रोडवेज की नई बसों में मिलीं तकनीकी खामियां, बस ड्राइवर का दरवाजा भी नहीं खुलता पूरा

रोडवेज के लिए आई नई बसों में सिर्फ गियर लीवर की गड़बड़ी नहीं बल्कि कई तकनीकी खामियां मिलीं।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Sun, 15 Dec 2019 03:16 PM (IST) Updated:Sun, 15 Dec 2019 03:16 PM (IST)
रोडवेज की नई बसों में मिलीं तकनीकी खामियां, बस ड्राइवर का दरवाजा भी नहीं खुलता पूरा
रोडवेज की नई बसों में मिलीं तकनीकी खामियां, बस ड्राइवर का दरवाजा भी नहीं खुलता पूरा

देहरादून, जेएनएन। टाटा कंपनी से रोडवेज के लिए आई नई बसों में सिर्फ गियर लीवर की गड़बड़ी नहीं, बल्कि कई तकनीकी खामियां मिलीं। इन बसों का ड्राइवर की साइड का दरवाजा भी पूरा नहीं खुल रहा। यही नहीं बसों का डैशबोर्ड बड़ा होने से कोहरे के वक्त बस के फ्रंट शीशे पर कपड़ा लगाने के लिए ड्राइवर का हाथ नहीं पहुंच पा रहा। 

बसों में बड़ी शिकायत शाट-सर्किट के दौरान बचाव को लेकर भी है। बताया गया कि अभी तक बसों में बैटरी अंदर रहती थी और इसका कट-आउट ड्राइवर के पास ही लगाया जाता था। बैटरी में शॉट-सर्किट पर ड्राइवर तुरंत ही कट-आउट निकाल देते थे, मगर नई बसों में ऐसा नहीं है। इन बसों में बैटरी दरवाजे पर पायदान के पास लगी है। कट-आउट भी वहीं है। 

सीआइआरटी टीम ने इस पर आपत्ति जताई तो टाटा कंपनी के अधिकारियों ने बताया कि इसका एक बटन ड्राइवर के पास लगाया गया है। जांच टीम ने बटन से शॉट-सर्किट रोकने की बात को नकार दिया और कट-आउट सीधे ड्राइवर के पास लगाने के निर्देश दिए। प्रबंध निदेशक ने ड्राइवर साइड के दरवाजे का मामला भी उठाया। 

इन दरवाजों में कब्जों के साथ एक रबर स्ट्रिप भी लगाई जाती है, जिससे जब दरवाजे को खोला जाए तो वह ज्यादा आगे न जाए, मगर नई बसों में यह स्ट्रिप बेहद छोटी लगी है। इस वजह से दरवाजा ही पूरा नहीं खुल रहा। जिससे ड्राइवर अपनी साइड के बजाए यात्रियों के लिए लगे दरवाजे से अंदर पहुंच रहे। वहीं टीम ने गियर लीवर खुलवाए और पूरी जांच की। टीम ने भी माना कि जब नए दौर में अशोका लिलैंड भी छोटी रॉड गियर लीवर दे रही है तो टाटा ने यह पुराने जमाने के लंबे लीवर क्यों लगाए। यही नहीं गियर लीवर की लंबाई पुराने दौर के लीवर से भी लंबी कर दी। टीम ने बसों की लंबाई और चौड़ाई की भी पूरी नापजोख की।

नहीं उठा बसों का बोनट 

जांच टीम ने गियर लीवर की जांच करते हुए बसों का बोनट उठाना चाहा तो बोनट एक व्यक्ति से उठा ही नहीं। इसके साथ ही न केवल गियर लीवर में फंस रहा था, बल्कि इसका एक हिस्सा डैशबोर्ड के नीचे भी फंस रहा था। खासी मशक्कत के बाद दो लोगों की मेहनत से बोनट उठाया गया। टीम ने माना कि अगर किसी मामूली खराबी से बस रुक जाए तो बोनट उठाकर उसे तुरंत ठीक करना ही महाभारत जैसा होगा। इस दौरान पुरानी बसों के बोनट उठाकर देखे गए तो वे तुरंत उठ गए। 

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नहीं बदले गए थे 25 बसों के लीवर 

ऐसी अफवाह थी कि टाटा की ओर से उन 25 बसों के गियर लीवर सीआइआरटी की टीम के आने से पहले गुपचुप तरीके से बदल दिए गए थे। मगर ऐसा नहीं था। यह बसें अभी रोडवेज को डिलीवर ही नहीं हुई हैं व यह टाटा कंपनी के अधीन रोडवेज के ट्रांसपोर्टनगर स्थित प्लॉट में खड़ी हैं। बसों में जीपीएस और पैनिक बटन लगाया गया था, लेकिन किसी ने अफवाह उड़ा दी थी कि गियर लीवर बदल दिए गए। जब बसों की जांच शनिवार को हुई तो इनमें भी वही गियर लीवर मिले जो पूर्व में डिलीवर बसों में लगे हुए हैं। 

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हिमाचल में भी टूटे थे गियर लीवर 

हिमाचल पथ परिवहन निगम को टाटा की ओर से सप्लाई की गई इस मॉडल की बसों में भी गियर लीवर टूटने की शिकायत मिली है। बसों की जांच के लिए हिमाचल पहुंची उत्तराखंड रोडवेज की टीम की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि वहां भी 20-25 बसों में गियर लीवर टूटने की शिकायत आई थी। हालांकि, वहां अधिकारियों ने खुद ही गियर लीवर वेल्डिंग कराकर बसें चला लीं। 

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