एक साल से सेवा नियमावली पर फैसला नहीं, बीते वर्ष जून में कैबिनेट मंजूर कर चुकी है संवर्ग का ढांचा

परिवहन विभाग में बीते वर्ष जून में कैबिनेट ने प्रवर्तन संवर्ग के ढांचे में बदलाव किया। इसके तहत इस संवर्ग में प्रवर्तन सिपाही प्रवर्तन पर्यवेक्षक और वरिष्ठ प्रवर्तन पर्यवेक्षक के पद सृजित किए गए। विभाग के प्रवर्तन सिपाहियों की सेवा नियमावली एक साल से शासन में ही अटकी हुई है।

By Sumit KumarEdited By: Publish:Wed, 22 Sep 2021 07:10 AM (IST) Updated:Wed, 22 Sep 2021 07:10 AM (IST)
एक साल से सेवा नियमावली पर फैसला नहीं, बीते वर्ष जून में कैबिनेट मंजूर कर चुकी है संवर्ग का ढांचा
परिवहन विभाग के प्रवर्तन सिपाहियों की सेवा नियमावली एक साल से शासन में ही अटकी हुई है।

राज्य ब्यूरो, देहरादून: परिवहन विभाग के प्रवर्तन सिपाहियों की सेवा नियमावली एक साल से शासन में ही अटकी हुई है। यह पत्रावली कार्मिक व वित्त विभाग के बीच झूल रही है। यह स्थिति तब है जब कैबिनेट एक साल पहले इस संवर्ग के ढांचे को मंजूरी दे चुकी है। इससे प्रवर्तन सिपाहियों की पदोन्नति का इंतजार तो लंबा हो ही रहा है, कई पात्र कार्मिक पदोन्नति के इंतजार में सेवानिवृत्ति के कगार पर भी आ गए हैं।

 परिवहन विभाग में बीते वर्ष जून में कैबिनेट ने प्रवर्तन संवर्ग के ढांचे में बदलाव किया। इसके तहत इस संवर्ग में प्रवर्तन सिपाही, प्रवर्तन पर्यवेक्षक और वरिष्ठ प्रवर्तन पर्यवेक्षक के पद सृजित किए गए। पहले इस संवर्ग में प्रवर्तन सिपाही के बाद प्रवर्तन पर्यवेक्षक का पद था। इसके बाद इस संवर्ग में पदोन्नति का कोई मौका नहीं था। प्रवर्तन पर्यवेक्षक के पद भी बेहद सीमित थे। इस कारण अधिकांश सिपाही पूरी सेवा करने के बाद पदोन्नति नहीं ले पाते। इसे लेकर हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई। कोर्ट के निर्देशों के क्रम में विभाग ने प्रवर्तन सिपाहियों की संख्या बढ़ाने के साथ ही सीनियर सुपरवाइजर का नया पद सृजित किया। इसके लिए ढांचा कैबिनेट से पास किया गया। इसके बाद परिवहन विभाग ने इसकी नियमावली का ड्राफ्ट तैयार किया।

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इसमें प्रवर्तन सिपाही से प्रवर्तन पर्यवेक्षक पद पर पहली पदोन्नति भर्ती के छह साल बाद करने और पांच साल अथवा 11 साल की सेवा पर वरिष्ठ प्रवर्तन पर्यवेक्षक पद पर पदोन्नति देने की व्यवस्था की गई। इसमें आरक्षण के साथ ही सेवा शर्तों की व्याख्या भी की गई। शासन के कार्मिक विभाग ने इस पर अपनी आख्या देते हुए पत्रावली को कार्मिक के पास भेजा। बहुत अधिक वित्तीय भार न होने के बावजूद यह पत्रावली वित्त से आगे नहीं बढ़ पाई है।

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