह गया। इस बार उसके एकमात्र विधायक ने कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए समर्थन दिया और मंत्री पद हासिल किया।

बावजूद इसके दल मजबूत होने के बजाय कमजोर होता गया। वर्ष 2017 के चौथे विधानसभा चुनाव में जनता ने उक्रांद के सत्ता के पीछे दौडऩे के चरित्र को देखते हुए उससे पूरी तरह कन्नी काट ली। सत्ता से बाहर होने के बाद उक्रांद के नेताओं को एक बार फिर दल की याद आई। अब दल के तकरीबन सभी गुट एक हो गए हैं। ऐसे में अब वे पूरी ताकत के साथ एक बार फिर क्षेत्रीय मुद्दों को लेकर चुनाव में उतरने की तैयारी में जुटे हुए हैं।

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