स्वदेशी तकनीक से सेटेलाइट रखेगा सीमा पर दुश्मन पर नजर

सेना सीमा पर दुश्मन पर सीधे नजर रख सकेगी। दून स्थित ऑर्डनेंस फैक्ट्री ने स्वदेशी तकनीक पर आधारित सेटेलाइट ट्रैकिंग सिस्टम को विकसित करने का काम शुरू कर दिया है।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Wed, 12 Aug 2020 12:10 PM (IST) Updated:Wed, 12 Aug 2020 12:10 PM (IST)
स्वदेशी तकनीक से सेटेलाइट रखेगा सीमा पर दुश्मन पर नजर
स्वदेशी तकनीक से सेटेलाइट रखेगा सीमा पर दुश्मन पर नजर

देहरादून, जेएनएन। सीमा पर दुश्मन पर अक्सर सीधे नजर रख पाना संभव नहीं हो पाता है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए सेटेलाइट से निगरानी करना ही एकमात्र विकल्प होता है। इसके लिए अब तक भारतीय सेना विदेशी तकनीक पर आधारित सेटेलाइट ट्रैकिंग सिस्टम पर निर्भर है। अच्छी खबर यह है कि आने वाले कुछ माह में देश इस दिशा में भी आत्मनिर्भर बन जाएगा। देहरादून स्थित ऑर्डनेंस फैक्ट्री ने स्वदेशी तकनीक पर आधारित इस ट्रैकिंग सिस्टम को विकसित करने का काम शुरू कर दिया है।

मंगलवार को मीडिया से बातचीत में ऑर्डनेंस फैक्ट्री के महाप्रबंधक पीके दीक्षित ने बताया कि डे विजन, नाइट विजन व लेजर तकनीक के मेल (कॉम्बिनेशन) के माध्यम से ट्रैकिंग सिस्टम बनाया जा रहा है। इसकी लागत करीब 50 लाख रुपये प्रति सिस्टम आएगी। वहीं, विदेशी तकनीक पर आधारित सिस्टम 40 गुना तक महंगा है। प्रयास किए जा रहे हैं कि मार्च 2021 तक ट्रैकिंग सिस्टम तैयार कर लिया जाए। इसके बाद कुछ ट्रायल किए जाएंगे और फिर सिस्टम को सेना के सुपुर्द कर दिया जाएगा।

इस तरह होगी दुश्मन की निगरानी

सेटेलाइट के जरिये रात व दिन में समान रूप से दुश्मन के चित्र लिए जाएंगे। लेजर तकनीक के माध्यम से उसकी दूरी, स्पष्ट पहचान व मूवमेंट आदि की जानकारी जुटाई जाएगी। यह सिस्टम स्वत: ही उसे कंट्रोल सेंटर को भेज देगा ताकि बिना समय गंवाए टारगेट को शूट किया जा सके।

पहली बार आमजन को मिलेंगे ऑर्डनेंस फैक्ट्री के बायनोकुलर

जिन बायनोकुलर से हमारे सैनिक बहुत दूर बैठे दुश्मन की भी पहचान करने में सक्षम हो पाते हैं, वह अब आमजन को भी नसीब हो पाएंगे। ऑर्डनेंस फैक्ट्री प्रबंधन ने तय किया है कि हाई रेजोल्यूशन बायनोकुलर की बिक्री खुले बाजार में भी की जाएगी। फैक्ट्री के महाप्रबंधक दीक्षित के अनुसार पर्यटक स्थलों को केंद्र में रखकर इनकी बिक्री की जाएगी। आठ गुणा जूम वाले बायनोकुलर की कीमत 20 हजार व 12 गुणा जूम वाले बायनोकुलर की कीमत करीब 25 हजार रुपये रखी जाएगी। जो विदेशी कंपनियां इस तरह के बायनोकुलर की बिक्री करती हैं, वह दो से ढाई लाख रुपये के बीच हैं।

बायनोकुलर से अटैच होगा मोबाइल

ऑर्डनेंस फैक्ट्री देहरादून (ओएफडी) के विज्ञानियों ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसके माध्यम से बायनोकुलर पर मोबाइल फोन को अटैच किया जा सकता है। यह काम सिर्फ एक छोटे से एडप्टर के माध्यम से संभव हुआ है और लागत भी महज दो हजार रुपये है। सोमवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इस एडप्टर को ऑनलाइन माध्यम से लॉन्च भी कर चुके हैं। फैक्ट्री के महाप्रबंधक पीके दीक्षित ने बताया कि होल्डर युक्त एडप्टर किसी भी स्मार्ट फोन पर आसानी से फिट किया जा सकता है। कई दफा सीमा पर निगरानी करते हुए सैनिकों को दुश्मन के चित्र अपने अफसरों को भेजने पड़ते हैं।

यह दोनों काम एक साथ नहीं किए जा सकते, मगर इस डिवाइस की मदद से न सिर्फ दुश्मन की फोटो खींची जा सकती है, बल्कि वीडियो रिकॉर्डिंग कर तत्काल कहीं भी भेज सकते हैं। निकट भविष्य में इस तरह के एडप्टर आमजन के लिए भी तैयार किए जाएंगे। ताकि बायनोकुलर से जिस भी पर्यटक स्थल या वन्यजीव को देखा जा रहा है, उसकी तस्वीर भी ली जा सके। यह तस्वीर उतनी की स्पष्ट होगी, जितनी बायनोकुलर में दिख रही है। यदि मोबाइल में उच्च क्षमता का जूम है तो यह बायनोकुलर की क्षमता को और बढ़ा देगा। उन्होंने बताया कि अगले एक सप्ताह तक स्वदेशी तकनीक पर आधारित इस तरह के कई रक्षा उपकरण लॉन्च किए जाएंगे। जब इनका उत्पादन शुरू होगा तो फैक्ट्री के टर्नओवर में 500 करोड़ रुपये का इजाफा होने की उम्मीद है।

गलवन की घुसपैठ के बाद सेना ने मांगे अपग्रेड टेलिस्कोप

ऑर्डनेंस फैक्ट्री ने राइफल पर फिट किए जाने वाली डे-विजन टेलिस्कोप को अपग्रेड किया है। यह पूरी तरह स्वदेशी तकनीक पर भी आधारित है। गलवन में चीनी सैनिकों की घुसपैठ के बाद सेना में इस अपग्रेड टेलिस्कोप की मांग की है। ऑर्डनेंस फैक्ट्री के महाप्रबंधक पीके दीक्षित ने बताया कि अब तक इस तरह के टेलिस्कोप को अमेरिका, चीन व बेल्जियम से मंगाया जा रहा था। इसकी लागत प्रति डिवाइस 2.5 लाख रुपये आती थी, जबकि अब फैक्ट्री में इसे 1.25 लाख रुपये में तैयार किया जा रहा है। केंद्र सरकार ने इसे उन 101 उत्पादों में शामिल किया है, जिनका अब आयात नहीं किया जाएगा।

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असॉल्ट राइफल के लिए 13 हजार टेलिस्कोप भेजेगी फैक्ट्री

असॉल्ट राइफल के लिए स्वदेशी तकनीक पर आधारित टेलिस्कोप के प्रति भी सेना ने खासी दिलचस्पी दिखाई है। ऑर्डनेंस फैक्ट्री को ऐसी 13 हजार डिवाइस तैयार करने का ऑर्डर दिया गया है। अब तक इसे अमेरिका व चेक गणराज्य से मंगाया जा रहा था। तब इसकी लागत 50 हजार रुपये प्रति डिवाइस आ रही थी और अब इसे 40 हजार रुपये में तैयार किया जा रहा है। फैक्ट्री में इसका निर्माण होने पर प्रति वर्ष 10 करोड़ रुपये की बचत भी होगी। इसके अलावा फैक्ट्री ने हैल्मेट में फिट होने वाला नाइट विजन मोनोकुलर भी तैयार किया है। निगरानी के समय इसे बिना हटाए किसी भी दिशा में घुमाया जा सकता है।

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