भरत चरित्र कथा में स्‍वामी मैथिलीशरण बोले, गरीबी-अमीरी महज मन का भ्रम; वास्तव में केवल ईश्वर है संपत्ति का स्वामी

अपनी गरीबी को मिटाने को यदि कोई व्यक्ति अपने भीतर यह इच्छाशक्ति पैदा कर ले कि उसे गरीब नहीं रहना है तो वह उसी दिन से अमीर होना शुरू हो जाएगा। यह उद्गार सुभाष रोड स्थित चिन्मय मिशन आश्रम में भरत चरित्र कथा में स्वामी मैथिलीशरण ने व्यक्त किए।

By Sumit KumarEdited By: Publish:Sat, 27 Nov 2021 04:44 PM (IST) Updated:Sat, 27 Nov 2021 04:44 PM (IST)
भरत चरित्र कथा में स्‍वामी मैथिलीशरण बोले, गरीबी-अमीरी महज मन का भ्रम; वास्तव में केवल ईश्वर है संपत्ति का स्वामी
चिन्मय मिशन आश्रम में चल रही भरत चरित्र कथा में प्रवचन देते स्वामी मैथिलीशरण।

जागरण संवाददाता, देहरादून: अपनी गरीबी को मिटाने को यदि कोई व्यक्ति अपने भीतर यह इच्छाशक्ति पैदा कर ले कि उसे गरीब नहीं रहना है तो वह उसी दिन से अमीर होना शुरू हो जाएगा। यह उद्गार सुभाष रोड स्थित चिन्मय मिशन आश्रम में चल रही सात-दिवसीय भरत चरित्र कथा के छठे दिन स्वामी मैथिलीशरण ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि कोई हमें कुछ दे दे और हम कुछ न करें तो ये दीनता की वृत्ति ही गरीबी है। देखा जाए तो गरीबी और अमीरी केवल मन का भ्रम है। संसार में जिसके पास जो है, वह सबको कुछ दिन के लिए मिला हुआ है। वास्तव में संपत्ति का स्वामी तो केवल ईश्वर है।

चिन्मय मिशन आश्रम में चल रही सात-दिवसीय भरत चरित्र कथा में श्री राम किंकर विचार मिशन के परमाध्यक्ष स्वामी मैथिलीशरण ने कहा कि हमें मालिक नहीं, सेवक बनकर कार्य करना चाहिए, फिर देखिए दरिद्रता स्वयं ही समाप्त हो जाएगी। यह शरीर ही स्वर्ग, नरक, मोक्ष, ज्ञान, वैराग्य व भक्ति के साधन की सीढ़ी है। जो व्यक्ति इस शरीर रूपी सीढ़ी को जहां लगा देता है, वहीं पहुंच भी जाता है। प्रभु राम की महिमा का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि राम का धनुष ही कृपा है और बाण पुरुषार्थ। पुरुषार्थ के बिना धनुष सफल नहीं होता। इसी तरह हनुमान भगवान के वह अमोघ बाण हैं, जो अपनी सफलता के मूल में अपनी विशेषता न देखकर केवल भगवान की कृपा को ही देखते हैं। भरत, भगवान का राज्य चलाकर प्रवृत्ति करते हैं, पर खुद को मात्र सेवक मानने के कारण वे सदा निवृत्ति में ही परिभ्रमण करते हैं।

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