हौसले की उड़ान से हार गई गरीबी, चंदौली के बसीला गांव के सुजीत बने सेना में अफसर
हौसला है तो मंजिल की राह में हर चुनौती बौनी बन जाती है। चंदौली (उत्तर प्रदेश) जिले में बसीला गांव के रहने वाले सुजीत कुमार ने गरीबी को अपने सपनों के आड़े नहीं आने दिया। पिता सफाई कर्मचारी और मां आशा कार्यकर्त्ता।
आयुष शर्मा, देहरादून: हौसला है तो मंजिल की राह में हर चुनौती बौनी बन जाती है। चंदौली (उत्तर प्रदेश) जिले में बसीला गांव के रहने वाले सुजीत कुमार ने गरीबी को अपने सपनों के आड़े नहीं आने दिया। पिता सफाई कर्मचारी और मां आशा कार्यकत्र्ता। माता-पिता का यही संघर्ष सुजीत के लिए प्रेरणा बना। मेहनत रंग लाई और आज वह सेना में अफसर बन गए।
शनिवार को भारतीय सैन्य अकादमी (आइएमए) से पासआउट होकर सुजीत सेना में अफसर बनने वाले गांव से पहले व्यक्ति हैं। उनके पिता बिजेंद्र प्रताप वाराणसी में पंचायती राज विभाग में सफाई कर्मचारी हैं और मां रेखा देवी आशा कार्यकत्र्ता। चार भाई-बहनों में सुजीत सबसे बड़े हैं। सीमित संसाधनों में माता-पिता के लिए चार बच्चों की शिक्षा दीक्षा और भरण-पोषण का इंतजाम करना आसान नहीं था। बावजूद इसके उन्होंने सुजीत के सपनों को पूरा करने के लिए हर मुमकिन प्रयास किया। जाहिर है सुजीत के लिए भी यह सफर आसान नहीं था। बड़ा बेटा होने के चलते उन्हें परिवार के कामों में भी हाथ बटाना पड़ता। मां-बाप दोनों ड्यूटी पर होते तो छोटे भाई- बहनों की देखभाल भी करनी पड़ती। बावजूद इसके सुजीत ने अपने पारिवारिक दायित्वों और पढ़ाई में सामंजस्य बिठा मंजिल को पा लिया।
सुजीत बताते हैं कि एक समय ऐसा भी था जब उनके पिता को परिवार का लालन-पालन करने के लिए मजदूरी तक करनी पड़ी। बाद में उन्हें पंचायती राज विभाग में सफाई कर्मचारी पद पर नौकरी मिल गई। घर में नियमित आय शुरू तो हुई, लेकिन यह पर्याप्त नहीं थी। ऐसे में उनकी मां ने भी नौकरी तलाशी और आशा कार्यकत्र्ता बन गईं। इससे परिवार को कुछ संबल मिला।
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पिता ने दिखाई सेना की राह
सुजीत कुमार ने अपने जज्बे और मेहनत के बूते सेना में लेफ्टिनेंट पद हासिल कर लिया, लेकिन उन्हें यह सपना दिखाने वाले उनके पिता ही थे। पांचवी की पढ़ाई के दौरान ही उनके पिता ने उन्हें आर्मी स्कूल की तैयारी करवाना शुरू कर दिया। दिन-रात कड़ी मेहनत कर उन्होंने मिलिट्री स्कूल अजमेर की प्रवेश परीक्षा पास कर छठी कक्षा में दाखिला लिया। वर्ष 2017 में 12वीं पास करने के साथ ही वह एनडीए की परीक्षा में शामिल हुए और पहले ही प्रयास में उन्हें सफलता मिल गई।
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