ठप पड़ सकता है पब्लिक ट्रांसपोर्ट का पहिया, 50 फीसद यात्री पर वाहन चलाने को राजी नहीं ट्रांसपोर्टर

प्रदेश सरकार ने कोरोना संक्रमण रोकने के लिए सार्वजनिक परिवहन में यात्री क्षमता 50 फीसद करने का आदेश तो कर दिया मगर ट्रांसपोर्टरों ने इसे सिरे से नकार दिया है। वे इस शर्त के साथ कुछ रियायत मांग रहे हैं जो सरकार ने नहीं दी हैं।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Sat, 17 Apr 2021 02:06 PM (IST) Updated:Sat, 17 Apr 2021 02:06 PM (IST)
ठप पड़ सकता है पब्लिक ट्रांसपोर्ट का पहिया, 50 फीसद यात्री पर वाहन चलाने को राजी नहीं ट्रांसपोर्टर
देहरादून के तहसील चौक के समीप विक्रम चालक द्वारा इस तरह भरी गईं सवारियां।

जागरण संवाददाता, देहरादून। प्रदेश सरकार ने कोरोना संक्रमण रोकने के लिए सार्वजनिक परिवहन में यात्री क्षमता 50 फीसद करने का आदेश तो कर दिया मगर ट्रांसपोर्टरों ने इसे सिरे से नकार दिया है। वे इस शर्त के साथ कुछ रियायत मांग रहे हैं, जो सरकार ने नहीं दी हैं। ट्रांसपोर्टर टैक्स व बीमे में छूट के अलावा किराया बढ़ोत्तरी की मांग कर रहे। निजी बसों व दून सिटी बस, मैक्सी-कैब, ऑटो समेत विक्रम यूनियनों ने इस स्थिति में वाहन संचालन न करने का एलान किया है। सभी यूनियनों के अनुसार 50 फीसद यात्री के साथ संचालन में खर्चा रुपया है, जबकि आमदनी अठ्ठनी, ऐसे में वाहन संचालन मुनासिब नहीं।

पिछले साल कोरोना संक्रमण के कारण लॉकडाउन के बाद 19 मई को सरकार ने सार्वजनिक परिवहन सेवाओं को संचालन की अनुमति दी थी। उस वक्त भी वाहन में पचास फीसद यात्री क्षमता की शर्त लगाई थी, जिस पर ट्रांसपोर्टर राजी नहीं थे। बाद में सरकार ने किराया दोगुना कर दिया, तब ट्रांसपोर्टर संचालन को मान गए। सितंबर में सरकार ने पचास फीसद यात्री क्षमता वाली शर्त हटाकर सौ फीसद यात्री क्षमता के संग संचालन की छूट दे दी और बढ़ाया किराया फिर सामान्य कर दिया।

इसके बाद से पूरे प्रदेश में वाहन सुचारू चल रहे थे, लेकिन अब कोरोना संक्रमण दोबारा बढ़ने पर राज्य सरकार ने सार्वजनिक यात्री वाहनों में फिर से पचास फीसद यात्री परिवहन वाली शर्त लागू कर दी है। हालांकि, इस बार किराया दोगुना नहीं किया गया है। ऐसे में ट्रांसपोर्टर नाराज हैं। ट्रांसपोर्टर पचास फीसद यात्री पर राजी तो हैं, लेकिन उनकी शर्त है कि प्रति यात्री किराया दोगुना किया जाए।

खड़ी कर देंगे निजी व सिटी बसें 

दून जनपद में करीब डेढ़ हजार निजी व सिटी बसों का संचालन होता है। देहरादून शहर में 300 सिटी व निजी बसें दौड़ती हैं जबकि दून-डाकपत्थर रूट पर करीब 200 बसें। इसी तरह ऋषिकेश से टीजीएमओ से संबद्ध 650 बसें स्थानीय मार्गो व 350 बसें यात्र मार्ग पर संचालित होती हैं। देहरादून स्टेज कैरिज वेलफेयर एसोसिएशन अध्यक्ष राम कुमार सैनी के मुताबिक डाकपत्थर से दून के एक चक्कर में करीब 4000 रुपये का कुल खर्चा आता है। यदि पचास फीसद यात्रियों समेत बस का संचालन किया जाए तो आमदनी हद से हद 1700-1800 रुपये के आसपास बैठती है। ट्रांसपोर्टर को पूरा दिन में सिर्फ एक चक्कर मिलता है। ऐसे में बस का संचालन कराना मुमकिन ही नहीं। इसी तरह दून सिटी बस सेवा महासंघ के अध्यक्ष विजय वर्धन डंडरियाल ने बताया कि सिटी बसें पहले ही घाटे में हैं और 304 में से 200 बसें ही रूटों पर दौड़ रही। सभी बसें टू-बाइ-टू सीटों वाली हैं। ऐसे में बसों में पचास फीसद यात्री बैठाने पर एक बस में सिर्फ 12 से 15 यात्री ही बैठेंगे। जिससे ईंधन का खर्चा भी नहीं निकलेगा।

पर्वतीय क्षेत्रों में भी राहत नहीं

पर्वतीय क्षेत्रों में संचालित होने वाली प्रमुख कंपनियों ने भी पचास फीसद यात्री में सेवा देने पर असहमति जताई है। उक्त कंपनियों का कहना है कि सरकार वाहनों की खाली सीटों का किराया अथवा ईंधन दे तो तभी बसों का संचालन संभव हो सकता है। गढ़वाल मंडल में टिहरी गढ़वाल मोटर ऑनर्स कारपोरेशन के संग यातायात पर्यटन विकास सहकारी संघ लिमिटेड ऐसी प्रमुख कंपनियां है जो गढ़वाल मंडल के सभी मेन और संपर्क मार्गों पर लोकल बसें संचालित करती है। दोनों कंपनियों की संयुक्त लोकल रोटेशन व्यवस्था समिति के अध्यक्ष नवीन रमोला ने कहा कि 50 प्रतिशत यात्री संख्या पर्वतीय क्षेत्र में वाहन ले जाना मुमकिन ही नहीं है। इस परिस्थिति में राज्य सरकार को चाहिए कि बसों के तेल का खर्च वहन करे या खाली सीटों का किराया दे। सरकार यह नहीं कर सकती तो दोगुना किराया लेने की छूट दी जाए। उन्होंने कहा कि इन शर्तों के पूरा होने के बाद ही बसों का संचालन हो सकता है। संयुक्त रोटेशन के तहत एक हजार बसें संचालित होती हैं।

ऑटो-विक्रम भी हो सकते हैं ठप

सरकार ने ऑटो में एक सवारी, जबकि विक्रमों में तीन सवारी बैठाने की छूट दी है लेकिन इस पर ट्रांसपोर्टर राजी नहीं। मामले में दून ऑटो रिक्शा यूनियन अध्यक्ष पंकज अरोड़ा ने कहा कि अगर कोई दंपती ऑटो से जाना चाहता है तो इस शर्त में उसे दो ऑटो करने होंगे, जो किसी के लिए संभव नहीं है। ऑटो यूनियन ने दो सवारी की छूट मांगी है। वहीं, विक्रम यूनियन के अध्यक्ष राजेंद्र कुमार ने पांच सवारी बैठाने की छूट मांगी है। उनका कहना है कि एक दिन में एक विक्रम पर 500 से 700 रुपये तक का खर्चा आता है। पचास फीसद यात्री लेकर चलते हैं तो कमाई हद से हद 250-300 रुपये तक होगी। ऐसे में जेब से थोड़ी पैसे भरेंगे। दून में करीब 800 विक्रम व 3000 ऑटो चलते हैं।

रोडवेज प्रबंधन ने जारी किए आदेश

सरकार के पचास फीसद यात्री क्षमता के आदेश के बाद रोडवेज प्रबंधन ने शुक्रवार को सभी डिपो एजीएम के लिए इस संबंध में आदेश जारी कर दिए हैं। महाप्रबंधक कार्मिक आरपी भारती की ओर से आदेश में बसों में पचास फीसद यात्री बैठाने का आदेश दिया गया है। इसमें दो वाली सीट पर एक यात्री जबकि तीन वाली सीट पर दो यात्रियों को बैठाया जाएगा। इसके साथ ही यात्रियों की संख्या के अनुसार बस रूट पर भेजने के आदेश दिए गए हैं। यदि यात्री की संख्या पर्याप्त नहीं है तो बसों के फेरे कम करने को कहा गया है। वहीं, रोडवेज कर्मी इस फैसले से नाराज दिखे। उनका कहना है रोडवेज पहे ही घाटे में चल रहा है। पांच माह का वेतन लंबित है और ऐसे में आधी यात्री क्षमता के साथ बसों के संचालन से उसका घाटा और बढ़ जाएगा।

शुक्रवार को नहीं दिखा कोई असर

सरकार के आदेश के बावजूद शुक्रवार को रोडवेज, सिटी बस, निजी बस, विक्रम और ऑटो में पूरी सीटों पर यात्री बैठे मिले। कुछ बसों में तो ओवरलोडिंग तक दिखी। विक्रम संचालक नौ से दस सवारी बैठाकर चलते रहे, जबकि ऑटो में भी तीन से चार सवारी बैठाई गई। शारीरिक दूरी का अनुपालन नहीं किया गया। वहीं, परिवहन विभाग की ओर से भी आदेश के अनुपालन के लिए कदम नहीं उठाए गए।

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