2013 के बाद आपदा पुनर्निर्माण कार्यों की खुली पोल, जानिए

कैग की रिपोर्ट में वर्ष 2013 में आपदा के बाद केदार घाटी में हुए पुनर्निर्माण कार्यों में खासे चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Sat, 23 Feb 2019 09:12 AM (IST) Updated:Sat, 23 Feb 2019 09:14 AM (IST)
2013 के बाद आपदा पुनर्निर्माण कार्यों की खुली पोल, जानिए
2013 के बाद आपदा पुनर्निर्माण कार्यों की खुली पोल, जानिए

देहरादून, राज्य ब्यूरो। वर्ष 2013 में आपदा के कहर से तहस-नहस केदार घाटी में पुनर्निर्माण कार्यों को लेकर पिछली कांग्रेस सरकार और मौजूदा भाजपा सरकार, दोनों ही अपनी पीठ खुद थपथपाती रही हैं, लेकिन भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) की रिपोर्ट खासी चौंकाने वाली और तंत्र की कार्यप्रणाली की पोल खोलने को काफी है।

धन की कमी का रोना रो रही सरकार मध्यकालिक और दीर्घकालिक परियोजनाओं के लिए स्वीकृत धनराशि का उपयोग करने में विफल रहीं। कुल अनुमोदित परिव्यय 6259.84 करोड़ के सापेक्ष परियोजनाओं के लिए 26 फीसद कम यानी महज 4617.27 करोड़ धन उपलब्ध कराया गया। कम धन जारी करने के बावजूद खर्च महज 3708.27 करोड़ हो सका। आपदा प्रभावित जिलों में पांच हेलीड्रोम, 19 हेलीपो‌र्ट्स, 34 हेलीपैड और 37 बहुद्देश्यीय हॉल बनाए जाने थे, लेकिन 27 हेलीपैड का ही निर्माण हुआ। एक भी बहुद्देश्यीय हॉल का निर्माण नहीं किया गया। 

सरकार पुनर्निर्माण कार्यो के पर्यवेक्षण, अनुश्रवण और गुणवत्ता नियंत्रण के लिए पृथक केंद्रीकृत तंत्र की स्थापना नहीं कर पाई। केंद्र से 319.75 करोड़ मिलने के बाद भी गौरीकुंड व केदारनाथ के बीच रोपवे का निर्माण, आश्रय सह गोदामों और श्रीकेदारनाथ टाउनशिप के दूसरे चरण के कार्य समेत तमाम योजनाओं के लिए धनराशि मंजूर नहीं की गई। आपदा के कहर से प्रभावित जिलों को बदहाली से उबारने के लिए जिस मिशन मोड में कार्य करने की दरकार थी, जमीन पर ऐसा नजर नहीं आ रहा है। 2013 की आपदा के बाद बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण पर कैग की रिपोर्ट को शुक्रवार को सदन में रखा गया। रिपोर्ट में मुख्य रूप से वर्ष 2014-15 से 2016-17 किए गए निर्माण कार्यो का ऑडिट किया गया है। वर्ष 2013 की आपदा के दौरान राज्य में कांग्रेस की विजय बहुगुणा सरकार थी। फरवरी, 2014 से मार्च, 2017 तक कांग्रेस की हरीश रावत सरकार के कार्यकाल में आपदा प्रभावित क्षेत्रों में पुनर्निर्माण कार्य किए गए। 18 मार्च, 2017 के बाद से भाजपा की मौजूदा त्रिवेंद्र रावत सरकार कार्य कर रही है। ऑडिट रिपोर्ट को मई 2017 से नवंबर, 2017 तक के दृष्टांतों और बाद में कार्यो की पूर्णता की स्थिति को इंगित कर मार्च, 2018 तक अपडेट किया गया है। रिपोर्ट में आपदा के प्रति संवेदनशील राज्य उत्तराखंड में पुनर्निर्माण कार्यो के लिए जिम्मेदार तंत्र की ओर से बरती गई लापरवाही का खुलासा किया गया है। राज्य सरकार की कोई भी परियोजना निर्धारित अवधि के भीतर पूरी नहीं हो सकी। इसके अतिरिक्त मार्ग और सेतु के 10 निर्माण कार्य, पर्यटन अवस्थापना ढांचे की दो परियोजनाएं, तीन लघु जलविद्युत परियोजनाओं, सार्वजनिक भवनों के 17 निर्माण कार्य, वन क्षेत्र के पांच निर्माण कार्य आपदा की तारीख से पांच साल से अधिक समय (मार्च, 2018) बीतने के बावजूद शुरू नहीं हो पाए थे। केंद्र से प्राप्त 319.75 करोड़ की प्राप्ति के बावजूद गौरीकुंड-केदारनाथ रोपवे, आश्रय सह गोदामों, श्रीकेदारनाथ टाउनशिप के दूसरे चरण के कार्य, अन्य धामों के विकास, राज्य के युवाओं को वैकल्पिक माध्यमों से जीविकोपार्जन के लिए प्रशिक्षित करने को 10 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों के निर्माण, अन्य धामों के विकास, को निधि स्वीकृत नहीं की गई। 

बोले मुख्‍यमंत्री

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि पिछली कांग्रेस सरकार के शासनकाल में केदारनाथ आपदा के बाद पुनर्निर्माण कार्यो की जांच रिपोर्ट पर सरकार जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं लेगी। सरकार रिपोर्ट का गहन अध्ययन करेगी, लेकिन यदि कोई अनियमितता पाई जाती है तो इस पर कार्रवाई से भी पीछे नहीं हटेगी। सरकार बदले की भावना से नहीं, बल्कि सही को सही व गलत को गलत के आधार पर फैसला लेगी।

अनुचित लाभ रोकने को ठेकेदारों पर नकेल जरूरी

नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने पुननिर्माण कार्यो के लिए ठेकेदारी प्रथा पर प्रभावी कदम उठाने की अपेक्षा की है। कैग ने माना है कि ठेकेदारों के माध्यम से कराए जाने वाले कार्यो पर कड़ी नजर रखने और पुनर्निर्माण कार्यो में गुणवत्ता का अनुपालन सुनिश्चित करने की जरूरत है। इसके साथ ही इसके मूल्यांकन व अनुश्रवण तंत्र को सुदृढ़ करने की भी अपेक्षा की है। शुक्रवार को सदन में रखी गई कैग की रिपोर्ट में सरकार को आपदा के बाद होने वाले पुनर्निर्माण कार्यो को लेकर कैग ने कई अहम सुझाव दिए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तराखंड आपदा प्रवृत्त राज्य है और यहां भूस्खलन, हिमस्खलन, बादल फटना, अचानक आने वाली बाढ़ और जंगल की आग में प्राकृतिक आपदाओं के आने की संभावनाएं बनी रहती हैं। 

ऐसे में सरकार को एक अच्छे सामंजस्य तंत्र को स्थापित करने की जरूरत है। कैग ने राज्य आपदा प्रबंधन को सुदृढ़ करने के साथ ही आपदाओं से बचाव व रोकथाम के उपायों का समयबद्ध तरीके से कराने के लिए मजबूत समय सारिणी बनाने का सुझाव दिया गया है। इसके साथ ही आपदा के कारण हुए नुकसान का आंकलन करने के साथ ही समय से उन्हें दुरुस्त करने के लिए व्यवहारिक प्रस्ताव बनाने की अपेक्षा की है। यह भी कहा गया है कि एक ही कार्य को कई स्रोतों से धन देने और विभिन्न अभिकरणों व ठेकेदारों द्वारा कराने से बचने का प्रयास करने चाहिए। ये निधि के दुरुपयोग व व्यय को बढ़ाने की गुंजाइश छोड़ते हैं। रिपोर्ट में ठेकेदारों को अनुचित लाभ समाप्त करने और खजाने पर वित्तीय बोझ को कम करने के लिए ठेका प्रबंधन पर प्रभावी निगरानी करने का सुझाव दिया गया है। इसके साथ ही पुननिर्माण कार्यो में मूल्यांकन व अनुश्रवण तंत्र को सुदृढ़ करने पर भी जोर दिया गया है।

आपदाग्रस्त क्षेत्रों में घरों के निर्माण में गड़बड़झाला

जून 2013 में आई जलप्रलय के बाद आपदा प्रभावित क्षेत्रों में आवासीय घरों के पुनर्निर्माण से संबंधित योजना में भी गड़बड़झाला हुआ। कैग की रिपोर्ट के अनुसार इन क्षेत्रों में 136 लोगों को भूमि का मालिकाना हक न होने के बावजूद योजना का लाभ दे दिया गया। इस प्रकरण में अग्रेत्तर जांच का कोई आश्वासन भी नहीं दिया गया। उत्तराखंड में आपदा प्रभावित पांच जिलों रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, बागेश्वर व पिथौरागढ़ में आपदा रिकवरी परियोजना के तहत स्वामित्व चलित आवास निर्माण योजना में आवासीय घरों के पुनर्निर्माण को विश्व बैंक ने वित्त पोषित किया था। जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की संस्तुतियों पर लाभार्थियों को सीधे भुगतान बैंक खातों में किया गया। कैग की रिपोर्ट के अनुसार आवासीय घरों के लिए अक्टूबर 2013 में प्रावधान किया गया कि घरों का निर्माण उन लाभार्थियों की भूमि पर होगा, जिनके पास इसका मालिकाना हो। पांचों जिलों में चयनित लाभार्थियों से संबंधित अभिलेखों की लेखा परीक्षा में बात सामने आई कि कुल 2488 लोगों को योजना में लाभान्वित किया गया। यह जानकारी भी सामने आई कि 136 ऐसे लाभार्थी हैं, जिनके नाम जमीन का मालिकाना हक नहीं था। इस बारे में आपदा प्रबंधन विभाग ने जवाब दिया कि लाभार्थियों का चयन जिला प्रशासन से प्राप्त प्रतिवेदन व संस्तुतियों के अनुसार किया गया। इसमें जांच का कोई और आश्वासन नहीं दिया गया।

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