अपनी बोली में समझेगा जन-जन, कैसे बचेगा अपना वन; जानिए जंगलों को आग से बचाने के लिए वन महकमे की नायब पहल
सोचिये। न हरियाली न पहाड़ न पंछियों की चहचहाहट न जंगली जानवरों को देखने का रोमांच और न ही पर्यटकों के लिए कोई आकर्षण। इन सबके बिना कैसा दिखेगा अपना उत्तराखंड। इसलिए वन बचाएं अपनी पहचान बचाएं। वनों में जलती सिगरेट बीड़ी या माचिस की तीली न डालें।
केदार दत्त, देहरादून: 'सोचिये। न हरियाली न पहाड़, न पंछियों की चहचहाहट न जंगली जानवरों को देखने का रोमांच और न ही पर्यटकों के लिए कोई आकर्षण। इन सबके बिना कैसा दिखेगा अपना उत्तराखंड। इसलिए वन बचाएं, अपनी पहचान बचाएं। वनों में जलती सिगरेट, बीड़ी या माचिस की तीली न डालें। चरवाहे, पर्यटक या कोई भी अन्य व्यक्ति वनों के नजदीक आग न छोड़े। किसी शरारत, आपसी रंजिश या वन उपज के लिए वनों में आग न लगाएं। वन अग्नि दिखाई देने पर तुरंत नजदीकी वन चौकी को सूचित करें या फिर टोल फ्री नंबर पर फोन करें। क्योंकि, वन हैं आपके, बचाओ इन्हें आग से।Ó
पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील 71 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में जंगलों को आग से बचाने के लिए इन दिनों वन महकमा जनमानस को यह संदेश दे रहा है। यह अधिक से अधिक व्यक्तियों तक कैसे पहुंचे, इसके लिए हिंदी के अलावा गढ़वाली और कुमाऊंनी में भी इसे रिकार्ड कराया गया है। अब रेडियो व इंटरनेट मीडिया के माध्यम से इसे प्रसारित कराने पर फोकस किया गया है, ताकि आमजन अपनी ही बोली में समझ सके कि जंगल कैसे बचेंगे। हर साल वनों की आग से जूझते आ रहे उत्तराखंड में इस मर्तबा सर्दियों से ही वनों के धधकने का क्रम शुरू हो गया था। पिछले साल अक्टूबर से अब तक आग की 2531 घटनाओं में 3426 हेक्टेयर जंगल तबाह हो चुका है। 51 हजार से ज्यादा पेड़ मर गए तो 210 हेक्टेयर में लगाए गए हजारों पौधे पेड़ बनने से पहले ही नष्ट हो गए। आग बुझाने के दौरान आठ व्यक्तियों को जान गंवानी पड़ी, जबकि दो घायल हुए हैं।
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सूरतेहाल, वन महकमे ने अब जंगल बचाने में आमजन का अधिकाधिक साथ लेने की ठानी है। इसी कड़ी में उन्हें अपनी बोली भाषा में यह समझाने का प्रयास किया जा रहा कि वे वनों को कैसे बचा सकते हैं। अपर प्रमुख वन संरक्षक (ईको टूरिज्म) बीके गांगटे के अनुसार हिंदी के अलावा गढ़वाली व कुमाऊंनी में रिकार्ड कराए गए वनों को आग से बचाने संबंधी संदेश अब वाट््सअप गु्रपों के माध्यम से भी वायरल लिए जा रहे हैं। इसके पीछे मंशा यही है कि यह संदेश अधिकाधिक व्यक्तियों तक पहुंचे और वे सचेत होने के साथ वन बचाने में सहयोग करें। विभाग के सभी अधिकारियों व कार्मिकों से भी कहा गया है कि वे इन संदेशों को अधिक से अधिक वायरल करें।
वन एवं पर्यावरण मंत्री डा.हरक सिंह रावत का कहना है कि वनों का संरक्षण प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी है। वन और जन के बीच का रिश्ता और गहरा हो, इसी के दृष्टिगत स्थानीय निवासियों को उनकी बोली में ही वन बचाने संबंधी आडियो संदेश भेजे जा रहे हैं। अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे पंचायत प्रतिनिधियों को भी इस मुहिम से जोड़ें।
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