अध्यात्म के साथ वैज्ञानिक ज्ञान का स्त्रोत है संस्कृत

राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीइआरटी) उत्तराखंड की ओर से संस्कृत साहित्य में विज्ञान विषय पर दो दिवसीय अखिल भारतीय शोध संगोष्ठी में संस्कृत के व्यापक स्वरूप पर चर्चा की गई।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 24 Nov 2021 07:34 PM (IST) Updated:Wed, 24 Nov 2021 07:34 PM (IST)
अध्यात्म के साथ वैज्ञानिक ज्ञान का स्त्रोत है संस्कृत
अध्यात्म के साथ वैज्ञानिक ज्ञान का स्त्रोत है संस्कृत

जागरण संवाददाता, ऋषिकेश : राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीइआरटी) उत्तराखंड की ओर से 'संस्कृत साहित्य में विज्ञान' विषय पर दो दिवसीय अखिल भारतीय शोध संगोष्ठी में संस्कृत के व्यापक स्वरूप पर चर्चा की गई। वक्ताओं ने कहा कि संस्कृत को सिर्फ कर्मकांड की भाषा समझना उचित नहीं है। बल्कि संस्कृत आध्यात्म के साथ-साथ वैज्ञानिक ज्ञान की भी स्त्रोत है।

जयराम आश्रम ऋषिकेश में दो दिवसीय संगोष्ठी में आठ राज्यों के 11 विश्वविद्यालय तथा अन्य शिक्षण संस्थानों के शिक्षकों ने प्रतिभाग किया। मुख्य अतिथि संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार के कुलपति प्रो. देवी प्रसाद त्रिपाठी ने कहा भारत प्राचीन काल से ही ज्ञान की भूमि रहा है। यहां ज्ञान की गंगा वैदिक काल से बहती चली आ रही है। नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय यहां अपार ज्ञान के केंद्र रहे हैं। वर्तमान समय में संस्कृत ग्रंथों में निहित विज्ञान को उजागर कर आमजन तक पहुंचाए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि पायथागोरस से कई वर्ष पहले बोधायन ने गणित की महत्वपूर्ण प्रमेय दी थी। इसी तरह आर्यभट्ट ने पांचवीं शताब्दी में ही परिधि और व्यास के संबंध को दशमलव के चार स्थानों तक शुद्ध मान के रूप में प्रस्तुत किया था, जिसे वर्तमान में पाई के रूप में जाना जाता है।

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए एससीइआरटी के अपर निदेशक डा. आरडी शर्मा ने कहा कि संस्कृत भाषा को वर्तमान समय में रोजगार से जोड़े जाने की आवश्यकता है। जिससे नईं पीढ़ी का संस्कृत विषय के प्रति रुझान बढ़ेगा। उन्होंने संस्कृत विषय को प्रोत्साहित तथा इसमें निहित ज्ञान के प्रसार के लिए अनुवादकों को भी प्रोत्साहित किए जाने पर जोर दिया। पाठ्यक्रम एवं अनुसंधान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रदीप रावत ने कहा कि संस्कृत किसी जाति या धर्म विशेष की भाषा न होकर अपने में व्यापक दृष्टिकोण वाली भाषा है। डा. शशिशेखर मिश्रा के संचालन में चले कार्यक्रम में मंगलाचरण के रूप में डा. उषा कटियार ने संस्कृत में मां शारदे की वंदना प्रस्तुत की। इस अवसर पर डा. उमेश चमोला, डा. राकेश गैरोला, डा. संजीव चेतन, डा. अनिल मिश्र, शिव प्रकाश वर्मा, केएस नेगी भी उपस्थित थे।

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संस्कृत विशेषज्ञों ने विभिन्न विषयों पर प्रस्तुत किए शोध पत्र

अखिल भारतीय शोध संगोष्ठी के पहले दिन पांच सत्र आयोजित किए गए। जिसमें विशेषज्ञों ने शोध पत्र भी प्रस्तुत किए। शिक्षा विद्यापीठ वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय कोटा राजस्थान के असिस्टेंड प्रो. डा. पतंजलि मिश्र की अध्यक्ष व डा. साधना डिमरी के संचालन में चले इस सत्र में संस्कृत साहित्य में गणित विषय पर डा. मुस्तफीजुर्रहमान तथा सुनील कुमार रतूड़ी ने शोध पत्र प्रस्तुत किये। दूसरे सत्र में संतोष तिवारी तथा आरती सिन्हा ने संस्कृत साहित्य में संगीत विषय शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। सत्र की अध्यक्षता उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार के असिस्टेंट प्रो. डा. प्रकाश पंत तथा संचालन डा. आरती जैन ने किया। वहीं तीसरे सत्र में संस्कृत साहित्य में विमानशास्त्र तथा विमान वर्णन विषय पर कार्तिक शर्मा तथा डा. हरिशंकर डिमरी ने शोध पत्र प्रस्तुत किए। इस सत्र की अध्यक्षता दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रो. डा. कुलदीपक शुक्ल व संचालन गिरीश तिवारी ने किया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के असिस्टेंट प्रो. डा. फिरोज की अध्यक्षता व सोहन सिंह नेगी के संचालन में चले चौथे सत्र में चौथे सत्र में डा. आरती जैन तथा राजीव पांथरी ने संस्कृत साहित्य में राजनीति विज्ञान विषय शोध पत्र प्रस्तुत किये। वहीं अंतिम सत्र में संस्कृत साहित्य में कृषि विज्ञान विषय पर डा. नीलेश कुमार ने शोध पत्र प्रस्तुत किया। इस सत्र की अध्यक्षता दिल्ली विवि के असि. प्रोफेसर डा. विजय शंकर द्विवेदी तथा संचालन डा.शशिशेखर मिश्र ने किया।

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