आनलाइन की कठिन राह को पार कर मूक बधिरों की भाषा बने शिक्षक, कई चुनौतियों को किया पार

कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई पर निर्भर ऐसे बच्चों की पढ़ाई न छूटे इसके लिए प्रयास में जुटे हैं दून के कुछ ऐसे ही शिक्षक जिन्हें इन बच्चों की पढ़ाई की उतनी ही चिंता है जितना कि बच्चों के मां-बाप को।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Sun, 26 Sep 2021 01:24 PM (IST) Updated:Sun, 26 Sep 2021 01:24 PM (IST)
आनलाइन की कठिन राह को पार कर मूक बधिरों की भाषा बने शिक्षक, कई चुनौतियों को किया पार
आनलाइन की कठिन राह को पार कर मूक बधिरों की भाषा बने शिक्षक।

जागरण संवाददाता, देहरादून। कोरोना महामारी से बच्चों की पढ़ाई पर काफी प्रभाव पड़ा है, जहां सामान्य बच्चों को ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाए जाने की चुनौतियां शिक्षकों के सामने आ रही हैं, वहीं मूक-बधिर बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा देना उससे ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। फिर भी बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल करने के लिए कुछ शिक्षक हरसंभव प्रयास में लगे हैं और तमाम चुनौतियों को पार कर ऐसे बच्चों के जीवन में ज्ञान का प्रकाश फैला रहे हैं। कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई पर निर्भर ऐसे बच्चों की पढ़ाई न छूटे इसके लिए प्रयास में जुटे हैं दून के कुछ ऐसे ही शिक्षक, जिन्हें इन बच्चों की पढ़ाई की उतनी ही चिंता है, जितना कि बच्चों के मां-बाप को।

राजपुर रोड स्थित बजाज इंस्टिट्यूट ऑफ लर्निंग फॉर द डेफ में करीब 150 मूक-बधिर बच्चे पढ़ते हैं। यह स्कूल अनुदान से चलता है, जिसका संचालन वर्ष 1999 से किया जा रहा है। यहां प्राइमरी से 12 वीं कक्षा तक के बच्चे पढ़ते हैं। उत्तराखंड के अलावा यहां दिल्ली, मुंबई, छत्तीसगढ़ व अन्य राज्यों के बच्चे भी शिक्षा के लिए आते हैं। लेकिन कोरोना काल के दौरान इनके लिए काफी मुश्किलों भरा रहा।

वर्चुअल तरीके से बच्चों के लिए इन बच्चों के लिए पढ़ाई की व्यवस्था करना आसान नहीं था। फिर भी इन समस्याओं को पार कर स्कूल के अध्यापकों ने बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा उठाया। उन्हें टैबलेट उपलब्ध कराए गए। बच्चों का ध्यान न भटके, इसके लिए शिक्षकों को मेहनत ज्यादा करनी पड़ी।

स्क्रीन पर उन्हें बोलने का मौका दिया गया, जिससे बच्चों के अंदर आत्मविश्वास पैदा हुआ और पढ़ाई की राह आसान हुई। हालांकि, अभी कक्षा छह से 12वीं तक के बच्चों की फिजिकल कक्षाएं शुरू कर दी गई हैं, लेकिन छोटे बच्चों को अभी भी ऑनलाइन ही पढ़ाया जा रहा है।

छोटे बच्चों में रुचि जगाने के लिए लिया कार्टून वीडियो का सहारा

मूक-बधिर बच्चों को पढ़ाने वाली स्पेशल एजुकेटर भानु गुप्ता बताती हैं कि इन बच्चों को पढ़ाने के लिए कई तरीके एक साथ इस्तेमाल करने होते हैं। जैसे बोर्ड की मदद से, चित्र बनाकर, चित्र दिखाकर और साइन लैंग्वेज से कहानी सुनाकर इन्हें पढ़ाया जाता है। बड़ी कक्षा के बच्चों को ऑनलाइन वीडियो से पढ़ाना थोड़ा कठिन है। वजह यह है कि साइन लैंग्वेज में गणित को बच्चे ऑनलाइन माध्यम से समझ ही नहीं पाते। वहीं प्राइमरी स्तर के बच्चों को साइन लैंग्वेज में कहानी सुनाने के वीडियो भेजकर उन्हें पढ़ाया जा रहा है। छोटे बच्चों के लिए कार्टून वीडियो और अन्य गतिविधियों के जरिए पढ़ाई कराई जा रही है।

पांच सामान्य बच्चों की पढ़ाई के बराबर है एक की जिम्मेदारी

प्रधानाचार्य डॉ. पुनीत बसु बताती हैं कि एक स्पेशल बच्चे की जिम्मेदारी पांच सामान्य बच्चों के बराबर है। बच्चों के हिसाब से चीजें समझकर उनकी भाषा में उन्हें पढ़ाना होता है। इसमें समय, ऊर्जा ज्यादा लगती है। ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई ने इसे और भी ज्यादा मुश्किल बना दिया।

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