स्वामी विवेकानंद के दिल के करीब था दून, यहीं से दिया बालिका शिक्षा का संदेश; नहीं जा पाए थे बदरीनाथ-केदारनाथ

Swami Vivekananda Jayanti 2021 स्वामी विवेकानंद अपने जीवनकाल में वैसे तो उत्तराखंड में कई इलाकों में आते रहे लेकिन देहरादून उनके दिल के करीब रहा। यहां उन्होंने अध्यात्मिक सभाओं से अपने शिष्यों को परमसुख की अनुभूति कराई थी।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Tue, 12 Jan 2021 09:07 AM (IST) Updated:Tue, 12 Jan 2021 11:12 AM (IST)
स्वामी विवेकानंद के दिल के करीब था दून, यहीं से दिया बालिका शिक्षा का संदेश; नहीं जा पाए थे बदरीनाथ-केदारनाथ
स्वामी विवेकानंद के दिल के करीब था दून, यहीं से दिया बालिका शिक्षा का संदेश।

जागरण संवाददाता, देहरादून। Swami Vivekananda Jayanti 2021 स्वामी विवेकानंद अपने जीवनकाल में वैसे तो उत्तराखंड में कई इलाकों में आते रहे, लेकिन देहरादून उनके दिल के करीब रहा। यहां उन्होंने अध्यात्मिक सभाओं से अपने शिष्यों को परमसुख की अनुभूति कराई थी। यही नहीं, दून में उन्होंने विदेश से आए अनुयायियों को भी ज्ञान बांटा। बालिका शिक्षा का संदेश भी उन्होंने यहां से दिया था।

स्वामी विवेकानंद जीवनकाल में दो बार देहरादून आए थे। पहली बार वह अपने गुरुभाई अखंडानंद के अस्वस्थ होने की सूचना पर अक्टूबर 1890 में देहरादून आए थे। यहां उन्होंने सिविल सर्जन मैकलॉरेन से उनका इलाज करवाया था। इसके बाद वह अपने गुरुभाई के साथ ऋषिकेश गए। नवंबर 1897 में स्वामी विवेकानंद ने दूसरी बाद देहरादून की आठ दिवसीय यात्र की। उस वक्त उनके पश्चिमी देशों में रहने वाले शिष्य भी यहां पहुंच गए थे। स्वामी विवेकानंद ने उनके साथ अध्यात्मिक चर्चा की।

स्वामी के आगमन से मशहूर हुई शिव मंदिर बावड़ी 

स्वामी विवेकानंद यहां राजपुर स्थित शिव मंदिर के समीप एक कुटिया (बावड़ी) में ठहरते थे। इस स्थान पर अब एक कक्ष है। मंदिर को बावड़ी शिव मंदिर के रूप में ही जाना जाता है। रामकृष्ण मिशन के आश्रम की लाइब्रेरी में मौजूद साहित्य केअनुसार स्वामी विवेकानंद ने दून में बालिका शिक्षा को लेकर भी अलख जलाई थी। उन्होंने सभी को संदेश दिया कि बालिका शिक्षा बेहद जरूरी है और इसी के बल पर विश्व का संतुलन बना रह सकता है।

सर्वधर्म समभाव का दिया संदेश 

स्वामी विवेकानंद का उत्तराखंड से खास जुड़ाव रहा। उनका प्रवास मुख्य रूप से देहरादून, ऋषिकेश, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, अल्मोड़ा, चम्पावत, नैनीताल और हल्द्वानी रहा। इन स्थानों पर उन्होंने साधना की, लोगों के बीच सर्वधर्म समभाव का संदेश दिया। देहरादून प्रवास के दौरान उन्होंने बालिका शिक्षा की अलख जगाई। इन शहरों में स्वामी विवेकानंद की यादें अलग-अलग रूप में आज भी उनके सिद्धांतों को जीवन में उतारने की प्रेरणा देती हैं।

नहीं जा पाए थे बदरीनाथ और केदारनाथ 

कर्णप्रयाग और रुद्रप्रयाग से भी स्वामी विवेकानंद की यादें जुड़ी हैं। दोनों ही जगह उन्होंने कुछ दिन बिताए। प्रवास के दौरान अक्सर वे लोगों से अध्यात्म पर चर्चा किया करते थे। स्वामी विवेकानंद के जीवन पर अध्ययन करने वाले भुवन नौटियाल बताते हैं कि स्वामी विवेकानंद दो बार रुदप्रयाग आए थे। पहली यात्रा उन्होंने अपने गुरुभाई स्वामी अखंडानंद के साथ वर्ष 1988 में की थी। वे दोनों बदरीनाथ धाम जाने के लिए अल्मोड़ा के सोमेश्वर से पैदल कर्णप्रयाग पहुंचे थे। उस वक्त इस क्षेत्र में हैजा का प्रकोप था, इस वजह से उन्हें बदरीनाथ जाने की अनुमति नहीं मिल पाई थी। इस पर स्वामी विवेकानंद 18 दिन कर्णप्रयाग में ही रुक गए।

इस दौरान उन्होंने कर्णशिला में साधना की। इसके बाद उन्होंने रुद्रप्रयाग की तरफ रुख किया। यहां उन्होंने कालीकमली धर्मशाला में करीब एक महीने प्रवास कर ध्यान लगाया। दूसरी बार उन्होंने वर्ष 1890 में ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग का रुख किया, इस बार उनकी यात्रा का मकसद केदारनाथ धाम पहुंचना था, लेकिन तबीयत खराब होने की वजह से वह रुद्रप्रयाग में ही रुक गए। कुछ दिन प्रवास के बाद वह वापस लौट गए थे।

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