पुरानी पेंशन को लेकर कार्मिकों का इंतजार जल्द होगा खत्म

पुरानी पेंशन से वंचित सैकड़ों कार्मिकों व शिक्षकों की मुराद जल्द पूरी होगी। मंत्रिमंडलीय उपसमिति की अगली बैठक में वर्षों से चली आ रही इस समस्या के समाधान पर मुहर लगने की संभावना है। अगले माह तक उपसमिति अपनी रिपोर्ट मंत्रिमंडल को सौंप सकती है।

By Sumit KumarEdited By: Publish:Tue, 27 Jul 2021 06:50 AM (IST) Updated:Tue, 27 Jul 2021 06:50 AM (IST)
पुरानी पेंशन को लेकर कार्मिकों का इंतजार जल्द होगा खत्म
अगले माह तक मंत्रीमंडलीय उपसमिति अपनी रिपोर्ट मंत्रिमंडल को सौंप सकती है।

राज्य ब्यूरो, देहरादून: पुरानी पेंशन से वंचित सैकड़ों कार्मिकों व शिक्षकों की मुराद जल्द पूरी होगी। मंत्रिमंडलीय उपसमिति की अगली बैठक में वर्षों से चली आ रही इस समस्या के समाधान पर मुहर लगने की संभावना है। अगले माह तक उपसमिति अपनी रिपोर्ट मंत्रिमंडल को सौंप सकती है।

चुनावी साल में कर्मचारियों की मांगों के प्रति सरकार का रुख सकारात्मक है। पुरानी पेंशन की मांग को पूरा कर कार्मिकों के हित में सार्थक संदेश देने को सरकार की ओर से जल्द कदम उठाए जा सकते हैं। इस प्रकरण के समाधान की राह ढूंढ़ने को कैबिनेट मंत्री डा हरक सिंह रावत की अध्यक्षता में गठित मंत्रिमंडलीय उपसमिति मंथन कर चुकी है। कैबिनेट मंत्री बंशीधर भगत और सुबोध उनियाल उपसमिति के सदस्य हैं। उपसमिति की अब तक हो चुकी बैठक में इस समस्या से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की जा चुकी है। समाधान का अंतिम प्रारूप जल्द तैयार किया जाएगा।

चुनाव आचार संहित बनी गई थी बाधा

राज्य में नियुक्ति पत्र मिलने के बावजूद एक अक्टूबर, 2005 तक कार्यभार ग्रहण नहीं करने वाले कार्मिक पुरानी पेंशन योजना से बाहर कर दिए गए। जिन कार्मिकों को कार्यभार ग्रहण करने का मौका मिला, वे पुरानी पेंशन के पात्र हो गए। वहीं ऐसे कार्मिकों की संख्या अच्छी-खासी है, जो विभिन्न कारणों की वजह से कार्यभार ग्रहण से वंचित रह गए। वर्ष 2005 में कोटद्वार में उपचुनाव आचार संहिता के चलते पौड़ी जिले में नियुक्त शिक्षकों के साथ यही हुआ। आचार संहिता खत्म होने के बाद उन्होंने कार्यभार ग्रहण तो किया, लेकिन पुरानी पेंशन से हाथ के लाभ से वंचित हो गए।

यह भी पढ़ें- Video: दो साल की बच्ची को आंगन से उठाकर ले जाने वाला गुलदार ढेर, जॉय हुकिल की गोली का हुआ शिकार

रिपोर्ट को अंतिम रूप जल्द

मंत्रिमंडलीय उपसमिति इस मामले में संबंधित विभागों और शिक्षा निदेशालय से जरूरी जानकारी व अभिलेख तलब कर चुकी है। इस समस्या की जद में आयुर्वेदिक चिकित्सक भी हैं। संयुक्त उत्तप्रदेश में 1996 में तदर्थ नियुक्त इन चिकित्सकों को उत्तरप्रदेश ने 2002 में नियमित कर दिया था। उत्तराखंड में इन्हें 2006 में नियमित किया गया। इस वजह से उत्तरप्रदेश के आयुर्वेदिक चिकित्सक पुरानी पेंशन के पात्र हो गए, जबकि उत्तराखंड में उन्हें यह लाभ नहीं मिल पाया। उपसमिति के अध्यक्ष डा हरक सिंह रावत का कहना है कि इस मामले में उपसमिति की अगली बैठक में रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया जाएगा। इसके बाद रिपोर्ट को मंत्रिमंडल के समक्ष रखा जाएगा।

यह भी पढ़ें- CBSE के कोर्स तो हो रहे हैं लागू, लेकिन किताबें उपलब्ध नहीं; पढ़िए पूरी खबर

chat bot
आपका साथी