उत्तराखंड के सरकारी प्राइमरी स्कूलों में घटी छात्रसंख्या, स्कूलों में अब लटक रहे हैं ताले
उत्तराखंड राज्य गठन के बाद 20 साल की अवधि में सरकारी प्राइमरी स्कूलों में छात्रसंख्या 50 फीसद तक गिर चुकी है। धड़ाधड़ खोले गए स्कूलों में अब ताले लटक रहे हैं।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में प्री-प्राइमरी कक्षाओं को तरजीह मिली है। इस पर अमल होता है तो ये प्रदेश की सरकारी शिक्षा के लिए अवसर साबित होगा या बड़ी चुनौती, शिक्षा महकमा गुत्थी को बूझ रहा है। प्री-प्राइमरी कक्षाओं को लेकर प्रदेश सरकार पिछले कुछ वर्षों से विचार करने को मजबूर हुई है। वजह भी आश्चर्यजनक है। उत्तराखंड राज्य गठन के बाद 20 साल की अवधि में सरकारी प्राइमरी स्कूलों में छात्रसंख्या 50 फीसद तक गिर चुकी है। धड़ाधड़ खोले गए स्कूलों में अब ताले लटक रहे हैं। साल-दर-साल तालों की संख्या बढ़ रही है। हर साल स्कूलों में प्रवेशोत्सव मनाने के बावजूद ये हाल हैं। नजदीक में ही खुले निजी स्कूल चांदी काट रहे हैं। घबराए हुए महकमे को प्री-प्राइमरी कक्षाओं के फार्मूले में नया अवसर दिखता है। इसकी राह आंगनबाड़ी केंद्रों से गुजरेगी, यही चुनौती भी है। 20 हजार आंगनबाडिय़ों में 33 हजार से ज्यादा कार्यकर्ताओं की फौज है।
प्रस्ताव हाजिर, मंत्रीजी गैर हाजिर
डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के माध्यम से खाते में भेजा गया पैसा काफी संख्या में छात्र-छात्राओं को पाठ्यपुस्तकें नहीं दिला पाया। किताबों पर खर्च होने के बजाय ये पैसा गरीब परिवारों की लाचारी, बेबसी या लापरवाही की भेंट चढ़ गया। पिछले साल ये वाकया सामने आने के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस पर सख्त रुख अपनाया था। यह समस्या दोहराई न जाए, इसे देखते हुए शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने महकमे को डीबीटी से छात्र-छात्राओं के खाते में पैसा भेजने के स्थान पर उन्हें मुफ्त किताबें मुहैया कराने के निर्देश दिए। मंत्रीजी के निर्देशों का पालन हुआ। यह प्रस्ताव पिछली कैबिनेट में पेश हुआ, लेकिन बैठक में मंत्रीजी गैरहाजिर रहे। प्रस्ताव स्थगित हो गया। अब इसे अगली कैबिनेट में फिर से रखने की तैयारी है। खास बात ये है कि अगली कैबिनेट बैठक में प्रस्ताव से ज्यादा नजरें मंत्रीजी की उपस्थिति पर टिकी हुई हैं। फिलहाल संकेत सकरात्मक हैं।
ऑनलाइन शिक्षा पर डबल इंजन
कहते हैं एक राह जहां बंद होती है, वहीं से दूसरी खुल जाती है। कोरोना संकटकाल ने ऐसा ही नया रास्ता उत्तराखंड को भी थमा दिया है। केंद्र सरकार भारतनेट कार्यक्रम के तहत कक्षा एक से 12वीं के सरकारी विद्यालयों को इंटरनेट कनेक्शन मुहैया कराएगी। फाइबर टू द होम योजना के बूते यह मुमकिन होगा। प्रत्येक ग्राम पंचायत को इस योजना के साथ में 30 जीबी डेटा भी दिया जाएगा। कोरोना महामारी में ऑनलाइन शिक्षा के अब तक पढ़े गए पाठ ने राज्य सरकार और शिक्षा महकमे को काफी कुछ सिखा दिया है। महकमे के खुद के सर्वे में यह पता चला कि ऑनलाइन पढ़ाई की कोशिशें पर्वतीय क्षेत्रों में चढऩे से पहले ही हांफ रही हैं। मंजिल तक पहुंचने को डबल इंजन का दम चाहिए। ऑलवेदर रोड और ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट की तर्ज पर भारतनेट पर शिद्दत से काम हुआ तो शिक्षा की तस्वीर बदली दिखाई दे सकती है।
यह भी पढ़ें: यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में मध्याह्न भोजन योजना की गुणवत्ता बरकरार रखना चुनौती
संघे शक्ति के आगे नतमस्तक
शिक्षा महकमे और शिक्षक संगठनों के बीच रस्साकसी का रोमांच अलग ही है। एक ओर ज्यादा दम लगने का मतलब दूसरी ओर दम फूलना है। स्थायी और अस्थायी यानी अतिथि शिक्षकों की तैनाती को लेकर लंबी चली खींचतान में बाजी संगठन के हाथ लगी है। एलटी से पदोन्नत हुए प्रवक्ताओं को सरकारी इंटर कॉलेजों में रिक्त पदों पर तैनाती में वरीयता दी जाएगी। इसे लेकर पेच फंसा रहा। अतिथि शिक्षकों को तैनाती देने की धुन में महकमे ने जिद ठान ली। जिन कॉलेजों में अतिथि शिक्षक पहले तैनात रह चुके हैं, उन्हेंं वहीं तैनाती देने का आदेश जारी हो गया। इनमें बड़ी संख्या में ऐसे कॉलेज हैं, जिनमें तैनाती सुविधाजनक मानी जाती है। स्थायी दरकिनार और अस्थायी शिक्षकों पर लुटाई जा रही मेहरबानी से मास्साब भड़क गए। शिक्षा निदेशालय के मंझे अफसरों ने तबादला एक्ट को आगे कर डराने की कोशिश की, लेकिन संघे शक्ति के आगे कामयाबी नहीं मिली।
यह भी पढ़ें: यूटीयू ने बीटेक में काउंसिलिंग बोर्ड के माध्यम से की प्रवेश की तैयारी