परिवहन विभाग में पदोन्नति के छह माह बाद भी नहीं हुए तबादले, पढ़िए पूरी खबर
परिवहन विभाग की कार्यशैली भी अजब है। एक ओर पर्वतीय जिलों के कार्यालयों में तैनात करने के लिए अधिकारी नहीं हैं वहीं पदोन्नत किए गए अधिकारियों को मैदानी जिलों के पुराने कार्यालयों में बरकरार रखा गया है। इनमें से कई तो इन कार्यालयों में पांच-पांच साल से जमे हुए हैं।
राज्य ब्यूरो, देहरादून। परिवहन विभाग की कार्यशैली भी अजब है। एक ओर पर्वतीय जिलों के कार्यालयों में तैनात करने के लिए अधिकारी नहीं हैं, वहीं पदोन्नत किए गए अधिकारियों को मैदानी जिलों के पुराने कार्यालयों में ही बरकरार रखा गया है। इनमें से कई तो इन कार्यालयों में पांच-पांच साल से जमे हुए हैं। यह स्थिति तब है जब पदोन्नति पर अनिवार्य रूप से दुर्गम में तैनात किए जाने की व्यवस्था है।
परिवहन विभाग ने इसी वर्ष जनवरी में प्रथम श्रेणी के सात परिवहन कर अधिकारियों को सहायक संभागीय परिवहन अधिकारी (एआरटीओ) के रूप में पदोन्नति प्रदान की। इन अधिकारियों में एक अधिकारी पांच साल से एक ही जगह में तैनात हैं तो दूसरे को एक ही जगह तैनात हुए चार साल से अधिक का समय बीत चुका है। शेष अधिकारी सात माह से लेकर तीन वर्ष तक एक ही स्थान पर जमे हुए हैं। इन अधिकारियों की पदोन्नति के बाद अनिवार्य रूप से दुर्गम स्थानों पर तैनात किया जाना था।
यह व्यवस्था उत्तराखंड लोक सेवकों के लिए वार्षिक स्थानांतरण अधिनियम 2017 के नियम 18 (2) में की गई है। इतना ही नहीं इस समय पर्वतीय जिलों में एआरटीओ के पद भी रिक्त चल रहे हैं। विभाग में मौजूद रिक्त पदों पर नजर डालें तो इस समय दुर्गम क्षेत्र के रूप में चिह्नित पौड़ी में एआरटीओ के दो, अल्मोड़ा में एआरटीओ के दो, पिथौरागढ़ में एआरटीओ एक, बागेश्वर में एआरटीओ का एक और रानीखेत में एआरटीओ का एक पद रिक्त चल रहा है।
यह स्थिति तब है जब प्रदेश में दुर्घटनाओं का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। इस वर्ष के पहले छह माह यानी जून तक प्रदेश में बीते वर्ष की तुलना में 52.55 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। मृतकों की संख्या में 37 प्रतिशत और घायलों की संख्या में 47 प्रतिशत की बढोतरी देखने को मिली है। बावजूद इसके पर्वतीय क्षेत्रों में एआरटीओ के पद रिक्त चल रहे हैं। परिवहन विभाग द्वारा इन अधिकारियों की पदोन्नति के बाद तैनाती के लिए पत्रावली शासन को भेजी गई। बावजूद इसके आज तक इसमें कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है।
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