मुश्किलों से भरी है वीरकाटल और मंगल्या गांव की डगर, पढ़िए पूरी खबर

यमकेश्वर प्रखंड कहने को राजधानी देहरादून से सबसे नजदीक है लेकिन यहां के कई क्षेत्र आज भी बुनियादी जरूरतों के लिए तरस रहे हैं।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Tue, 21 Jan 2020 03:21 PM (IST) Updated:Tue, 21 Jan 2020 08:37 PM (IST)
मुश्किलों से भरी है वीरकाटल और मंगल्या गांव की डगर, पढ़िए पूरी खबर
मुश्किलों से भरी है वीरकाटल और मंगल्या गांव की डगर, पढ़िए पूरी खबर

ऋषिकेश, जेएनएन। पौड़ी जनपद का यमकेश्वर प्रखंड कहने को राजधानी देहरादून से सबसे नजदीक है, लेकिन यहां के कई क्षेत्र आज भी बुनियादी जरूरतों के लिए तरस रहे हैं। कुछ गांव अबतक रोशन नहीं हो पाए, तो कई गांव ऐसे हैं, जहां सड़क न होने से लोग जिंदगी की गाड़ी को किसी तरह धकेल रहे हैं। सबसे बड़ी दुविधा की स्थिति तब होती है, जब इन गांवों से किसी बीमार को चिकित्सालय पहुंचाना होता है। ऐसी स्थिति में यहां ग्रामीणों के कंधे ही एंबुलेंस बन जाते हैं। 

यमकेश्वर का क्षेत्र पंचायत बूंगा ऐसी ही जटिलताओं का दूसरा नाम है। बूंगा के मंगल्यागांव ग्राम सभा और बूंगा ग्राम सभा के खंड गांव वीरकाटल और डौंर तक पहुंचने के लिए अभी भी पांच किलोमीटर की पैदल दूरी तय करनी पड़ती है। पथरीला और ऊबड़खाबड़ रास्ता ही नहीं बल्कि यहां के जनमानस को अपने घर, गांव तक पहुंचने के लिए नियति से भी जंग लड़नी पड़ती है। सरकारी लापरवाही की विडंबना इस गांव के रास्ते को तय करते समय नजर आती है। यहां पैदल मार्ग पर वीरकाटल गदेरा पड़ता है। 

इस गदेरे पर पहले पक्का पुल हुआ करता था, लेकिन वर्ष 2013 की आपदा में यह पुल बह गया। तब से पुल की जगह पांच बिजली के पोल अस्थाई पुल का काम कर रहे हैं। इसे विडंबना ही कहेंगे कि पिछले सात सालों में यहां एक अदद पुलिया का भी निर्माण नहीं हो पाया। कुछ दिन पहले वीरकाटल निवासी नरेंद्र सिंह रौथाण की तबियत अचानक बिगड़ गयी। वह चलने में असमर्थ थे तो ग्रामीणों ने उन्हें कुर्सी के सहारे डंडी बनाकर पांच किलोमीटर दूर मोहनचट्टी मुख्य मार्ग तक पहुंचाया। 

स्थानीय निवासी कमल, राजेश, मंजीत, उपेंद्र संजीव आदि बताते हैं कि इस तरह की चुनौतियों से आए दिन ग्रामीणों को रूबरू होना पड़ता है। उनका कहना है कि आपदा में बही पुलिया भी अभी तक नहीं बन पाई है। जबकि स्वीकृति के बावजूद आज तक सड़क का काम शुरू नहीं हो पाया। ग्रामीणों का कहना है कि इन परिस्थितियों में अब ग्रामीणों के समक्ष आंदोलन की एक मात्र रास्ता बचता है। 

आलू-प्याज की खेती ने भी तोड़ा दम 

वीरकाटल क्षेत्र कभी आलू और प्याज की खेती के लिए पूरे क्षेत्र में पहचान रखता था। मगर, आज सरकारी उपेक्षा के कारण आलू-प्याज की खेती भी यहां दम तोड़ चुकी है। यहां वीरकाटल गदेरे से खेतों को सिंचित करने वाली नहर भी आपदा की भेंट चढ़ गयी थी। तब से न तो खेतों को सिंचाई के लिए पानी मिल पा रहा है और ना ही जिम्मेदार विभाग सिंचाई नहरों की सुध ले रहा है। आलम यह है कि ग्रामीण सोना उगलने वाले इन खेतों को बंजर छोड़ने को मजबूर हैं। 

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बूंगा के क्षेत्र पंचायत सदस्य सुदेश भट्ट का कहना है कि क्षेत्र में सड़क न होने के कारण ग्रामीणों को हर रोज परेशानी का सामना करना पड़ता है। बूंगा-रणखोली-वीरकाटल सड़क कई वर्ष पहले स्वीकृत हो चुकी है, लेकिन आज तक विभागीय कागजों में धूल फांक रही है। पैदल मार्ग पर वीरकाटल गदेरे में बनी पुलिया का दोबारा निर्माण नहीं हो पाया। इस संबंध में संबंधित विभागों से पत्राचार किया जा रहा है। अगर विभाग इस ओर ध्यान नहीं देता तो ग्रामीण आंदोलन को बाध्य होंगे। 

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