आजादी के बाद भी मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे हैं यहां के ग्रामीण

इसे गांव का दुर्भाग्य कहें या शासन-प्रशासन की लापरवाही। लेकिन यह सच है आजादी के सात दशक बाद भी उत्‍तरकाशी सीमांतवर्ती जिले के कामरा सांखाल और मटियालौड़ गांव में ग्रामीण मूलभूत सुविधा यातायात स्वास्थ्य शिक्षा और पेयजल किल्लत से परेशान हैं।

By Sumit KumarEdited By: Publish:Thu, 21 Oct 2021 07:24 PM (IST) Updated:Thu, 21 Oct 2021 07:58 PM (IST)
आजादी के बाद भी मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे हैं यहां के ग्रामीण
इन गांवों में ग्रामीण विकटता में जीवन जी रहे हैं।

शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी : इसे गांव का दुर्भाग्य कहें या शासन-प्रशासन की लापरवाही। लेकिन, यह सच है आजादी के सात दशक बाद भी सीमांतवर्ती जिले के कामरा, सांखाल और मटियालौड़ गांव में ग्रामीण मूलभूत सुविधा यातायात, स्वास्थ्य, शिक्षा और पेयजल किल्लत से परेशान हैं। इन गांवों में ग्रामीण विकटता में जीवन जी रहे हैं। पुरोला ब्लॉक में कामरा, सांखाल और मटियालौड़ गांव पड़ते हैं। इन गांवों में सभी परिवार अनुसूचित जाति के हैं।

यातायात की बात करें तो यह लोग पुरोला से 46 किमी दूर गढ़सार तक वाहन से आवागमन करते हैं। उसके बाद ग्रामीण यहां से करीब 12 से 15 किमी पगडंडियों के सहारे अपने गांव पहुंचते हैं। यहां से यातायात की सुविधा नहीं होने से ग्रामीण घोड़े, खच्चरों से अपने घरों तक सामान पहुंचाते हैं। शिक्षा की बात करें तो आठवीं तक के शिक्षा के बाद यहां के ग्रामीण अपने बच्चों को पुरोला में किराए के मकानों में रहकर पढ़ाने को मजबूर हैं। स्वास्थ्य की बात करें तो इन गांवों के ग्रामीण आपातकाल में डंड़ी-कंड़ी की मदद से मरीजों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पुरोला पहुंचाते हैं। पीने के पानी की बात करें तो इन गांवों के ग्रामीण आज भी प्राकृतिक स्रोतों से पानी ढोने को मजबूर हैं। जलसंस्थान ने दो दशक पहले इन गांव में पेयजल लाइन बिछाई थी, लेकिन, देखरेख और विभाग की लापरवाही के कारण विभाग की यह योजना भी धरातल पर दम तोड़ गई। आलम यह है कि सात दशक से इन गांवों के ग्रामीण विकास की बाट जोह रहे हैं

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स्थानीय ग्रामीण जयवीर, सूर्या, जगतु ने बताया कि वर्तमान में कामरा में करीब 104, सांखाल में 120 और मटियालौड़ में 22 मतदाता हैं। नेता लोग चुनाव में तो बड़े-बड़े वायदे करते हैं, लेकिन चुनाव खत्म होते ही नेता जनता की सुध लेना ही भूल जाते हैं। स्थिति यह है कि इन गांवों में पंचायती में जिला पंचायत सदस्य भी वोट मांगने नहीं जाते हैं। सांसद, विधायक तो दूर की बात है।

ग्रामीण जयवीर कहते हैं कि गजब यह है कि सरकार अनुसूचित जाति के लोगों के लिए विकास के बड़े-बड़े दावे करती हैं, लेकिन आज भी गांव में यदि कोई बीमार होता है तो उसे ग्रामीण अपनी पीठ पर या चारपाई पर ढ़ोने को मजबूर हैं। गांव के पास कोई भी अस्पताल नहीं है। यही नहीं पोस्ट आफिस के लिए भी ग्रामीणों को 14 किलोमीटर की पैदल दूरी तय कर भंकोली जाना पड़ता है। नेताओं के विकास केवल घोषणाओं में ही सीमित हैं।

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