कितनी रंग लाएगी उक्रांद में एका की मुहिम, पढ़िए पूरी खबर
उत्तराखंड क्रांति दल अलग राज्य निर्माण की मांग का पर्याय माना जाता था। दल का गठन ही अलग राज्य की अवधारणा के साथ हुआ मगर जब उत्तराखंड अलग राज्य बन गया दल नेताओं की आपसी खींचतान और महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ गया।
राज्य ब्यूरो, देहरादून: उत्तराखंड क्रांति दल अलग राज्य निर्माण की मांग का पर्याय माना जाता था। दल का गठन ही अलग राज्य की अवधारणा के साथ हुआ, मगर जब उत्तराखंड अलग राज्य बन गया, दल नेताओं की आपसी खींचतान और महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ गया। खासकर, मौजूदा दौर में में जिस तरह कई राज्यों में क्षेत्रीय दल अहम भूमिका निभा रहे हैं, उक्रांद अपना वजूद बचाने की लड़ाई लड़ रहा है। अब विधानसभा चुनाव निकट हैं तो दल के नेता फिर सक्रिय हुए हैं। तजुर्बेकार नेता और पूर्व विधायक काशी सिंह ऐरी को दल की कमान सौंप कर उक्रांद ने अपनी चुनावी तैयारियों का आगाज कर दिया है।
अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय से उक्रांद एक मजबूत क्षेत्रीय दल के रूप में उभरा। तत्कालीन उत्तर प्रदेश की विधानसभा में भी दल के विधायक रहे। नौ नवंबर 2000 को उत्तराखंड अलग राज्य बना। वर्ष 2002 की शुरुआत में उत्तराखंड में पहले विधानसभा चुनाव हुए, तो दल का प्रदर्शन खासा बेहतर रहा। चार विधायकों ने पहली विधानसभा में उक्रांद का प्रतिनिधित्व किया। वर्ष 2007 में हुए दूसरे विधानसभा चुनाव से उक्रांद के प्रदर्शन में गिरावट आनी शुरू हुई। हालांकि तब भी दल के तीन विधायक निर्वाचित हुए थे।
इस चुनाव में भाजपा को सरकार बनाने के लिए मदद की जरूरत पड़ी तो उक्रांद इसके लिए आगे आया। इसके एवज में उक्रांद को सरकार में हिस्सा मिला। होना तो यह चाहिए था कि सत्ता में हिस्सेदारी हासिल कर दल अपनी जड़े मजबूत करता, संगठन के नेटवर्क को विस्तार देने की कोशिश की जाती, लेकिन हुआ ठीक इसके उलट। इससे पार्टी में धड़ेबाजी बढ़ गई और बिखराव की शुरुआत हो गई। इसका असर वर्ष 2012 में हुए तीसरे विधानसभा चुनाव में साफ नजर आया, जब उक्रांद का एक ही प्रत्याशी जीत दर्ज कर विधानसभा तक पहुंच पाया। पूर्ण बहुमत न मिल पाने के कारण इस बार कांग्रेस को बाहरी समर्थन की दरकार हुई तो उक्रांद के एकमात्र विधायक को भी मंत्री बनने का मौका मिल गया।
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सत्ता में लगातार हिस्सेदारी का नतीजा यह हुआ कि वर्ष 2017 के चौथे विधानसभा चुनाव में उक्रांद को एक भी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई। एक विधायक चुने भी गए मगर निर्दलीय के रूप में। इस सबसे उक्रांद ने कोई सबक लिया हो, लगता नहीं। अब जबकि राज्य चौथे विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खडा है, उक्रांद के नेता नए सिरे से एकजुटता कायम करने की कोशिशों में जुट गए हैं। अब यह देखना दिलचस्प रहेगा कि उक्रांद में एकजुटता अगर कायम होती है तो आगामी विधानसभा चुनाव में जनमत को अपने पक्ष में मोडने में उसे कितनी कामयाबी मिल पाती है।
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